सद्भाव की धरती केरल

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 13-08-2023
Kerala Culture and Communal Harmony
Kerala Culture and Communal Harmony

 

-फ़िरदौस ख़ान

दक्षिण भारत का राज्य केरल अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में है. इसके अप्रतिम सौन्दर्य की वजह से इसे ‘ईश्वर का घर’ भी कहा जाता है. यहां का मौसम हमेशा गुलाबी रहता है. यहां बारिश भी ख़ूब होती है, इसलिए चारों तरफ़ हरियाली छाई रहती है. यह राज्य जितना ख़ूबसूरत है, उतनी ही ख़ूबसूरत यहां की तहज़ीब भी है. यहां विभिन्न धर्मों, पंथों और संस्कृतियों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं. यह साम्प्रदायिक सद्भाव की धरती है.   

अरबी तहज़ीब 

केरल में मुसलमानों की अच्छी ख़ासी आबादी है. वैसे तो केरल की भाषा मलयालम है, लेकिन यहां के मुसलमान अरबी भाषा ज़्यादा बोलते हैं. यहां के मुसलमानों पर अरबी तहज़ीब का असर ज़्यादा देखने को मिलता है. इसकी वजह यह है कि यहां के तक़रीबन हर परिवार का एक शख़्स अरब में नौकरी करता है.

अरब में रहकर वह ख़ुद तो वहां के रंग में रंग ही जाता है, साथ ही वह अपने घरवालों को भी उसी रंग में रंग लेता है. चूंकि अरब एक वहाबी मुल्क है, इसलिए यहां के मुसलमान भी इसी मसलक को मानते हैं. केरल में सूफ़ीज़्म न के बराबर है. यहां सिर्फ़ वही त्यौहार मनाए जाते हैं, जो अरब में मनाए जाते हैं. इनके मनाने का तरीक़ा भी अरब वाला ही है यानी त्यौहारों पर नियाज़ नज़र नहीं दिलाई जाती.

इसके साथ ही यहां किसी की मौत पर तीन दिन से ज़्यादा ग़म भी नहीं मनाया जाता. इरफ़ान का कहना है कि तीन दिन से ज़्यादा ग़म मनाना इस्लाम के ख़िलाफ़ है.   कासरकोड ज़िले के मुसलमान मज़हबी लिहाज़ से ज़्यादा कट्टर हैं. मर्द कुर्ता और टख़नों से ऊंचा पायजामा पहनते हं  और दाढ़ी मूंछे रखते हैं.

वे कम उम्र से ही दाढ़ी मूंछे रखना शुरू कर देते हैं. औरतें सलवार क़मीज़ पहनती हैं. हिजाब, नक़ाब और बुर्क़ा भी उनके पहनावे का एक अहम हिस्सा है. यहां दो साल की बच्ची को भी हिजाब पहना दिया जाता है. कुछ महिलाएं साड़ी भी बांधती हैं.

 

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रहन-सहन और खाना 

केरल के लोगों की आमदनी अच्छी है. इसलिए उनका रहन-सहन और खानपान भी अच्छा है. केरल में लोग बड़े-बड़े घरों में रहते हैं. इन घरों में ख़ूबसूरत बग़ीचे भी होते हैं. इन बग़ीचों में फूल, फल और सब्ज़ियां होती हैं. तक़रीबन हर बग़ीचे में कटहल का दरख़्त मिल जाएगा.

यहां के लोग कटहल बहुत चाव से खाते हैं. यहां कच्चा कटहल भी चाट के तौर पर खाया जाता है. चावल यहां का मुख्य भोजन है. यहां साग-सब्ज़ियों के साथ-साथ गोश्त, मछली और अंडे भी ख़ूब खाये जाते हैं. यहां के व्यंजनों में नारियल और गरम मसालों का ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. यहां के लोगों को भाप में बना हुआ खाना ज़्यादा पसंद है, जैसे इडली, इडिअप्पम और पुट्टू आदि.   

मेहमाननवाज़ी 

एर्नाकुलम ज़िले के पल्लारीमुग्गुलम में रहने वाले ज़फ़र ख़ान बताते हैं कि केरल में मुसलमान, ईसाई, हिन्दू व अन्य मज़हबों के लोग मिलजुल कर रहते हैं. यहां के लोग बहुत मेहमान नवाज़ हैं. मेहमानों से वे बहुत ख़ुश होते हैं. अगर किसी के घर दूर-दराज़ से कोई मेहमान आता है और घरवालों को शादी-ब्याह आदि में कहीं जाना होता है, तो वे अपने मेहमान को भी साथ लेकर जाते हैं.

उसे घर पर छोड़ कर नहीं जाते. जिस जगह वे अपने मेहमान को लेकर जाते हैं, वहां भी उनके मेहमान की ख़ूब आवभगत होती है. यहां के लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में बराबर शरीक होते हैं. अगर किसी के घर मौत हो जाए, तो सब लोग इकट्ठे हो जाते हैं. वे घरवालों को दिलासा देते हैं और अंतिम संस्कार में भी शामिल होते हैं.   

साम्प्रदायिक सद्भाव  

केरल में साम्प्रदायिक सद्भाव का माहौल है. पद्मश्री से सम्मानित क़तर के कारोबारी आप्रवासी भारतीय सीके मेनन ने साल 2014में पनूर में नचोली नामक मस्जिद का पुनर्निर्माण करवाया था. जब उनसे इस बारे में पूछा गया था, तो उन्होंने कहा था कि वे एक मुस्लिम देश से ही अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं, इसलिए वे इस्लाम को मानने वाले लोगों को कुछ वापस करना चाहते हैं. उनका यह भी कहना था कि उनकी परवरिश धर्मनिरपेक्ष माहौल में हुई है और वे साम्प्रदायिक सद्भाव को अहमियत देते हैं.

केरल बनाम केरलम का इतिहास

दक्षिण भारत का राज्य केरल अपने नाम को लेकर इन दिनों ख़ूब सुर्ख़ियों में है. इसकी वजह यह है कि यहां की सरकार इसका नाम बदलकर केरलम करना चाहती है. सरकार की दलील है कि मलयाली भाषा में केरल का असली नाम केरलम है. गुज़श्ता 9अगस्त को मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने विधानसभा में इस बारे में प्रस्ताव पेश किया था, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया.

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा है- “ये विधानसभा सर्वसम्मति से केंद्र सरकार से संविधान के अनुच्छेद-3के तहत इसे केरलम के तौर पर संशोधित करने के लिए फ़ौरी कारवाई करने का अनुरोध करती है. ये भी अनुरोध किया जाता है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लेखित सभी भाषाओं में 'केरलम' नाम लिखा जाए.”

क़ाबिले ग़ौर है कि देश की आज़ादी के बाद पहली नवम्बर 1956 को भाषाई आधार पर केरल राज्य का गठन हुआ था. भाषाई आधार पर राज्यों का नाम बदलने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की साल 1920में नागपुर में हुई बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि नया राज्य सिर्फ़ क्षेत्र विशेष के आधार पर ही नहीं, बल्कि भाषा के आधार पर भी बनना चाहिए.

इसके बाद साल 1921 में कांग्रेस ने अपनी त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार क्षेत्र की इकाई का नाम बदलकर केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी रख दिया था. इस तरह इस इलाक़े का नाम केरल पड़ गया. उस वक़्त यहां के मलयाली बाशिन्दे ऐक्य केरल आन्दोलन चला रहे थे. इसका मक़सद त्रावणकोर, कोच्चि और मालाबार में रहने वाले मलयाली लोगों को अलग राज्य दिलाना था.

आज़ादी से पहले केरल में रियासतें हुआ करती थीं. जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को मिलाकर तिरुकोच्चि नामक राज्य बनाया गया. इससे लोग मुतमईन नहीं थे, क्योंकि वे तो भाषा के आधार पर अपना अलग राज्य चाहते थे. इसलिए उन्होंने अपनी मुहिम जारी रखी.

उस वक़्त मालाबार मौजूदा तमिलनाडु का एक ज़िला हुआ करता था. फिर नवम्बर 1956में मालाबार को तिरुकोच्चि के साथ जोड़ दिया गया. इस तरह साल 1956में भाषाई आधार पर एक अलग राज्य वजूद में आया, जिसका नाम केरल रखा गया. इसके नामकरण के कई कारण थे, जैसे इस इलाक़े में नारियल बहुत होता है और मलयालम में नारियल को केरा कहते है.

इसी केरा से केरल बना. यह भी कहा जाता है कि केरल का मतलब है, वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो. समुद्र और पर्वत के संगम स्थल को भी केरल कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक़ परशुराम ने अपना परशु पानी में फेंका था. इसकी वजह से उसके आकार की ज़मीन समुद्र से बाहर आ गई थी. यही ज़मीन केरल कहलाई. एक वजह यह भी बताई जाती है कि सम्राट अशोक के वक़्त के शिलालेख में केरल का ज़िक्र मिलता है. इसमें स्थानीय शासक को केरलपुत्र कहा गया है.

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कला संस्कृति

केरल प्राकृतिक ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी एक समृद्ध राज्य है. कथकली यहां का शास्त्रीय नृत्य है. माना जाता है कि कोट्टारक्करा तंपुरान द्वारा विरचित एक अन्य शास्त्रीय कला रामनाट्टम से कथकली का विकास हुआ. मोहिनीअट्टम भी यहां का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है.

यहां शास्त्रीय संगीत की कर्नाटक शैली का चलन है. भारत सरकार द्वारा पदमश्री और पद्म विभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध पार्श्व गायक केजे यशुदास भी यहीं के हैं. उनके पिता अगस्टिन जोसेफ़ भी प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतकार और मंच कलाकार थे. केरल में अनेक प्रसिद्ध संगीतकार, गायक, नृतक, कवि, लेखक व अन्य कलाकार हुए हैं, जिन्होंने अपनी कला से इसे समृद्ध किया.     

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अर्थव्यवस्था 

केरल का मुख्य व्यवसाय कृषि है. यहां चावल, नारियल, दालें, काजू, सुपारी, इलायची, लौंग, काली मिर्च, जायफल, अदरक, हल्दी, चाय, कॉफ़ी, रबड़ और सब्ज़ियों की खेती की जाती है. यहां बडे़ उद्योग, मध्यम उद्योग और कुटीर उद्योग हैं. यहां के परम्परागत उद्योगों में कयर उद्योग प्रमुख है.

देश के कुल कयर उत्पाद में 35फ़ीसद और कयर से बनी चीज़ों में 90 सद केरल का हिस्सा है. पर्यटन भी राज्य की आमदनी का एक बड़ा साधन है. यहां की नदियां, झीलें, पहाड़, जंगल और मैदान पर्यटकों को बहुत लुभाते हैं.यहां की आर्थिक व्यवस्था में अप्रवासी केरलवासियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है. केरल सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ केरल के 40लाख लोग विदेशों में रहते हैं. वे हर साल 60हज़ार करोड़ रुपये स्वदेश भेजते हैं.   

खेल

केरल में प्राचीनकाल से ही खेलों का वर्चस्व रहा है. कलरिप्पयट्टु यहां की प्रान्तीय आयुधन कला है. पहले यहां कबड्डी जैसे परम्परागत खेलों को महत्व दिया जाता था, लेकिन अब आधुनिक खेलों ने इनकी जगह ले ली है. इनमें क्रिकेट, फ़ुटबॉल, वॉलीबॉल और एथलेटिक्स आदि शामिल हैं.

मगर नौका रेस और नौका विहार आज भी लोकप्रिय हैं. धावक पीटी उषा यहीं की बेटी हैं. वायनाड ज़िले के चोमोला की मिन्नू मणि राज्य की पहली महिला क्रिकेटर हैं. वे ऑलराउंडर हैं. वे ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी और बायें हाथ से बल्लेबाज़ी करती हैं. मैसूर जंक्शन का नाम उनके नाम पर मिन्नू मणि जंक्शन रखा गया है.

सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति

यह राज्य सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से भी बहुत ही समृद्ध है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ केरल की तक़रीबन तीन करोड़ 33 लाख की आबादी में हिन्दू 54.73 फ़ीसद हैं. इनमें मुसलमान 26.56 और ईसाई 18.38फ़ीसद हैं. यहां सिख, बौद्ध और जैनियों की आबादी बहुत ही कम है.

यहां लिंगानुपात 1,084 है यानी एक हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले में 1084 महिलाएं हैं. यह देश का सबसे अधिक साक्षरता दर वाला राज्य है. यहां साक्षरता दर 94फ़ीसद है. पुरुषों की साक्षरता दर 96.10 फीसद और महिलाओं की साक्षरता दर 92.08फ़ीसद है. यहां विद्यालयों में प्राथमिक नामांकन दर सबसे ज़्यादा है. यहां शिशु व नवजात मृत्यु दर और पांच साल से कम उम्र के बच्चों में विकास अवरुद्धता की प्रधानता सबसे कम है. 

केरल के मिलनसार लोग अपनी प्राकृतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक विरासत को ज़िन्दा रखे हुए हैं. यह एक ऐसा राज्य है, जो अन्य राज्यों के लिए मॉडल साबित हो सकता है. बस इससे सीखने की ज़रूरत है.

(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)