कवि रवींद्रनाथ टैगोर जिन्होंने हैदराबाद की बंजारा हिल्स को अमर किया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-12-2024
Poet Rabindranath Tagore who immortalised the Banjara Hills of Hyderabad
Poet Rabindranath Tagore who immortalised the Banjara Hills of Hyderabad

 

रत्ना जी. चोटरानी

पश्चिमी साहित्यिक परंपरा में यात्रा वृत्तांत या यात्रा साहित्य का बड़ा स्थान है. विशेष रूप से सांस्कृतिक संपर्कों के अध्ययन और विभिन्न छवियों, छापों और रूढ़ियों के निर्माण में.हालांकि, अतीत में भारत पर अधिकांश यात्रा साहित्य पश्चिमी दृष्टिकोण से लिखा गया था, जहां भारतीय भूमि को "अन्य" या "यूरोपीय नजर" से देखा गया था.लेकिन औपनिवेशिक दौर में भारतीयों द्वारा दूसरी रियासतों की यात्रा पर साहित्यिक प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम था.

हैदराबाद में रवींद्रनाथ टैगोर की यात्रा, हैदराबादवासियों के लिए उतनी ही आकर्षक थी, जितनी बंजारा हिल्स टैगोर के लिए सम्मोहक.1933 में हैदराबाद के निज़ाम ने रवींद्रनाथ टैगोर को अपनी रियासत में आमंत्रित किया, जिसे टैगोर ने खुशी से स्वीकार किया.

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रवींद्रनाथ टैगोर ने पहले हैदराबाद के कुछ इलाकों का दौरा किया था, और अपनी यात्रा के दौरान वे मेहदी नवाज जंग के बंजारा हिल्स स्थित 'कोहिस्तान' निवास में उनके अतिथि बने. यहां का वातावरण उन्हें इतना भाया कि उन्होंने कहा, "अगर शांति निकेतन में अपना काम न होता, तो मैं यहीं बसने का विचार करता." इस पर उन्होंने बंजारा हिल्स में 'कोहिस्तान' पर एक कविता भी लिखी, जिसका खुद ही अंग्रेजी में अनुवाद किया.

रवींद्रनाथ टैगोर और निज़ाम के बीच गहरा सम्मान था.निज़ाम, जो शिक्षा के समर्थन में थे, ने टैगोर के योगदान को सराहा और उन्हें 10 लाख रुपये का अनुदान दिया.इन पैसों का उपयोग टैगोर के विश्वभारती विश्वविद्यालय के छात्रावास के निर्माण के लिए किया गया.

टैगोर ने निज़ाम के प्रयासों की सराहना करते हुए लिखा था कि उन्हें खुशी है कि निज़ाम का राज्य उर्दू में शिक्षा देने वाला विश्वविद्यालय स्थापित कर रहा है.उन्होंने यह भी कहा कि वह उस दिन का इंतजार कर रहे थे जब भारतीय शिक्षा स्वाभाविक रूप से सभी के लिए सुलभ होगी, बिना विदेशी भाषा के बंधनों के.

टैगोर ने हैदराबाद की जलवायु और शांति से सचमुच प्रेम किया.बंजारा हिल्स की हरियाली, शांति और चट्टानें उन्हें बहुत पसंद आईं, और वे यहां घर बनाने का विचार करने लगे थे, लेकिन शांति निकेतन में अपनी

जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने यह विचार छोड़ दिया.टैगोर सुबह-सुबह बंजारा हिल्स के प्राकृतिक परिवेश में घूमने निकलते थे.यह शांतिपूर्ण वातावरण और पथरीली चट्टानें उनके भीतर के कवि को प्रेरित करती थीं.

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हैदराबाद में एक सभा के दौरान, जिसमें सरोजिनी नायडू भी शामिल थीं, प्रधानमंत्री किशन प्रसाद ने एक प्रसिद्ध दोहा रचा, "महफ़िल में हैं आज जमा दो साहब-ए-रेश, दोनों दिलशाद और दोनों दिलरेश," यह टैगोर और उनके मेज़बान अमीन जंग की लंबी दाढ़ी पर टिप्पणी थी.इस घटना में दिखाए गए सौहार्द और भाईचारे ने यह साबित किया कि वे अपने मतभेदों को भूलकर केवल शांति और कविता की ओर अग्रसर थे.

रवींद्रनाथ टैगोर ने जहां भी यात्रा की, उन स्थानों को अपनी कविताओं या सांस्कृतिक पहलुओं के माध्यम से अमर कर दिया.1919 के शुरुआती दिनों में आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के मदनपल्ले की उनकी यात्रा ने साहित्यिक इतिहास रच दिया, जब उन्होंने जनगणमन गीत का अंग्रेजी में अनुवाद किया.टैगोर के निधन के बाद, 1941 में, पूरे हैदराबाद में शोक की लहर दौड़ी, और अखबारों ने टैगोर की याद में कई स्तुतिगान किए.