साकिब सलीम
आज के आधुनिक भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं जैसे बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, या भगत सिंह को न जानता हो, लेकिन जोसेफ बैपटिस्टा का नाम बहुत कम लोग ही जानते हैं.
जोसेफ बैपटिस्टा, जो भारतीय होम रूल लीग के संस्थापक थे, ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी थी. हालांकि, उनका योगदान इतिहास में धीरे-धीरे भुला दिया गया है, लेकिन उनका काम आज भी भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है.
जोसेफ बैपटिस्टा: एक संघर्षशील नेता
जोसेफ बैपटिस्टा एक प्रमुख वकील, राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय स्वशासन और होम रूल की मांग को जन-जन तक पहुँचाया. 1910 में, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक नया मोड़ ले रहा था, तब बैपटिस्टा ने भारतीयों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी.
एक ऐतिहासिक घटना में, 20 जुलाई 1910 को पेरिस से जोसेफ बैपटिस्टा को एक टेलीग्राम प्राप्त हुआ, जिसमें लिखा था, "सावरकर को बॉम्बे स्टीमर मोरिया भेजने की सूचना दें, फ्रांस सरकार ने उन्हें वापस भेजने की मांग की है." यह टेलीग्राम उन्हें मैडम भीकाजी कामा से मिला था, जो एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थीं.
तिलक के समर्थन में बैपटिस्टा की भूमिका
जून 1908 में जब बाल गंगाधर तिलक और एसएम परांजपे को उनके द्वारा लिखी गई पत्रिका केसरी में भारतीय क्रांतिकारियों के समर्थन के कारण गिरफ्तार किया गया, तो तिलक ने बैपटिस्टा से मदद की अपील की.
तिलक के मामले में बैपटिस्टा ने पूरी निष्ठा से उनका बचाव किया. तिलक की जीवनी लिखने वाले धनंजय कीर के अनुसार, बैपटिस्टा ने तिलक से कहा था, "आपकी बरी होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन मैं अदालत में भारतीय जूरी की मांग करूंगा."
यह रणनीति भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई और बाद में इसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनाया.
बैपटिस्टा के प्रयासों ने भारतीय जनता को अदालतों में राजनीति की भूमिका समझने में मदद की. उन्होंने भारतीय न्यायिक व्यवस्था का इस्तेमाल करके ब्रिटिश शासकों के खिलाफ एक प्रभावी जन जागरूकता अभियान चलाया, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख हिस्सा बन गया.
भारतीय होम रूल लीग की स्थापना
जोसेफ बैपटिस्टा ने भारतीय होम रूल आंदोलन को एक नई दिशा दी. 8 मई 1915 को पुणे में तिलक की राष्ट्रवादी पार्टी की बैठक में बैपटिस्टा ने होम रूल की प्राप्ति के लिए एक आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा.
उन्होंने कहा, "यह विश्व युद्ध भारतीयों को होम रूल की मांग करने और इसे हासिल करने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान कर सकता है."
1916 में बैपटिस्टा और तिलक के नेतृत्व में भारतीय होम रूल लीग का गठन हुआ. इस लीग का उद्देश्य भारतीयों को स्वशासन दिलाना था और इसके लिए जनमत जागरूकता अभियान चलाना था.
28 अप्रैल 1916 को भारतीय होम रूल लीग का औपचारिक उद्घाटन हुआ, जिसमें बैपटिस्टा को इसका अध्यक्ष चुना गया.
हालांकि तिलक ने कोई पद नहीं स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने संगठन को मार्गदर्शन प्रदान किया. बैपटिस्टा ने इसके बाद इंग्लैंड में भी लेबर पार्टी से समर्थन प्राप्त करने के लिए यात्रा की, ताकि भारतीय स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल किया जा सके.
श्रमिक वर्ग और भारतीय राजनीति
बैपटिस्टा ने भारतीय राजनीति में श्रमिक वर्ग की भूमिका को महत्वपूर्ण माना. 1920 के दशक में, जब भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलनों का विकास हो रहा था, तो बैपटिस्टा ने इन आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की.
उनका मानना था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भविष्य मजदूर वर्ग के हाथों में है, और तिलक के साथ मिलकर उन्होंने इस आंदोलन को और मजबूत किया.
बाद में, महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को और तेज किया और इसे एक क्रांतिकारी जन आंदोलन में बदल दिया.
बैपटिस्टा की विरासत और नेहरू
जोसेफ बैपटिस्टा और तिलक का विचार था कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए सिर्फ राष्ट्रीय आंदोलन ही नहीं, बल्कि मजदूर वर्ग के अधिकारों की भी रक्षा करना जरूरी है. 1918 में, बैपटिस्टा और तिलक के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रवादियों और लेबर पार्टी के बीच एक मजबूत दोस्ती का सूत्रपात हुआ.
यह मित्रता अंततः 1947 में भारत की स्वतंत्रता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई, जब लेबर पार्टी इंग्लैंड में एक शक्तिशाली राजनीतिक दल बन गई.
जोसेफ बैपटिस्टा का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण था, लेकिन समय के साथ उनका नाम इतिहास में धूमिल हो गया. भारतीय होम रूल लीग की स्थापना, तिलक के लिए उनका समर्थन, और श्रमिक वर्ग के अधिकारों की रक्षा करने की उनकी प्रतिबद्धता आज भी भारतीय राजनीति के लिए एक अमूल्य धरोहर है.
उनके संघर्ष और प्रयासों की वजह से ही भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए. बैपटिस्टा का योगदान भारतीय राजनीति और समाज के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगा, और हमें उन्हें याद करने की आवश्यकता है, ताकि उनकी महानता और संघर्ष को आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें.