आवाज द वाॅयस / अजमेर / नई दिल्ली
अजमेर शरीफ दरगाह, ख्वाजा गरीब नवाज (र.अ.) की इस सूफी स्थली को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति और समावेशिता का प्रतीक माना जाता है. 13वीं शताब्दी में स्थापित, यह दरगाह न केवल लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि भाईचारे और मानवता की सेवा का संदेश भी देती है. हालाँकि, हाल ही में इसके ऐतिहासिक महत्व और पवित्रता पर एक विवादास्पद याचिका ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
मंदिर होने का दावा और विवाद
अजमेर की एक अदालत में याचिका दाखिल कर दावा किया गया है कि दरगाह शरीफ वास्तव में एक हिंदू मंदिर है. इस याचिका को अदालत द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने बयान देते हुए कहा कि वह अदालती प्रक्रिया का सम्मान करते हैं, लेकिन इस तरह के दावे समाज में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देते हैं.
उन्होंने कहा, "यह परंपरा बन रही है कि हर दरगाह और मस्जिद को मंदिर घोषित करने के दावे किए जा रहे हैं. ऐसे विवाद न केवल धार्मिक स्थलों की पवित्रता को प्रभावित करते हैं बल्कि समाज के सौहार्द को भी खतरे में डालते हैं."
दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
दरगाह शरीफ का निर्माण ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (र.अ.) के देहांत के बाद किया गया था. सदियों से यह स्थान शांति और सद्भाव का प्रतीक बना हुआ है, जहाँ सभी धर्मों और समुदायों के लोग समान भाव से आते हैं. दरगाह पर आने वाले श्रद्धालुओं में न केवल आम लोग बल्कि कई ऐतिहासिक शासक और नेता भी शामिल रहे हैं.
सांप्रदायिक एजेंडा और कानूनी विवाद
विशेषज्ञों और समाज के विभिन्न वर्गों का मानना है कि ऐसे मामलों का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं का राजनीतिकरण करना और ऐतिहासिक स्थलों को विवादित बनाना है. एआईएमआईएम प्रवक्ता काशिफ जुबेरी ने इसे "पूजा स्थल अधिनियम, 1991" का उल्लंघन बताते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएँ देश में भाईचारे को कमजोर कर रही हैं..
एकता और भाईचारे की जरूरत
ख्वाजा गरीब नवाज (र.अ.) ने अपने जीवन में बिना शर्त प्रेम और करुणा का संदेश दिया। उनका यह संदेश आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। ऐसे में दरगाह शरीफ की पवित्रता को चुनौती देने वाले कार्य इस संदेश के विपरीत हैं.
यह समय है कि भारत की न्यायपालिका और नेतृत्व ऐसे तुच्छ मामलों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएँ। समाज को भी नफरत के एजेंडे को अस्वीकार कर शांति और सद्भाव को बनाए रखना चाहिए.
संदेश और प्रतिबद्धता
अजमेर शरीफ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है; यह भारत की आध्यात्मिक विरासत और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है. इसके प्रति श्रद्धा रखने वालों को नफरत और विभाजन के इस प्रयास के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है. ख्वाजा गरीब नवाज (र.अ.) का संदेश हमें यह सिखाता है कि नफरत का जवाब केवल प्रेम और सच्चाई से ही दिया जा सकता है.आइए, हम एकजुट होकर इस आध्यात्मिक स्थल की गरिमा और इसके पीछे छिपे सार्वभौमिक भाईचारे के संदेश की रक्षा करें.