महाराष्ट्र 75 साल में फ़र्श से अर्श तक: सलमान खान के गणेश विसर्जन वाले शहर ने देखा अनेक बदलाव

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 14-08-2023
Actor Salman Khan joins Ganetsav with family
Actor Salman Khan joins Ganetsav with family

 

-फ़िरदौस ख़ान 
 
भारत को आज़ाद हुए पचहत्तर साल पूरे होने वाले हैं. इन साढ़े सात दशकों में देश में बहुत कुछ बदल गया है. देश के सिरमौर जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल तक बदलाव की बयार बह रही है. देश आज़ादी मिलने की ख़ुशी भी नहीं मना पाया था कि उसे विभाजन का दंश झेलना पड़ा.

इस विभाजन ने देश का भूगोल ही नहीं बदला, बल्कि इसके साथ-साथ अपनों से बिछड़ने का दर्द भी दे दिया. मिलना और बिछड़ना तो दुनिया की रीत है. शायद इसीलिए देश दर्द को भूलने की कोशिश करते हुए नवनिर्माण में जुट गया. 
    
महाराष्ट्र की स्थापना 

देश आज़ाद हो चुका था, लेकिन अभी महाराष्ट्र राज्य वजूद में नहीं आया था. देश में भाषाई आधार पर राज्यों का गठन हो रहा था. ऐसे में मध्य भारत के सभी मराठी भाषी इलाक़ों को मिलाकर एक राज्य बनाने के लिए एक बड़ी मुहिम शुरू की गई.
 
यह मुहिम कामयाब रही और नतीजन पहली मई 1960 को कोंकण, मराठवाड़ा, विदर्भ और अन्य माराठी भाषी इलाक़ों को मिलाकर महाराष्ट्र राज्य की स्थापना की गई. बम्बई को इसकी राजधानी बनाया गया. इसे बॉम्बे भी कहा जाता था. फिर साल 1995 में शिवसेना सरकार ने बम्बई का नाम बदलकर मुम्बई रख दिया. यह नाम मुम्बा देवी के नाम पर रखा गया, जो देवी दुर्गा का ही एक रूप मानी जाती है.  
 
भौगोलिक तौर पर महाराष्ट्र देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है. इसके पश्चिम में अरब सागर है. इसके पड़ौस में गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गुजरात है. महाराष्ट्र के तटीय मैदानी हिस्से को कोंकण कहा जाता है. महाराष्ट्र पठारी क्षेत्र है.  
 
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अर्थव्यवस्था   
 
अर्थव्यवस्था के मामले में महाराष्ट्र देश में पहले पायदान पर है. यह एक कृषि प्रधान राज्य है. इसकी तक़रीबन दो तिहाई आबादी खेतीबाड़ी करती है. यहां की प्रमुख फ़सलों में धान, गेहूं, ज्वार और बाजरा आदि शामिल हैं. दलहन में चना, अरहर, मूंग, मसूर, उड़द और तिलहन में मूंगफली, सूरजमुखी और सोयाबीन आदि की खेती की जाती है.
 
नक़दी फ़सलों में सब्ज़ियां, हल्दी, अदरक, गन्ना और कपास आदि की खेती होती है. यहां फल और मेवे भी ख़ूब होते हैं, जिनमें आम, संतरा, कीनू, केला, अंगूर और काजू आदि शामिल हैं. यहां के वन भी रोज़गार में सहायक सिद्ध हुए हैं.
 
इनसे लकड़ी, बांस, चंदन और तेंदू पत्ते मिलते हैं. इन पत्तों से बीड़ियां बनाई जाती हैं. यहां पशु पालन और मत्स्य पालन भी होता है. समुद्री मछली पकड़ने के मामले में यह केरल के बाद दूसरे पायदान पर है. 
 
औद्योगिक क्षेत्र में भी महाराष्ट्र ने बहुत तरक़्क़ी की है. यहां कपास ख़ूब होती है. इसलिए यहां सूती कपड़े की मिलें हैं. यहां बड़े और मध्यम ही नहीं, कुटीर उद्योग भी ख़ूब फल-फूल रहे हैं. यहां कृषि उपकरण, परिवहन उपकरण, मशीनरी, सिलाई मशीन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, टेलीविज़न, रेडियो, घड़ी, रेफ़्रिजरेटर, वाशिंग मशीन आदि से लेकर सुई तक का उत्पादन होता है.
 
साल 1976 में मुम्बई के क़रीब देश का पहला समुद्री तेल कुआं स्थापित किया गया था. इससे राज्य में पेट्रो रसायन उद्योग को बढ़ावा मिला. फ़िल्म उद्योग ने भी यहां की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने का काम किया है. यहां की हस्तशिल्प की चीज़ें भी बहुत प्रसिद्ध हैं.   
 
पर्यटन भी महाराष्ट्र में आय का प्रमुख साधन है. पर्यटकों को यहां का नैसर्गिक सौन्दर्य अपनी तरफ़ खींचता है. पंचगनी भी यहां का एक ख़ूबसूरत पर्यटन क्षेत्र है. महाराष्ट्र की प्राचीन अजन्ता व एलोरा की गुफ़ाएं, कन्हेरी गुफ़ाएं, कार्ला गुफ़ाएं और एलीफ़ेंटा गुफ़ाएं देखने लायक़ हैं.
 
यूनेस्को ने अजन्ता और एलोरा गुफ़ाओं को विश्व धरोहर घोषित किया है. औरंगाबाद में बीबी का मक़बरा है, जिसे दक्खन का ताज कहा जाता है. यह भी बहुत ख़ूबसूरत है. इसके अलावा दौलताबाद क़िला, सिंधुदुर्ग, सिंहगढ़ क़िला, कोलाबा क़िला, जयगढ़ क़िला, रायगढ़ क़िला, लोहागढ़ क़िला, मुरुद जंजीरा क़िला, आग़ा ख़ान पैलेस और गेटवे ऑफ़ इंडिया यहां के आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं. धार्मिक स्थलों में शिद्धिविनायक मन्दिर, महालक्ष्मी मन्दिर, त्र्यंबकेश्वर मन्दिर, शनि शिंगणापुर मन्दिर और नांदेड़ का गुरुद्वारा आदि विख्यात हैं.  
 
फ़िल्म उद्योग 
 
महाराष्ट्र का नाम आते ही ज़ेहन में मुम्बई का अक्स उभर आता है. मुम्बई सपनों की नगरी, माया नगरी और देश की आर्थिक राजधानी है. मुम्बई एक ऐसा शहर है, जिसका नशा सिर चढ़कर बोलता है. जबसे यहां फ़िल्में बननी शुरू हुई हैं, तभी न जाने कितने, हज़ारों, लाखों या शायद करोड़ों नौजवान आंखों में हीरो-हीरोइन बनने के इन्द्रधनुषी ख़्वाब लिए यहां आए. अपने मख़मली बिस्तर को छोड़कर उन्होंने यहां फ़ुटपाथ पर रातें गुज़ारी. घर का लज़ीज़ खाना छोड़कर यहां फ़ाक़ों पर फ़ाक़े किए. 
 
मुम्बई में आने वाले कुछ ख़ुशक़िस्मत ऐसे थे, जिन्होंने फ़िल्म जगत पर राज किया. इनमें दत्तत्रेय दामोदर दाबके, पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त, देवानन्द, राजकुमार, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, मनोज कुमार, फ़िरोज़ ख़ान, संजय ख़ान, अमिताभ बच्चन, महमूद, असरानी, विनोद खन्ना, रजनीकांत, जैकी श्राफ़, गोविन्दा, इरफ़ान ख़ान, अक्षय कुमार और शाहरुख़ ख़ान आदि शामिल हैं. नायिकाओं में कमला, देविका रानी, नादिरा, मधुबाला,  सायरा बानो, वैजयन्ती माला, मुमताज़, वहीदा रहमान, आशा पारेख, हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर, नूतन, तनूजा, रेखा, राखी, विद्या सिन्हा, दीप्ति नवल, शबाना आज़मी,  हेलेन, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित और अनुष्का शर्मा आदि ने फ़िल्म जगत में अपनी पहचान क़ायम की. 
 
इनके अलावा सिने जगत से जुड़े अन्य क्षेत्रों में नाम रौशन करने वालों की फ़ेहरिस्त भी बहुत लम्बी है. भारतीय फ़िल्म उद्योग का 'पितामह’ धुंडीराज गोविन्द फ़ाल्के यानी दादा साहब फ़ाल्के, निर्देशक के आसिफ़, संगीतकार नौशाद, गायक मुहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, कैफ़ी आज़मी, सलीम और जावेद जैसे कितने ही नौजवान यहां आए और फ़िल्मी दुनिया में छा गये.
   
पहली हिन्दी मूक फ़िल्म राजा हरिशचन्द्र, पहली बोलती हिन्दी फ़िल्म आलमआरा और पहली रंगीन फ़िल्म किसान कन्या से लेकर अब तक अनगिनत फ़िल्में बन चुकी हैं और आगे भी यह सफ़र यूं ही चलता रहेगा. 
 
फ़िल्म उद्योग की वजह से मुम्बई सपनों की नगरी बन पाई. यह दुनियाभर में मशहूर है. यह कहना ग़लत नहीं होगा कि हॉलीवुड के बाद बॉलीवुड का ही नाम आता है. इससे पहले लाहौर और कोलकाता में फ़िल्में बना करती थीं.
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भीड़ का सबब 
 
मुम्बई का नाम आते ही ज़ेहन में एक तस्वीर और उभरती है, जिसमें हर तरफ़ भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है. पहले ऐसा नहीं था. यहां इतनी भीड़ नहीं थी. मुम्बई की चौड़ी सड़कों पर बहुत कम गाड़ियां नज़र आती थीं, लेकिन जैसे-जैसे मुम्बई का फ़िल्म उद्योग उन्नति करता गया वैसे-वैसे यहां भीड़ भी बढ़ती गई.
 
दरअसल यह भीड़ उन लोगों की है, जो रोज़गार को तलाश में देश के कोने-कोने से यहां आते हैं. महाराष्ट्र के उद्योगों की वजह से भी यहां की आबादी में इज़ाफ़ा हुआ. इन उद्योगों में काम करने वाले लोगों में ज़्यादातर बाहर के लोग हैं, जो अब यहीं के होकर रह गए. 
 
अगर हम आज़ादी के वक़्त की बात करें, तो उस वक़्त यहां की आबादी आज के मुक़ाबले में बहुत कम थी. देश की पहली जनगणना साल 1951 में हुई थी. चूंकि महाराष्ट्र का गठन इसके नौ साल बाद हुआ. इसलिए देश की साल 1961 में हुई दूसरी जनगणना से ही यहां की आबादी का पता चलता है.  
 
साल 1961 की जनगणना में महाराष्ट्र की आबादी 39,553,718 थी, जो साल 2011 में बढ़कर 112,374,333 हो गई. इनमें हिन्दू 79.83 फ़ीसद, मुसलमान 11.54 फ़ीसद, बौद्ध 5.81 फ़ीसद, जैन 1.25 फ़ीसद, ईसाई 0.96 फ़ीसद और सिख 0.20 फ़ीसद थे.
 
मौजूदा वक़्त की अनुमानित आबादी 124,904,071 बताई जाती है. यहां की कुल साक्षरता दर 82.34 फ़ीसद थी, जो देश की औसत साक्षरता दर 74.04 फ़ीसद से बेहतर है. इनमें पुरुषों की साक्षरता दर 88.36 फ़ीसद थी, जबकि महिलाओं की यह दर बहुत ही कम 75.89 फ़ीसद थी. 
 
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सांस्कृतिक विरासत  

महाराष्ट्र की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत भी बहुत ही समृद्ध है. यह राज्य अपनी गौरवशाली संस्कृति को ज़िन्दा रखने में अहम भूमिका निभा रहा है. यहां शास्त्रीय संगीत, गायन और नृत्य शैलियों के प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं, जिनमें लावणी, कोली पोवाड़ा और तमाशा आदि लोककलाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां के बाशिन्दे लोकसंगीत के दीवाने हैं. यहां के धार्मिक और मौसमी तीज-त्यौहारों पर लोकसंगीत के कार्यकर्मों का आजोजन किया जाता है. 
 
महाराष्ट्र की संस्कृति की बहुत बड़ी ख़ासियत यह भी है कि इसने साम्प्रदायिक और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, एकनाथ, समर्थ रामदास, शिर्डी के साईं बाबा और हज़रत हाजी अली शाह बुख़ारी रहमतुल्लाह अलैह आदि ने जनमानस को प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का संदेश दिया. सूफ़ी-संतों के भक्ति काव्य ने जनमानस में भक्ति का संचार किया. इसी भक्ति भावना ने समाज में साम्प्रदायिक सद्भाव की अलख जलाई.     
 
इस पावन धरती पर अलग-अलग मज़हबों, पंथों, भाषाओं, संस्कृतियों, जातियों और वर्गों के लोग मिलजुल रहते हैं. यहां की माटी में सद्भावना की महक है. यह यहां के पानी का ही असर है कि जो भी यहां आता है, भले ही वह देश के किसी भी प्रांत का रहने वाला हो, ‘महाराष्ट्रियन’ बन जाता है. मिसाल के तौर पर मुम्बई के वरली तट पर एक टापू पर स्थित हज़रत हाजी अली शाह बुख़ारी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं जाते, बल्कि हर मज़हब के लोग जाते हैं. इसी तरह गणेश चतुर्थी के उत्सव में हिन्दुओं के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी शामिल होते हैं. 
 
सलमान ख़ान और गणपति बप्पा 
 
मशहूर फ़िल्म अभिनेता सलमान ख़ान पिछले बीस साल से गणेश चतुर्थी पर पूरे विधि-विधान से गणपति की स्थापना कर रहे हैं. गणेश महोत्सव के दौरान उनके भाई सोहेल ख़ान, अरबाज़ खान और उनके वालिदैन भी बप्पा की सेवा करते हैं. इस दौरान सलमान ख़ान कार्यक्रम नहीं करते.    
 
खानपान  

महाराष्ट्र का मुख्य भोजन चावल है. यहां के लोग चावल के साथ दाल, सब्ज़ी, गोश्त, मछली और अंडे खाना पसंद करते हैं. यहां के व्यंजनों में पूरन पोली, थालीपीठ, पाव भाजी, वड़ा पाव और मोदक आदि शामिल हैं. वड़ा पाव एक ऐसा खाना है, जो कम पैसों में भी पेट भर देता है.
 
पहनावा

यहां की महिलाएं एक ख़ास तरह की साड़ी पहनती हैं, जो तक़रीबन नौ गज़ की होती है. पुरुष धोती के साथ क़मीज़ और कुर्ता पहनते हैं. वे सिर पर केसरिया रंग की पगड़ी बांधते हैं. कुछ लोग सफ़ेद टोपी पहनते हैं, जिसे बदी और पेठा कहा जाता है. महिलाएं नाक में विशेष प्रकार की नाथ पहनती हैं. यहां विवाहित महिलाएं हरे कांच की चूड़ियां पहनती हैं.
 
खेल 

खेल महाराष्ट्र की संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं. यहां का राजकीय खेल कबड्डी है, लेकिन यहां क्रिकेट सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है. इसके अलावा यहां फ़ुटबॉल, वालीबॉल, घुड़ दौड़, हॉकी, बैडमिंटन और टेबल टेनिस आदि भी ख़ूब पसंद किए जाते हैं.
      
मुम्बई की खिचड़ी भाषा यहां की सांझी संस्कृति का प्रतीक है. यहां लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. उनके दरम्यान किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं होता. उनका सारा ध्यान अपने सपनों और अपनों पर ही होता है.
 
कौन क्या कर रहा है, उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है. सब बिंदास ज़िन्दगी बसर करते हैं. यहां रातें भी चहकती हैं और रातभर सड़कों पर आवागमन रहता है. शायद मुम्बई कभी नहीं सोती. ये जागने वालों का शहर है. हां, यहां की सुबहें ज़रूर ऊंघती हुई कुछ अलसाई सी होती हैं.       
 
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)