आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने कहा,"दारा शिकोह भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति और समावेशी दृष्टिकोण के प्रतीक थे. उनकी विद्वता और समन्वयवादी सोच ने भारतीय समाज में विविधता के सौंदर्य को और अधिक समृद्ध किया.
कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने यह बात जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 28 नवंबर, 2024 को "दारा शिकोह: सांस्कृतिक बहुलवाद और धार्मिक समन्वयवाद" विषय पर आयोजित एक ऐतिहासिक दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए कही.
यह सम्मेलन जामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर पर्शियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज (सीपीसीएएस), और दारा शिकोह रिसर्च फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया..
उद्घाटन सत्र का भव्य आरंभ
सम्मेलन का उद्घाटन जामिया के इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी सभागार में हुआ, जिसमें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अतिथियों ने भाग लिया. उद्घाटन सत्र की शोभा बढ़ाने वालों में जामिया के कुलपति और सम्मेलन के संयोजक प्रोफेसर मज़हर आसिफ, जामिया के कुलसचिव प्रोफेसर मोहम्मद महताब आलम रिजवी, भारत में इस्लामी गणराज्य ईरान के राजदूत महामहिम इराज इलाही और उज्बेकिस्तान गणराज्य के राजदूत महामहिम सरदार मिर्जायुसुपोविच रुस्तम्बेयेव शामिल थे.
इस अवसर पर जेएनयू के प्रोफेसर अखलाक अहमद ने मुख्य बीज वक्तव्य दिया, जबकि राष्ट्रीय परिषद प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज (एनसीपीयूएल) के निदेशक डॉ. मोहम्मद शम्स इक्बाल ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार साझा किए.
कार्यक्रम में जामिया और जेएनयू के संकाय सदस्यों के साथ-साथ उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, ईरान और अन्य देशों के छात्र भी उपस्थित थे. इस आयोजन ने पचास से अधिक विदेशी मेहमानों का स्वागत किया.
दारा शिकोह और भारत की समावेशी परंपरा पर कुलपति का उद्बोधन
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ने फ़ारसी भाषा में अपने स्वागत भाषण के माध्यम से दारा शिकोह के बहुआयामी व्यक्तित्व और योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा,"दारा शिकोह भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति और समावेशी दृष्टिकोण के प्रतीक थे. उनकी विद्वता और समन्वयवादी सोच ने भारतीय समाज में विविधता के सौंदर्य को और अधिक समृद्ध किया."
कुलपति ने यह भी कहा कि भारत वह भूमि है, जिसने कबीर, रहीम, और रसखान जैसे महान कवियों और संतों को जन्म दिया. यह संस्कृति दारा शिकोह जैसे व्यक्तियों के उद्भव का पोषण करती है, जिन्होंने धर्मों के बीच पुल बनाने का कार्य किया.
उन्होंने फ़ारसी भाषा के भारतीय संदर्भ पर बात करते हुए कहा, "भारत ने हमेशा वैश्विक भाषाओं और संस्कृतियों को अपनाया है. फ़ारसी भाषा का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है, और इसकी समृद्धि ने न केवल स्थानीय विद्वानों को बल्कि विदेशों से भी लोगों को आकर्षित किया है."
बीज वक्तव्य और अन्य वक्ताओं के विचार
मुख्य वक्ता, जेएनयू के प्रोफेसर अखलाक अहमद ने अपने भाषण में उपनिषदों के फारसी अनुवाद में दारा शिकोह के योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि इन अनुवादों ने धार्मिक समन्वयवाद को बढ़ावा दिया और सनातन धर्म को बेहतर ढंग से समझने में सहायता की.
एनसीपीयूएल के निदेशक डॉ. मोहम्मद शम्स इक्बाल ने दारा शिकोह की विशिष्ट विशेषताओं पर बात की. उन्होंने बताया कि कैसे उनकी सोच और दृष्टिकोण ने धर्मों और संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया.
अन्य अतिथियों का योगदान
सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य अतिथियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए. उज्बेकिस्तान और ईरान के राजदूतों ने भारत की समावेशी परंपरा और दारा शिकोह की वैश्विक प्रासंगिकता पर चर्चा की.जामिया के कुलसचिव प्रो. मोहम्मद महताब आलम रिजवी ने सम्मेलन की योजना और उद्देश्यों का परिचय देते हुए कहा, "यह सम्मेलन दारा शिकोह की विरासत को समझने और उनके समन्वयवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का एक मंच है."
दो दिवसीय सम्मेलन की संरचना
इस सम्मेलन में बारह शैक्षणिक सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें भारत और विदेशों के विद्वान 120 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे. इन सत्रों में सांस्कृतिक बहुलवाद, धार्मिक समन्वयवाद, और दारा शिकोह की विचारधारा जैसे विषयों पर चर्चा होगी.
सम्मेलन का महत्व
यह सम्मेलन न केवल भारत की समावेशी संस्कृति का उत्सव है, बल्कि यह धर्मों और संस्कृतियों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा भी है। दारा शिकोह, जिन्होंने विविधता और बहुलवाद के प्रतीक के रूप में कार्य किया.दारा शिकोह का जीवन और कार्य भारतीय समाज के बहुलवादी स्वरूप का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सम्मेलन का समापन
सम्मेलन का समापन 29 नवंबर, 2024 को होगा, जिसमें विभिन्न विद्वानों के विचार और प्रस्तुतियां समाहित होंगी. समापन समारोह में भी दारा शिकोह के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनके ऐतिहासिक योगदान को सम्मानित किया जाएगा.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया का यह आयोजन भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और समावेशी संस्कृति को उजागर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है. दारा शिकोह जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के विचारों को प्रोत्साहन देना, न केवल हमारे सांस्कृतिक अतीत को समझने में मदद करेगा बल्कि वर्तमान समय में सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने का माध्यम भी बनेगा.