शंभूनाथ शुक्ल
मुंशी रहमान अली ख़ाँ के पुरखे अफगानिस्तान से आए और घूमते-घामते बुंदेलखंड के हमीरपुर में बस गए. मुंशी जी के समय उनका परिवार गरीब हो चुका था. पठानों वाली ठसक समाप्तप्राय: थी. पैसा कमाने के उद्देश्य से मुंशी जी एक दिन गिरमिटिया मजदूर बन कर डच-गुयाना चले गए.
अंग्रेज ठेकेदार जहाज में भर कर सब को ले जा रहा था. मुंशी जी अपने साथ कुछ पुस्तकें भी ले गए. इनमें राम चरित मानस का एक गुटका भी था. मुंशी जी वहाँ मज़दूरी करते और शाम को बैठ कर मजदूरों को रामायण सुनाते. अन्य मजदूर उन्हें पंडित जी कहने लगे. मुंशी जी बाद में अपनी बोली में दोहा-चौपाई शैली में कविता लिखने लगे. अपने बारे में उन्होंने लिखा है-
कमिश्नरी इलाहाबाद में जिला हमीरपुर नामI
बिवांर थाना है मेरा मुकाम भरखरी ग्रामII
सिद्धि निद्धि वसु भूमि की वर्ष ईस्वी पायI
मास शत्रु तिथि तेरहवीं-डच-गैयाना आय।I
मुंशी जी अपनी नमाज़ और अपने दीन के भी पाबंद थे. वे लिखते हैं-
मुस्लिम वही सराहिए मानहिं खुदा रसूलI
दें ज़कात खैरात बहु पाँच में रहें मशगूल।I
पाँच में रहें मशगूल हज काबह कर आवैंI
चलैं कुरान हदीस मग भूलेन राह बतावैं।।
कहैं रहमान सदा हित करहिं बेवा रंक यतीमम।
रोज हशर में जिन्नत पैहैं वही हकीकी मुस्लिम।।
तलाक़ जैसी कुरीति पर उन्होंने लिखा है-
सुजान न लेवहिं नाम यह तलाक न उमदह नाम।
घ्रणित काम यह अति बुरा नहिं असलौं का काम।
नहिं असलौं का काम नारि जो अपनी छोड़ै।
करैं श्वान का काम हाथ दुसरी से जोडै़।।
कहैं रहमान बसें खग मिलकर जो मूर्ख अज्ञान।
कहु लज्जा है कि नहीं दंपति लडै़ सुजान।।
मुंशी जी ने लम्बी उमर पाई. वे 1874 में पैदा हुए और 1972 में उनकी इहलीला समाप्त हुई.सोचिये यदि ये मुसलमान न होते तो आज हम सूरीनाम, मारीशस आदि में बसे जिन भारतवंशी हिंदुओं पर गर्व करते हैं,
वे अपना हिंदू धर्म ईसाइयत में विलीन कर लेते. जैसे अश्वेत समुदाय के अफ़्रीकी अपना मूल धर्म खो चुके हैं. वे या तो ईसाई हैं अथवा इस्लामी धर्म को मानते हैं. भारत के मुसलमान यहाँ की माटी में रम चुके हैं.(मैं 1977 में मुंशी जी के गांव गया था)
जय हिन्द! जय अपना यूपी!!
शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार