फरहान इसराइली / जयपुर
भारत में पतंगबाजी का प्रचलन प्राचीन काल से रहा है.यह त्यौहार देशभर में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है.जहां एक ओर पतंगबाजी एक मनोरंजन का साधन है, वहीं दूसरी ओर यह कई जगहों पर सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी रखती है.जयपुर, जो अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ पतंगबाजी का न केवल एक ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि यह शहर की सांप्रदायिक एकता और सद्भाव का प्रतीक भी बन चुकी है.
जयपुर का पतंगबाजी से गहरा संबंध है.यह परंपरा राजा-महाराजाओं के दौर से चली आ रही है.खासकर मकर संक्रांति के अवसर पर यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.इस दिन, आसमान में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगें न केवल जयपुर के नीले आकाश को सजाती हैं, बल्कि यह गंगा-जमुनी तहजीब की भी मिसाल प्रस्तुत करती हैं.
यहां के हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय इस परंपरा को समान रूप से मनाते हैंऔर यह इस शहर की सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है.
हांडीपुरा: पतंग बाजार का केंद्र
जयपुर के पुराने शहर स्थित हांडीपुरा बाजार, पतंगबाजी के लिए सबसे प्रमुख स्थल है, जहाँ 150 साल पुराना पतंग बाजार है.संक्रांति के दिन इस बाजार की दुकानें रंग-बिरंगी पतंगों से सजी रहती हैं, जो दिनभर आसमान में उड़ती हैं.हांडीपुरा बाजार में पतंग बनाने और बेचने का काम मुख्यतः मुस्लिम कारीगरों द्वारा किया जाता है
.यहां के कारीगरों का नाम पूरे देश में प्रसिद्ध है.जयपुर के महाराज सवाई राम सिंह ने पतंगबाजी को अपनी शाही परंपरा के रूप में अपनाया था और इसे आम जनता के बीच फैलाया था.तब से यह परंपरा हर साल मकर संक्रांति के दिन पूरी धूमधाम से मनाई जाती है.
पतंग बनाने का पारंपरिक कला
जयपुर के पतंग बनाने के कारीगर इसे एक कला मानते हैं.पतंग बनाने में पूरी तरह से पारंपरिक तरीके अपनाए जाते हैं.कागज, बांस की छड़ियां, धागा और मैदा घाई जैसे सामग्री से पतंगे तैयार की जाती हैं.पतंग बनाने में एक दिन का समय लग सकता है.इस प्रक्रिया में चार से पाँच लोग एक साथ काम करते हैं.
पतंग बनाने की कला को सदियों से परिवार दर परिवारلकिया जा रहा है, और कई कारीगर इस पेशे में अपनी पूरी ज़िंदगी लगा चुके हैं.
किसी भी आकार की पतंग: जयपुर में सभी के लिए
जयपुर में पतंगों की विविधता देखकर कोई भी हैरान रह सकता है.यहां छोटे से लेकर बड़े आकार की पतंगे बनाई जाती हैं.विभिन्न प्रकार की पतंगों की मांग रहती है.कुछ दुकानदार तो खासतौर पर सेलिब्रिटी चेहरों वाली पतंगें भी बनाते हैं.
73 वर्षीय अब्दुल गफूर अंसारी, जो सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं, बताते हैं कि उन्होंने शाही परिवारों के अलावा, स्वतंत्रता सेनानियों और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों की तस्वीरों वाली पतंगे बनाई हैं.उनके पास अब तक कई महत्वपूर्ण नेताओं और मशहूर हस्तियों के चेहरे वाली पतंगों का बड़ा संग्रह है.उनका कहना है कि वे इसे व्यवसाय के रूप में नहीं बल्कि अपने शौक के रूप में करते हैं और यह कला उन्हें जीवनभर करना है.
ऑनलाइन कारोबार का विस्तार
आजकल पतंगबाजी का कारोबार केवल स्थानीय बाजार तक ही सीमित नहीं है.जयपुर के पतंग निर्माता अब ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से अपनी पतंगों की आपूर्ति करते हैं.विदेशों में भी जयपुर की पतंगे बहुत लोकप्रिय हो गई हैं, और थाईलैंड, चीन जैसे देशों से आयातित पतंगे भी जयपुर में बिकती हैं.
अब्दुल हमीद, जो हांडीपुरा में अपनी दुकान चलाते हैं, बताते हैं कि उनके पास विदेशी पतंगों की एक विस्तृत रेंज है, जिनमें ड्रैगन, परी और कार्टून पात्रों की पतंगें शामिल हैं.ये पतंगे 200 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक बिकती हैं.
मोहम्मद शाहिद की पतंग बनाने की कला
जयपुर के अजमेरी गेट क्षेत्र के रहने वाले मोहम्मद शाहिद पिछले 70 सालों से पतंग बनाने का काम कर रहे हैं.उन्होंने इस कला को गुजरात के अहमदाबाद से सीखा था.वे बताते हैं कि एक कागज की रिम से लगभग 900 पतंगे तैयार की जाती हैं.
शाहिद का परिवार इस पारंपरिक कला को आगे बढ़ा रहा है, और अब वे मकर संक्रांति के सीजन में 3 से 4 लाख पतंगे तैयार कर लेते हैं.उनके द्वारा बनाई गई पतंगों की डिमांड नेताओं, मंत्रियों और खास हस्तियों में भी रहती है.
राजस्थानी पर्यटन में पतंग उत्सव
जयपुर में पर्यटन विभाग द्वारा हर साल जल महल पैलेस के झील के किनारे पतंगबाजी का एक विशेष उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें पूरा शहर भाग लेता है.इस पतंग उत्सव का उद्देश्य स्थानीय कारीगरों और व्यापारियों को बढ़ावा देना है, साथ ही इस रंगीन और दिलचस्प खेल को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन को बढ़ावा देना है.
जयपुर की पतंगबाजी की परंपरा केवल एक मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि यह शहर की सांप्रदायिक एकता और सद्भाव का प्रतीक बन चुकी है.पतंगबाजी की यह परंपरा जयपुर की गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाती है, और यह इस शहर के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा है.
पतंग निर्माता समुदाय के कारीगरों का योगदान इस कला को जीवित रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और मकर संक्रांति का यह पर्व जयपुर में सामूहिक उत्साह और रंग-बिरंगी पतंगों के साथ मनाया जाता है, जो शहर की विविधता और समन्वय को दर्शाता है.