जानिए, जतीन्द्र नाथ दास की शहादत ने कैसे भारतीयों में राष्ट्रवाद जगाया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-10-2023
Know how the martyrdom of Jatindra Nath Das awakened nationalism among Indians.
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साकिब सलीम
 
‘ आरोप यह है कि जब मानव जीवन खत्म हो रहा था, तब सरकार शांत बैठी थी, कि वो कदम नहीं उठा रही है जो उठाना उनका स्पष्ट कर्तव्य है. सर, मैंने सुबह ही इस भूख हड़ताल का इतिहास बता दिया था. जून के मध्य में भूख हड़ताल शुरू हुई और हड़ताल के 63 वें जतींद्र दास की मृत्यु हो गई.

कई दिनों तक खबरें आती रहीं कि उनका जीवन समाप्त हो रहा है. किसी भी क्षण वह अंतिम सांस ले सकते हैं. खबरें आईं कि अन्य भूख हड़ताल करने वाले भी थे जो बहुत ही नाजुक स्थिति में थे. सरकार इस समय क्या कर रही थी . ? ऐसा कहा जाता है, श्रीमान कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसूरी बजा रहा था.
 
हमारी सौम्य सरकार नीरो से एक बेहतर सरकार बन गई है.” ये पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा 14 सितंबर 1929 को विधान सभा में कहे गए शब्द हैं, जिसके एक दिन बाद जतींद्र नाथ दास की अमानवीय परिस्थितियों के खिलाफ 63 दिनों की भूख हड़ताल के बाद मृत्यु हो गई थी.इसमें भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश सरकार द्वारा जेलों में रखा गया था.
 
विभिन्न जेलों में बंद भारतीय क्रांतिकारियों ने जेल में उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार के विरोध में जुलाई 1929 में आम भूख हड़ताल की. जतीन्द्र लाहौर जेल में थे, जहां वे भूख हड़ताल करने वालों में शामिल हो गए. इनमें भगत सिंह भी शामिल थे.
 
28 जनवरी 1930 को भगत सिंह और उनके साथियों ने सरकार को एक पत्र में लिखा, मियांवाली जेल में बंद अन्य लोगों में सरदार काबुल सिंह और सरदार गोपाल सिंह, रावलपिंडी जेल में बंद मास्टर मोटा सिंह को भी प्रतिशोधात्मक सजा दी गई है.
 
आम भूख हड़ताल में शामिल हैं. इनमें से अधिकांश मामलों में कारावास की अवधि बढ़ा दी गई है, जबकि कुछ को विशेष श्रेणी से हटा भी दिया गया. आगरा सेंट्रल जेल में बंद जचिन्द्र नाथ सान्याल, राम किशन खत्री और सुरेश चन्द्र भट्टाचार्य, राज कुमार सिन्हा, सचिन्द्र नाथ बक्शी, मोनमोथो नाथ गुप्ता और कई अन्य काकोरी कांड के कैदियों को कड़ी सजा दी गई है.
 
यह विश्वसनीय रूप से पता चला है कि सान्याल को बार-फेट्स और एकान्त सेल-कारावास दिया गया और परिणामस्वरूप उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई. उनका वजन अठारह पाउंड कम हो गया. बताया जाता है कि भट्टाचार्य तपेदिक से पीड़ित हैं. बरेली जेल के तीन कैदियों को भी सजा हुई है. पता चला है कि उनके सभी विशेषाधिकार वापस ले लिए गए हैं.
 
ब्रिटिश सरकार ने जतिन को जबरदस्ती खाना खिलाने की कोशिश की जिससे उन्हें अंदरूनी चोटें आईं, लेकिन वे उसका संकल्प नहीं तोड़ सके. इन चोटों के कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं पैदा हो गईं और भोजन के बिना उनकी हालत बिगड़ गई.
 
63 दिनों की लंबी भूख हड़ताल के बाद 13 सितंबर को उन्होंने दुनिया छोड़ दी. केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को उस तरह से प्रेरित करने के लिए जो बहुत कम लोग कर सके.सुभाष चंद्र बोस ने उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए लाहौर से कोलकाता लाने की व्यवस्था की.
 
इस जुलूस का नेतृत्व प्रसिद्ध क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी ने किया. शव को लाहौर से ट्रेन में ले जाया गया. भारतीयों के लिए यह ट्रेन एक प्रकार से तीर्थस्थल बन गई. वह जहां से भी गुजरती, लोग हजारों की संख्या में जतिन के शव के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते.
 
कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी और जवाहर लाल नेहरू ने ट्रेन का स्वागत किया. कोलकाता में सुभाष ने स्वयं भारी भीड़ के साथ जतिन के पार्थिव शरीर का स्वागत किया.जतिन की शहादत से विधान सभा भी हिल गई. विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों ने अपने शोक संदेश भेजे. सुभाष ने भारत में अत्याचारी ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का लक्ष्य बनाया.
 
पंडित मदन मोहन मालवीय ने विधान सभा में घोषणा की, उनमें से हर कोई, देशभक्ति की उच्च भावना और अपने देश की स्वतंत्रता की तीव्र इच्छा से प्रेरित है.बर्दवान के अमर नाथ दत्त ने विधानसभा में कहा, “सर, मैं सरकार पर जतींद्रनाथ दास की हत्या का आरोप लगाता हूं, जिन्होंने भारत में राजनीतिक कैदियों के प्राथमिक अधिकार की रक्षा के लिए अपना जीवन लगा दिया.
 
सरकार जानती है कि ये युवा किस सामग्री से बने है. उन्होंने अपने भाषण का समापन जोशपूर्ण ढंग से भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की भविष्यवाणी करते हुए किया.अमरनाथ ने कहा, लेकिन सर, ऐसे मामलों में उन्हें (ब्रिटिश सरकार को) कौन सा रास्ता अपनाना चाहिए, यह बताना हमारे लिए बेकार है, क्योंकि मैं जानता हूं कि वे नेक रास्ते पर नहीं चलेंगे.
 
लुटेरे और मुफ्तखोर ऐसा नहीं करते. न ही हत्यारे. मैं सिर्फ उन्हें याद दिलाता हूं. उनके एक कवि के शब्दों में, जो मैंने तब पढ़ा था जब मैं आठ या दस साल का लड़का था. थोड़े बदलाव के साथ- इंग्लैंड नष्ट हो जाएगा, यह शब्द उस खून में लिखो जो उसने बहाया है, निराश और घृणित रूप से नष्ट हो जाओ, अपराधबोध के रूप में गहरे विनाश में.
 
और मैं अपने कवि रवीन्द्रनाथ के भविष्यसूचक शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूं-भोजा तेर भारी हेले, दुब्बे तारिखां यानी पाप का बोझ ज्यादा होने पर बर्तन डूब जाएगा. मैं आपको आपके मुंह पर बता दूं कि भूल-चूक और तोर ध्वज धुले लुटो जैसे पापों के लिए आपका डूब जाना तय है. आपका झंडा धूल में मिला दिया जाएगा.