देश के नाम आजाद हिंद फौज के आख़िरी कप्तान अब्बास अली का सन्देश

Story by  क़ुरबान अली | Published by  [email protected] | Date 12-10-2021
कैप्टन अब्बास अली
कैप्टन अब्बास अली

 

प्यारे दोस्तो!

मेरा बचपन से ही क्रन्तिकारी विचारधारा के साथ सम्बन्ध रहा है. 1931 में जब मैं पांचवीं जमात का छात्र था,  23 मार्च को अँगरेज़ हुकूमत ने शहीदे आज़म भगत सिंह को लाहौर में सजाए मौत दे दी. सरदार की फांसी के तीसरे दिन इसके विरोध में मेरे शहर खुर्जा में एक जुलूस निकाला गया जिसमें मैं भी शामिल हुआ. हम लोग बा-आवाजे बुलंद गा रहे थेः

भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा

हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा

ऐ दरिया-ए-गंगा तू खामोश हो जा

ऐ दरिया-ए-सतलज तू स्याहपोश हो जा

भगत सिंह तुम्हें फिर भी आना पड़ेगा

हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा.

इस घटना के बाद मैं नौजवान भारत सभा के साथ जुड़ गया और 1936-37 में हाइस्कूल का इम्तिहान पास करने के बाद जब मैं अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ, तो वहां मेरा सम्पर्क उस वक़्त के मशहूर कम्युनिस्ट लीडर कुंवर मुहम्मद अशरफ़ से हुआ, जो उस वक़्त आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के सदस्य होने के साथ साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के भी मेम्बर थे. लेकिन डाक्टर अशरफ़, गाँधी जी की विचारधारा से सहमत नहीं थे और अक्सर कहते थे कि "मुल्क गाँधी के रास्ते से आज़ाद नहीं हो सकता".

उनका मानना था कि जब तक फ़ौज बगावत नहीं करेगी मुल्क आज़ाद नहीं हो सकता. डॉ. अशरफ़ अलीगढ में 'स्टडी सर्कल' चलाते थे और आल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के भी सरपरस्त थे. उन्हीं के कहने पर मैं स्टुडेंट फेडरेशन का मेंबर बना. उसी समय हमारे जिला बुलंदशहर में सूबाई असेम्बली का एक उपचुनाव हुआ. उस चुनाव के दौरान मैं डॉ. अशरफ़ के साथ रहा और कई जगह चुनाव सभाओं को सम्बोधित किया.

उसी मौके पर कांग्रेस के आल इंडिया सद्र जवाहर लाल नेहरु भी खुर्जा तशरीफ़ लाए और उन्हें पहली बार नज़दीक से देखने और सुनने का मौक़ा मिला.

इसके एक साल पहले ही यानी 1936 में लखनऊ में 'स्टुडेंट फेडरेशन' कायम हुआ था और पंडित नेहरू ने इसका उदघाटन किया था जबकि मुस्लिम लीग के नेता कायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिनाह ने स्टुडेंट फेडरेशन के स्थापना सम्मलेन की सदारत की थी.

1940 में स्टुडेंट फेडरेशन में पहली बार विभाजन हुआ और नागपुर में हुए राष्ट्रीय सम्मलेन के बाद गांधीवादी समाजवादियों ने 'आल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस' के नाम से एक अलग संगठन बना लिया जो बाद में कई धड़ों में विभाजित हुआ.

1939 में एएमयू से इंटरमीडिएट करने के बाद डॉ. अशरफ़ की सलाह पर मैं, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बिर्तानी सेना में भरती हो गया और 1943 में जापानियों द्वारा मलाया में युद्ध बंदी बनाया गया. इसी दौरान जनरल मोहन सिंह द्वारा बनायी गयी आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गया  और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्त्व में देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी.

1945 में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गया. 1946 में मुल्तान के किले में रखा गया और कोर्ट मार्शल किया गया और आखिरकार मुझे सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आज़ाद हो जाने की वजह से रिहा कर दिया गया.

मुल्क आज़ाद हो जाने के बाद 1948 में डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुआ और पहले जिला पार्टी की कार्यकारणी का सदस्य और फिर 1956 मैं जिला सचिव चुना गया. 1960 में सोशलिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारिणी का सदस्य तथा 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनने पर उसका पहला राज्य सचिव चुना गया. 1973 में संसोपा और प्रसोपा का विलय होने के बाद बनी सोशलिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश का राज्य मंत्री चुना गया.

1967 मैं उत्तर प्रदेश में पहले संयुक्त विधायक दल और फिर चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने में अहम भूमिका निभायी. आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रल जेल में मुझे डीआइआर और मीसा के तहत बंद रखा गया.

1977 में जनता पार्टी का गठन होने के बाद उसका प्रथम राज्याध्यक्ष बनाया गया और 1978 में 6 वर्षों के लिए विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुआ. आज़ाद हिन्दुस्तान में 50 से अधिक बार विभिन्न जन-आन्दोलनों में मैंने शिरकत की और जेल यात्रा की.

बचपन से ही अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद और खुशहाल देखने की तमन्ना थी जिसमें ज़ात-बिरादरी, मज़हब और ज़बान या रंग के नाम पर किसी तरह का इस्तेह्साल न हो, जहां हर हिन्दुस्तानी सर ऊंचा करके चल सके, जहां अमीर-गरीब के नाम पर कोई भेद-भाव न हो. अपनी जिंदगी में अपनी आंखों के सामने अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद होते हुए देखने की ख्वाहिश तो पूरी हो गई लेकिन अब भी समाज में गैर-बराबरी, भ्रष्टाचार, ज़ुल्म, ज्यादती  और फिरकापरस्ती का जो नासूर फैला हुआ है उसे देखकर बेहद तकलीफ होती है.

दोस्तो, उम्र के इस पड़ाव पर हम तो चिराग-ए-सहरी (सुबह का दिया) हैं, न जाने कब बुझ जाएं लेकिन आप से और आने वाली नस्लों से यही गुज़ारिश और उम्मीद है कि सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा, उसकी मशाल अब तुम्हारे हाथों में है, इस मशाल को कभी बुझने मत देना.

इन्कलाब जिंदाबाद !

आपका

कप्तान अब्बास अली

 

(नोट :आप 95 वर्ष की आयु तक लखनऊ, अलीगढ़, बुलंदशहर और दिल्ली में होने वाले जन-आन्दोलनों में शिरकत करते रहे और अपनी पुरजोर आवाज़ से युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने का काम करते रहे. 11 अक्टूबर, 2014 को अलीगढ़ में दिल का दौरा पड़ने से आपका निधन हो गया.)

 

 

 

 

कप्तान अब्बास अली का संक्षिप्त जीवन परिचय

 

 

 

3 जनवरी 1920 को कलंदर गढ़ी, खुर्जा, जिला बुलंदशहर मैं जन्मे  कप्तान अब्बास अली की प्रारम्भिक शिक्षा खुर्जा और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्द्यालय  मैं हुई.बच्पन से ही क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित रहे और पहले नौजवान भारत सभा और फिर STUDENT FEDRATION के सदस्य बने.1939  मैं अमुवि से INTERMIDIATE  करने के बाद आप दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बिर्तानी सेना मैं भरती हो गए और 1943 मैं जापानियों द्वारा मलाया मैं युद्ध बंदी बनाये गए.इसी दौरान आप जनरल  मोहन सिंह द्वारा बनायी गयी आज़ाद हिंद फ़ौज मैं शामिल हो गए और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेत्रत्त्व मैं देश कि आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी.1945  मैं जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्वारा युद्ध बंदी बना लिए गए.1946 मैं मुल्तान के किले मैं रखा गया कोर्ट मार्शल किया गया और सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आज़ाद हो जाने की वजह  से रिहा कर दिये गए.

 

 

 

मुल्क आज़ाद हो जाने के बाद 1948 मैं डा. राममनोहर लोहिया के नेत्रत्व मैं सोशलिस्ट  पार्टी मैं शामिल हुए और 1966 मैं संयुक्त सोशलिस्ट  पार्टी तथा  1973 मैं  सोशलिस्ट  पार्टी, उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्री निर्वाचित हुए.

 

 

 

1967 मैं उत्तर प्रदेश मैं पहले संयुक्त विधायक दल और फिर पहली ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन करने मैं अहम भूमिका निभायी.आपातकाल के दौरान 1975-77 मैं 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रल जेल मैं DIR और MISA के तहत बंद रहे.1977 मैं जनता पार्टी का गठन होने के बाद उसके सर्वप्रथम राज्याध्यक्ष बनाये गए और 1978 मैं 6 वर्षों के लिए विधान परिषद् के लिए निर्वाचित हुए.

 

 

 

कैप्टिन अब्बास अली आज़ाद हिन्दुस्तान मैं 50 से अधिक बार विभीन्न जन-आन्दोलानोँ  मैं सिविल नाफरमानी करते हुए  जेल गए.2009 मैं आपकी आत्मकथा "न रहूँ किसी का दस्तनिगर" राजकमल प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित कि गयी.आप 95 वर्ष कि आयु  तक लख़नऊ, अलीगढ, बुलंदशहर और दिल्ली मैं होने वाले जन-आन्दोलानोँ मैं शिरकत करते रहे और अपनी पुरजोर आवाज़ से युवा पीड़ी को प्रेरणा देने का काम करते रहे.11 अक्टूबर 2014 को अलीगढ में दिल का दौरा पड़ने से आपका निधन हो गया.