मिथिला महोत्सव में सम्मानित किए गए नाटककार महेंद्र मलंगिया, नागार्जुन पर नाटक का मंचन

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  onikamaheshwari | Date 23-12-2024
Playwright Mahendra Malangia honored at Mithila Festival, play on Nagarjuna staged
Playwright Mahendra Malangia honored at Mithila Festival, play on Nagarjuna staged

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
 
मिथिला महोत्सव का आठवां संस्करण एक अलग छाप छोड़कर गया. नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का सम्मुख सभागार मिथिला महोत्सव के दौरान संस्कृतिप्रेमियों से खचाखच भरा हुआ था. 
 
महोत्सव के दौरान कई आयोजन हुए जिसमें बाबा नागार्जुन की जीवनी और उनके साहित्य एक व्यापक परिचर्चा आयोजित की गई. मैथिल पत्रकार ग्रुप, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मैथिली-भोजपुरी अकादमी के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों, पत्रकारों और राजनीतिक नेताओं ने बाबा नागार्जुन की साहित्यिक धरोहर और समाज में उनके योगदान पर अपने विचार साझा किए.
 
 
कार्यक्रम में बाबा नागार्जुन की लिखी हुई कविताओं का पाठ किया गया. इसमें वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार झा, नरेंद्र नाथ, मोहम्मद रहमतुल्लाह, काजल लाल, संजीव सिन्हा, प्रतिभा ज्योति, सुजीत ठाकुर, क्रांति संभव, सुभाष चंद्र, रोशन कुमार और स्कूली छात्रा प्रत्यूषा ने भागीदारी की. इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी प्रकाश झा ने भी बाबा नागार्जुन की कविताओं को अपनी विशेष प्रस्तुति से जीवित किया.
 
परिचर्चा में भाग लेते हुए वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्रनाथ, सुजीत ठाकुर, सुभाष चंद्र , रहमतुल्लाह और रौशन झा ने बाबा नागार्जुन की जीवनी पर चर्चा की. सभी वक्ताओं ने बाबा नागार्जुन की साहित्यिक और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण और लेखन के विविध पहलुओं पर विचार साझा किया.
 
इसके साथ ही, कार्यक्रम के दौरान साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त महेंद्र मलंगिया और मैथिली भोजपुरी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष नीरज पाठक को भी सम्मानित किया गया. पाग और दुपट्टे से सम्मानित किए जाने के बाद वयोवृद्ध मैथिली नाटककार महेंद्र मलंगिया ने कहा, “मेरा पूरा कार्य नेपाल में रहा और वहां के प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति ने कई बार नेपाल की नागरिकता लेने का आग्रह किया. मुझे ज्यादातर पुरस्कार नेपाल से ही मिले हैं पर मुझे भारतीय होना अधिक भाता है और किसी भी कीमत पर मैंने अपनी राष्ट्रीयता नहीं छोड़ी.”
 
इस अवसर पर रोशन झा द्वारा लिखित और प्रकाश झा द्वारा निर्देशित बाबा नागार्जुन की जीवनी  पर आधारित नाटक का शानदार मंचन हुआ.
 
 
कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय मयूख और कांग्रेस के नेता प्रणव झा ने भी बाबा नागार्जुन पर अपने विचार साझा किए. दोनों नेताओं ने मिथिला और पूर्वाञ्चल की सांस्कृतिक धरोहर और भाषा को बढ़ावा देने की बात की. उन्होंने इस क्षेत्र की संस्कृति को संरक्षित करने के महत्व पर बल दिया और कहा कि बाबा नागार्जुन की साहित्यिक धरोहर से नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है.
 
मैथिल पत्रकार ग्रुप के अध्यक्ष संतोष ठाकुर ने सभी गण्यमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि मिथिला और मैथिली को बढ़ावा देने के लिए पत्रकारों का यह ग्रुप हमेशा तैयार रहता है और साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है. जिससे समाज में जागरूकता बढ़ सके. 
 
बाबा नागार्जुन का साहित्य विशेष रूप से समाज के विभिन्न पहलुओं, खासकर पिछड़े और दबे-कुचले वर्गों की समस्याओं पर केंद्रित था. उनकी कविताओं और रचनाओं में समाज की गहरी संवेदनाएँ और सशक्त आवाज़ सुनाई देती है. उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से न केवल समाज के शोषित वर्ग की पीड़ा को उजागर किया, बल्कि उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी आवाज़ उठाई. उनका काव्य संसार आम आदमी की जिंदगी, उसकी परेशानियों, संघर्षों, उम्मीदों और उसके सपनों से गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। बाबा नागार्जुन की रचनाएँ समाज की बुराइयों, असमानताओं और मानवीय संवेदनाओं की गहरी छाया को दर्शाती हैं.
 
 
उनकी प्रमुख कविताओं और संग्रहों में युगधारा (1953), सतरंगे पंखों वाली (1959), प्यासी पथराई आँखें (1962), तालाब की मछलियाँ (1974), तुमने कहा था (1980), हजार-हजार बाँहों वाली (1981) और पुरानी जूतियों का कोरस (1983) जैसी काव्य-रचनाएँ शामिल हैं. जिन्होंने समाज में बदलाव की चेतना पैदा की. इसके अलावा, भस्मांकुर (1970) और भूमिजा जैसी प्रबंध काव्य-रचनाएँ भी बाबा नागार्जुन के साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
 
उनके उपन्यास जैसे रतिनाथ की चाची (1948), बलचनमा (1952), नयी पौध (1953), और गरीबदास (1990) उनके समाजवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं, जबकि हिमालय की बेटियाँ जैसे निबंधों ने उनके विचारों को और भी स्पष्ट रूप से सामने लाया. बाबा नागार्जुन ने हमेशा समाज के हर तबके की समस्याओं और उसके संघर्षों को अपनी लेखनी में गहराई से समाहित किया. जिससे उनका साहित्य आज भी अत्यंत प्रासंगिक और प्रेरणादायक बना हुआ है.