डा रख्शंदा रूही मेहदी
रमजान अरबी कैलेंडर का नौवां महीना होता है. मुस्लमान रामजान में 29 या 30 दिन रोज़े रखते हैं.इस महीने में रोजे रखना हर मुसलमान के लिए एक फर्ज कहा गया है. भूखा-प्यासा रहकर इंसान को किसी भी प्रकार के लालच से दूर रहने और सही रास्ते पर चलने की हिम्मत मिलती है. प्रातः से संध्या तक बगैर अन्न और जल ग्रहण किए अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं. सुबह सूर्योदय से पहले सहरी खाई जाती है और इन दिनों कुरान पढ़ना और अल्लाह की इबादत में लीन रहना होता है.
मान्यता है कि रमजान के महीने के अंतिम सप्ताह की 21,23,25 व 27 वीं रातों में कुरान का नुज़ूल यानी अवतरण हुआ था. इन रातों को शब-ए-कद्र कहा जाता है. मुस्लमान इन रातों में जाग कर नमाज़ और क़ुरा‘न पढ़ते है. अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा मांगते हैं.
रमज़ान शरीफ़ के पवित्र महीने में अपनी सार्मथ्य के अनुसार निर्धनों की मदद करना,रोज़ा इफ़तार करवाना, दान करना पुण्य है. रमज़ान में ज़कात की राषि देना श्रेष्ठ है कि ग़रीब वर्ग रमज़ान और ईद ख़ुशी से मना सकंे.
रमजान का महीना इंसान को अशरफ और आला बनाने का मौसम है. पर अगर कोई सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करे और उसके बंदों से मोहब्बत करने व उनकी मदद करने से हाथ खींचे तो ऐसी इबादत को इस्लाम ने खारिज किया है.
असल में इस्लाम का पैगाम है- अगर अल्लाह की सच्ची इबादत करनी है तो उसके सभी बंदों से प्यार करो और हमेशा सबके मददगार बनो.रमजान का आखिरी रोज़ा ईद के चांद के दीदार पर निर्भर करता है. यह चांद ईद के आगमन का पैगाम लेकर आता है. दसवें महीने शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है.
‘ईद-उल-फितर‘ दरअसल दो शब्द हैं. ईद और फितर. असल में ईद के साथ फितर को जोड़े जाने का एक खास मकसद है. वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान है.
इसी फितर से ‘फितरा‘ शब्द बना है. फितरा अर्थात वह राशि जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं. ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है. इस तरह अमीर के साथ गरीब वर्ग की ईद भी अच्छी तरह मन जाती है. ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है.
यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा का सूचक है. इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलकर अमन और चैन की खुदा से दुआ मांगते है.रमजान में पूरे रोजे रखने वाले का तोहफा ईद है.
इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती. ईद की नमाज के जरिए बंदे खुदा का शुक्र अदा करते हैं.ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है, तो इस ईद पर सेवइयां बनाना बहुत जरूरी है.
सभी मुस्लिम इस खास दिन में एक-दूसरे को ‘ईद मुबारक‘ कहकर गले मिलते हैं. सेवइयों और शीर-खुरमा से एक दूसरे का मुंह मीठा किया जाता है. ईद-उल-फितर का एक ही मकसद होता है कि हर आदमी एक दूसरे को बराबर समझे और इंसानियत का पैगाम फैलाए.
सेवइयों में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्योहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है. मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है.
जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है. औरों के दुख-दर्द को बांटा जाता है. बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है. आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार का उद्देश्य मानव को मानव से जोड़ना है.
इस्लाम का बुनियादी उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण है और ईद का त्योहार इसी के लिए बना है. धार्मिकता के साथ नैतिकता और इंसानियत की शिक्षा देने का यह विशिष्ट अवसर है. ईद का संदेश मानव-कल्याण ही है.
यही कारण है कि हाशिए पर खड़े दरिद्र और दीन-दुःखी, गरीब-लाचार लोगों के दुख-दःर्द को समझें और अपनी कोशिशों से उनके चेहरों पर मुस्कान लाएं, तभी हमें ईद की वास्तविक खुशियां मिलेंगी.यह इबादत ही सही इबादत है. यही नहीं, ईद की असल खुशी भी इसी में है.
ईद-उल-फितर का एक ही मकसद होता है कि हर आदमी एक दूसरे को बराबर समझे और इंसानियत का पैगाम फैलाए.इसलिए सब पिछली बातें भूल जाइये और सब मुस्लिम गैर मुस्लिम जिनसे भी मन मुटाव चल रहा है उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाइये इसी अमल से अल्लाह के यहां यह साबित होगा कि आप ने रमज़ान में सब्र करना सीख लिया था.
डा0 रख़्शंदा रूही मेहदी जानी-मानी साहित्यकार हैं. देवबंद, सहारनपुर की मूल निवासी हैं. इनकी कहानियां आॅल इंडिया रेडियो के विविध भारती,उर्दू सर्विस,राजधानी चैनल से प्रसारित और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.डीडी उर्दू पर ‘ फिर नज़र में फूल महके.....‘ कहानी पर ‘चिल्मन के पार‘ नाम से टेलिफिल्म भी प्रसारित हुई है. फिलहाल दिल्ली के जामिया सीनियर सेकेंडरी स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं.