जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
हिंदुस्तान की 'सुर कोकिला' लता मंगेशकर की आवाज़ को मुकम्मल बनाने और उन्हें शिखर तक पहुंचाने में मुस्लिम शख्सियतों का बहुत बड़ा योगदान है.बड़े गुलाम अली खां, मास्टर गुलाम हैदर, महबूब खान, जां निसार अख़्तर, (अभिनेता) दिलीप कुमार, राजा मेंहदी अली खां, कैफ़ी आज़मी, नौशाद, साहिर लुधियानवी, शकील बदायूंनी, हसरत जयपुरी, खुम़ार बाराबंकवी, नक्श लायलपुरी, कैफ़ भोपाली से लेकर फारु़ख कैसर, ज़ावेद अख़्तर और एआर रहमान तक को भुलाया नहीं जा सकता.
लता मंगेशकर ने अपनी पूरी जिंदगी चौदह जुबान में 50 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं. सन् चौहत्तर में 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' भी बनाया.विश्व में सबसे ज्यादा गीत गाने वाली गायिकाओं में उनका नाम शुमार है.
लता मंगेशकर को 'सुर की देवी' मानते थे बड़े गुलाम अली
पटियाला घराने के मशहूर क्लासिकल गायक बड़े गुलाम अली खां गायिका लता मंगेशकर को 'सुर की देवी' मानते थे.2अप्रैल, 1902को पाकिस्तान के कसुर प्रांत में जन्मे और हिंदुस्तान के हैदराबाद (अब तेलांगना) में 25अप्रैल, 1968को गुज़रे बड़े गुलाम अली खां ने के. आसिफ़ निर्देशित क्लासिक ड्रामा फिल्म 'मुगल-ए-आजम़' (1960) में दो गाने भी गाए हैं.
इस क्लासिक मूवी में लता मंगेशकर की भी आवाज़ है.कहते हैं कि हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास में 'मुगल-ए-आज़म' के गानों का मुकाबला अभी तक किसी फिल्म ने नहीं किया है.इस फिल्म में बड़े गुलाम अली खां ने दो गाने गाए थे और इसके लिए निर्देशक/ निर्माता के. आसिफ़ से प्रति गीत 25हजार रुपए लिया उन्होंने था, जबकि 'मुगल-ए-आज़म' में लता मंगेशकर ने नौ गाने गाए थे.
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी को मिले थे सिर्फ पांच सौ
'मुगल-ए-आज़म' फिल्म में लता मंगेशकर को गाना गाने के लिए प्रति गीत पांच सौ रुपए दिए गए थे.इतनी ही रकम रफी साहेब को भी दी गई थीं.लता मंगेशकर से संबंधित भारतीय सिनेमा के इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि निर्माता/निर्देशक के. आसिफ़ ने जब बड़े गुलाम अली खां को इस फिल्म में गंवाने के लिए उनसे संपर्क किया, तो गुलाम अली खां ने गाने से इंकार कर दिया. बहुत मनाने पर उन्होंने के. आसिफ़ के सामने शर्त रखी और कहा - 'मैं एक गीत के लिए 25हजार लूंगा.'
इस तरह 'मुगल-ए-आज़म' के निर्माता आखिर में तैयार हुए थे.बड़े गुलाम अली खां ने इस फिल्म में दो गाने गाए थे.एक था 'प्रेम जोगन बनके...' और दूसरा था 'शुभ दिन आओ राजदुलारा.ये दोनों दो रागों पर आधारित थे.एक था सोहिनी राग और दूसरा था रागश्री.
इस फिल्म में संगीत नौशाद साहेब ने दिया था और गीत थे शकील बदायूंनी के.'मुगल-ए-आज़म' के गानों की रिकार्डिंग के वक्त ही बड़े गुलाम अली खां ने परख लिया था 'एक दिन देश की बड़ी गायिका बनेंगी लता मंगेशकर।' आखिर में हुआ भी वैसा ही.
मास्टर गुलाम हैदर गायिका लता मंगेशकर के वास्तविक गुरु थे
पंजाबी लोक संगीत के जानकार मास्टर गुलाम हैदर थे लता मंगेशकर के असली गुरु.यह 45-46का दौर था.लता के संघर्षों के दिन थे.घंटों सड़कों पर चलतीं और सिनेमा में गाने के लिए काम मांगतीं.हैदराबाद के सिंध प्रांत में वर्ष 1908 में जन्मे और 9 नवंबर, 1953 में लाहौर में गुजऱे मास्टर गुलाम हैदर से एक रोज़ लता की मुलाकात हुई.एकदम शुरू में गुलाम हैदर हिंदुस्तान में थे और हिंदुस्तानी सिनेमा से जुड़े सभी निर्माता/निर्देशक को जानते थे.बाद में पाकिस्तान चले गए.
पहली मुलाकात में ही लता मंगेशकर की प्रतिभा को पहचानने में गुलाम हैदर को तनिक भी देर नहीं लगी.उस जमाने में बंबई टॉकीज का बड़ा नाम था.लता मंगेशकर ने लिखा- 'गुलाम हैदर मेरे गॉडफादर थे.उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर निर्देशकों से मिलवाया, मेरे लिए लड़ाई लड़ी और काम दिलवाया.'
वे आगे कहती हैं,'मास्टर गुलाम हैदर पहले संगीत निर्देशक थे, जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया.' बाद के दिनों में लता मंगेशकर के अलावा सुधा मल्होत्रा और सुरिंदर कौर को भी सिनेमा की दुनिया में पेश करने वाले मास्टर गुलाम हैदर ही थे.गुलाम हैदर की एक फिल्म थीं 'मजबूर' (1948).इसमें पांच गाने लता मंगेशकर ने गाए थे.
नाज़िम पानीपती इस फिल्म 'मजबूर' के गीतकार थे.इतिहास बताता है ढोलक जैसे वाद्ययंत्र को मास्टर गुलाम हैदर ने पहली दफा फिल्मों में पेश किया था.गुलाम हैदर पियानो के भी मास्टर थे.उस दौर में मदन मोहन और नौशाद उनके सहायक हुआ करते थे.
'मदर इंडिया' ने बदली लता की किस्मत
इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है महबूब खान की सोशल एपिक फिल्म 'मदर इंडिया' (1957) ने लता मंगेशकर समेत कइयों की जिंदगी पलट दी.उस समय 'मदर इंडिया' छह मिलियन में बनी थीं और 80मिलियन कमाया.25अक्टूबर, 1957को बंबई, दिल्ली और कलकत्ता समेत कई शहरों में रिलीज हुई 'मदर इंडिया' में लता मंगेशकर के कई गाने थे.
एक गाना तो तीनों बहनों (लता, मीना और ऊषा) ने मिलकर गाया था.यह गाना था 'दुनिया में हम आए हैं, तो...).कुल 12गानों में लता मंगेशकर के गाने उस दौर में खूब सुने जाते थे.फिल्म 'मदर इंडिया' में संगीत था नौशाद साहेब का और गीत शकील बदायूंनी ने लिखा था.
बहुत कम लोग जानते हैं 'मदर इंडिया' को वज़ाहत मिर्ज़ा और एस अली रज़ा ने लिखा था.एफए ईरानी ने इस ऐतिहासिक मूवी का छायांकन किया था और शम्सुद्दीन कादरी ने 'मदर इंडिया' का संपादन.इस फिल्म में लता मंगेशकर का गाया एक और गाना है 'नगरी नगरी द्वारे द्वारे', जो सात मिनट 29सेकेंड का है.
राजा मेंहदी अली खां और एम सादिक को याद करते हैं पुराने लोग
लता मंगेशकर का जिक्र आते ही सिनेमा से जुड़े दो मुस्लिम शख्सियत को पुराने लोग जरूर याद करते हैं.एक हैं गीतकार राजा मेंहदी अली खां और दूसरे 'बहू बेगम' (1967) में पैसा लगाने वाले एम सादिक.राज खोसला निर्देशित फिल्म 'वो कौन थी' (1964) में लता मंगेशकर का गाया 'लग जा गले' अब भी लोग दिल से गुनगुनाते हैं और 'बहू बेगम' फिल्म का लता मंगेशकर का गाया 'दुनिया करें सवाल तो हम क्या जवाब दें...'.
फिल्म 'आखिरी खत' (1966) में कैफ़ी आज़मी का लिखा 'बहारो मेरा जीवन भी संवारो' को तो कोलकाता के दर्शक जैसे अपने ज़िगर से लगाके अब भी बैठे हैं.संगीतकार ख्य्याम के धुनों पर तैयार 'आखिरी खत' कलकत्ता में 30दिसंबर, 1966को रिलीज हुई थीं.साहिर लुधियानवी का लिखा और लता मंगेशकर का गाया 'अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम' (हम दोनों, 1961) गीत भी तो सबके भीतर तक बसा है कोलकाता में.