हिंदू बिरादरी के सहयोग के बिना बिहार के सिवान से गगनचुंबी ताजिया निकाला संभव नहीं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-07-2024
It is not possible to take out a sky-high Tazia procession from Siwan in Bihar without the support of the Hindu community
It is not possible to take out a sky-high Tazia procession from Siwan in Bihar without the support of the Hindu community

 

राजीव सिंह/नई दिल्ली

वर्तमान समय में जब धर्म, संप्रदाय और राजनैतिक द्वेष की भावना के कारण लोगों के मन में दूरियां बढ़ती जा रही हैं और मानवता तथा आपसी भाईचारे का दायरा सिमटता जा रहा है, ऐसे माहौल में बिहार का सीवान जिला एक कमाल की मिसाल पेश करता है. जिले के सिसवन प्रखंड के भीखपुर गांव से निकलने वाला ताजिया हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम उदाहरण तो पेश करता ही है, इसे दुनिया का सबसे उंचा ताजिया होने का भी गौरव प्राप्त है.

मुहर्रम और ताजिए का क्या है रिश्ता?

मुहर्रम और ताजिये का आपस में बहुत ही महत्वपूर्ण नाता है. बात जब ताजिए की हो तब बिहार के जिले सीवान का जिक्र आ ही जाता है. यहाँ क्या राज्य और देश बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा ताजिया बनाया जाता है.सिवान जिले के दक्षिणी भाग में स्थित सिसवन प्रखंड अंतर्गत दाहा नदी के तट पर स्थित चैनपुर बाजार का निकटवर्ती गांव भीखपुर में करीबन 350-400घर हैं.

इस गांव की आबादी में हिंदू और मुसलमानों की संख्या तकरीबन बराबर है. ग्रामीणों के अनुसार, इस गांव में ताजिया निकालने की परंपरा 195वर्ष पुरानी है. प्रशंसनीय बात यह है कि जुलूस के दौरान आज तक यहां कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.इस बार भी सिसवन प्रखंड के भीखपुर में निकलने वाले दो बड़े ताजियों का निर्माण शुरू हो गया है. आपसी एकता व भाईचारे का प्रतीक यह ताजिया अंजुमन आब्बासीय और अंजुमन रीजीविया के तत्वधान में बनाया जा रहा है.

छोटे इमामबाड़े के नाम से प्रसिद्ध अंजुमन रीजीविया में 80फीट का ताजिया बनाया जा रहा है. जबकि बड़ा इमामबाड़ा अंजुमन अब्बासी में 84फीट के ताजिये का निर्माण होता रहा है, जो की तक़रीबन 16तल्ले की होती है.ताजिया का निर्माण स्थानीय कारीगर ही करते हैं. इनमें हिंदू और मुस्लिम समुदाय दोनों वर्गों के लोग मिलजुल कर करते हैं.

ताजिया को लेकर भीखपुर के युवक बाहर से भी गांव आ जाते हैं. डॉ. एस.एम. जाहिद कहते हैं, “इमाम हुसैन ने बुराई के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने न्याय, इंसानियत और अच्छाई को बचाने के लिए संघर्ष करते हुए अपने-आप को शहीद किया.

आज भी उनके अनुयायी इस पैगाम को ताजिया के द्वारा देते हैं कि हमेशा ही अच्छाई की जीत बुराई पर होती है. इंसान को ईमानदारी व सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए.”गौरतलब है कि भीखपुर में मुहर्रम के मजलिस के लिए बाहर और दूर-दूर से मौलाना आते हैं.

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ताजिया उठाने से पहले निकलता है अलम

गांव के निवासी सैयद मोहम्मद रिजवी कहते हैं, “मातमी जुलूस निकालने और ताजिया को उठाने से पहले यहां के लोगों द्वारा अलम निकाला जाता है, जो इमाम हुसैन अलै. का प्रतीक माना जाता है. आगे-आगे अलम और पीछे-पीछे छोटे, बड़े, बुजुर्ग और बच्चे जंजीरी मातम करते हुए चलते हैं.”

कमाल की बाता है कि प्रखंड के भीखपुर में मुस्लिम समुदाय के साथ ही कई हिंदू परिवार भी ताजिया रखते हैं. चैनपुर बाजार के चुन्नीलाल मुन्नीलाल के ताजिया के नाम से प्रसिद्ध ताजिया इस बार भी बन रहा है. यहाँ कई ऐसे हिंदू परिवार हैं, जो ताजिया रखते हैं या ताजिया में सहयोग करते हैं.

चुन्नीलाल का ताजिया लगभग 70 वर्षों से रखा जा रहा है. डा. एस.एम. जाहिद बताते हैं, “चुन्नीलाल और मुन्नीलाल के घर कोई भी संतान पैदा नहीं हो रही थी. वे लोग पुराने पोस्ट ऑफिस के पास चाय-पकौड़ी की दुकान लगाते थे. दोनों भाई निराश हो चुके थे. चुन्नीलाल ने बड़े इमामबाड़े के मौलाना महरुम सैयद राहत हुसैन से अपनी दुखड़ा सुनाया.

उन्होंने कहा कि बड़े इमामबाड़े अर्थात अंजुमन अब्बासिया में जाकर सरकार से दुआ मांगे. उनकी मन्नतें अवश्य पूरी होगी. उन्होंने मन्नत मांगी और उनके घर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. तब से इस परिवार ने अपने दरवाजे पर ताजिया रखना शुरू किया.”

भीखपुर की ताजिया उठने से पहले यहाँ के लोग चुनीलाल के दरवाजे पर जाकर मजलिस और मातम करते हैं. चुनीलाल के परिजन सुरेंद्र प्रसाद और वीरेंद्र बातचीत में बताते हैं कि तब से यह परंपरा उनके यहां आज भी जारी है. वे लोग भी श्रद्धा और शिद्दत के साथ मुहर्रम का ताजिया रखते हैं, निकालते हैं.चैनपुर और नयागांव के पास कई ऐसे हिन्दू परिवार हैं जो ताजिया रखते भी हैं और उसमें मदद करते हैं.

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जानकारों का कहना है कि करीब 25वर्ष पूर्व इस गांव के विद्युतीकरण के लिए आए विद्युत विभाग के कर्मचारियों को ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा. इसकी वजह थी कि मुहर्रम के अवसर पर इस गांव से निकलने वाला देश का सबसे ऊंचा ताजिया के गुजरने में बिजली के खंभों और तारों से बाधा पहुंच सकती थी.

इस पर विद्युत विभाग के अधिकारियों ने ऐसी व्यवस्था बनाने का आश्वासन दिया कि ताजिया निकालने के दिन बिजली की आपूर्ति बंद कर दी जाएगी और ताजिये के रास्ते में पड़ने वाले तारों को खोल दिया जाएगा, तब जाकर इस गांव का विद्युतीकरण हो सका.

दसवीं को दोपहर में ताजिये को लेकर ग्रामीण सड़कों पर निकलते हैं और सूर्यास्त के पहले कर्बला पहुंच जाते हैं. बहरहाल सरल और साफ हृदय के धनी ग्रामीणों के मन में यह प्रश्न सहज की उपजता है कि देश के लोग सर्वधर्म समभाव और मानवीय संबंधों की आदर्श प्रस्तुत करने वाली भीखपुर की माटी से कुछ सीखते क्यों नहीं?

इस कार्य में गांव के हिंदू-मुसलमान दोनों को मुहर्रम के दिन इमामबाड़ा से एक विशाल जुलूस के साथ करबला तक ले जाया जाता है. इस दौरान श्रद्धालु ताजिये पर बताशा, लड्डू, मलीदा, शर्बत, खिचड़ी रोटी, तिलक, नारियल आदि चढ़ाते हैं. ताजिये के जुलूस में भाग लेने के लिए देश-विदेश के विभिन्न कोने में रहने वाले ग्रामीण गांव में पहुंचते है.

ताजिया में लोहे की कीलों का नहीं होता प्रयोग

ताजिया बनाने में लोहे की कीलों का प्रयोग नहीं होता है, बल्कि ताजिये का निर्माण बस बांस-रस्सी और कागज मात्र से ही किया जाता है.

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ग्रामीणों का विश्वास, बड़े इमामबाड़े की मन्नतें होती हैं पूरी

 डा. एसएम जाहिद कहते हैं, “बड़े इमामबाड़े की मांगी गई मन्नत पूरी होती हैं. जिसने भी श्रद्धा के साथ मन्नत मांगी उनके हर मन्नत बड़े इमामबाड़े से पूरी हुई है.”डॉ. जाहिद के मुताबिक, सारण जिले के मोहम्मदपुर के एक वकील, नवलपुर में ब्याही गांव के रामदेव यादव के भाई की लड़की सहित कई लोगों की मन्नतें यहां पूरी हुई हैं. वे लोग भी बड़े श्रद्धा के साथ मोहर्रम जुलूस के दौरान बड़े इमामबाड़े में आकर माथा टेकते हैं.

सीवान जिले के ठेपहा गांव में भी यह जुलूस निकलता है. ठेपहा के निवासी ललन चौधरी के मुताबिक, “हम मुहर्रम मानते भी हैं, और मुसलमानों के साथ ताजिया जुलूस भी निकालते हैं.”वह कहते हैं, "हमारे गांव में यह पुरानी परंपरा है कि हिंदू परिवार मुहर्रम मनाते हैं." उनके भाई रामायण चौधरी बताते हैं कि मुहर्रम को लेकर गांव में पांच ताजिया बनाये जाते हैं.

उन्होंने कहा, "चार ताजिया मुसलमानों द्वारा और एक हिंदुओं द्वारा बनाया जाता है, ताकि यह साबित हो सके कि हम भी इमाम हुसैन की शहादत पर शोक मनाते हैं."गांव की मस्जिद के मौलवी शम्सुल हक का कहना है, "मुहर्रम मनाने वाले हिंदू दूसरों को शांति, सद्भाव और भाईचारे का संदेश देते हैं." उन्होंने कहा, इस गांव में मुस्लिम और हिंदू परिवार एक-दूसरे के धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं.

जिले के ही मैरवा प्रखंड के इंग्लिश गांव के डोमा पासी के मुताबिक, “लगभग 40साल पहले से यानी उनके दादा-परदादा के समय से ही उनके घर पर परिवार के किसी मन्नत के पूरे होने पर इमाम हुसैन की याद में ताजिया रखा जाता है.”डोमा पासी का कहना है कि इससे उनके परिवार में पूरे साल खुशहाली रहती है और पासी उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

बताते चले कि मुहर्रम का जुलूस कोई जश्न का मौका नहीं होता है बल्कि यह मातम का काम होता है, और पैगंबर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन की शहादत पर शोक व्यक्त करने के लिए मुहर्रम मनाया जाता है और 'ताजियों' को मकबरों का आकर देकर जुलूस में शामिल किया जाता है.

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