मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली
नब्बे के दशक के मध्य में जब इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) ने अपनी हिंसक इस्लामी विचारधारा के माध्यम से इस्लामी दुनिया को धमकी दी, तब इंडोनेशिया के मुख्य मुस्लिम संगठन नहदलातुल उलमा ने देश के युवाओं को आतंकवादी समूह के बहकावे में आने से बचाने के लिए कार्रवाई करने का फैसला किया.
52मुस्लिम देशों में 95मिलियन सदस्यों की अनुमानित जनसंख्या वाला दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम संगठन ‘नहदलातुल उलमा’ इस्लाम के प्रचलित स्वरूप की पुष्टि करने के लिए जुट गया. यह द्वीप देश, दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी का घर है और फिर भी सबसे विविध और शांतिपूर्ण राष्ट्रों में से एक है. इंडोनेशियाई इस्लाम अन्य धर्मों को स्वीकार कर रहा है, विविध संस्कृतियों का सम्मान करता है और खिलाफत के विचार में विश्वास नहीं करता है. नहदलातुल उलमा की विद्वान सभा ने उनके विश्वास को एक नया नाम दिया - ‘इस्लाम नुसंतारा’ यानी द्वीपसमूह का इस्लाम.
‘इस्लाम नुसंतारा’ का सिद्धांत आईएसआईएस या दाएश की कठोर और हिंसक विचारधारा के लिए एक प्रति-कथा प्रस्तुत करता है. अगस्त 2015में नहदलातुल उलमा के 33वें राष्ट्रीय सम्मेलन का विषय इस्लाम नुसंतारा था. तब युवा इंडोनेशियाई जकार्ता में आईएसआईएस की विचारधारा के खिलाफ अभियान चला रहे थे.
उस समय, अन्य मुस्लिम देशों की तरह, इंडोनेशियाई लोग देश में आईएसआईएस के पैर जमाने की संभावना को लेकर चिंतित थे. जबकि अन्य देशों के इस्लामी विद्वानों ने युवाओं पर दाएश के प्रभाव को रोकने के लिए कुछ नहीं किया.
नहदलातुल उलमा ने वैकल्पिक विचारधारा के साथ कट्टरपंथी विचारधारा का मुकाबला करने का फैसला किया. ‘इस्लाम नुसंतारा’ के अभियान को राष्ट्रीय सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है. ऐसे में, नेशनल काउंटर टेररिज्म एजेंसी (बीएनपीटी) इस्लाम नुसंतरा का पुरजोर समर्थन करती रही. यहां तक कि राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भी इस्लाम नुसंतारा को राष्ट्रीय विचारधारा पंचशिला, विविधता में एकता के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य, 1945के इंडोनेशियाई संविधान और एकात्मक इंडोनेशियाई राज्य (एनकेआरआई) की रक्षा के लिए एक ‘बैल और बुलवार्क’ (बेंटेंग डान बेंटेंग) के रूप में वर्णित किया है.
‘इस्लाम नुसंतारा’ का मुख्य एजेंडा राष्ट्र-राज्य की अवधारणा की रक्षा करना और इस्लामी शिक्षाओं के उदारवादी मूल्यों की वकालत करना है, जो किसी राष्ट्र के सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं में हस्तक्षेप नहीं करते हैं.
यह स्पष्ट रूप से प्राचीन इस्लाम की एक चरम शिक्षा के रूप में ‘जिहाद’ की अवधारणा को खारिज करता है. एक पश्चिमी थिंकटैंक के अनुसार इंडोनेशियाई इस्लामी विद्वानों ने अन्य देशों में ‘इस्लाम नुसंतारा’ को फैलाने का जोखिम नहीं उठाया है, क्योंकि वे इस बात से खुश हैं कि वे एक गड़बड़ी को रोकने में सक्षम रहे हैं.
यूरोप से भी युवाओं का दाएश में शामिल होने का रुझान था. इस्लाम के इस सुधारित या समावेशी संस्करण की देखरेख नहदलातुल उलमा द्वारा की जाती है, जो इंडोनेशियाई सरकार के साथ मिलकर काम करता है.
देश के विद्वान इस बात से सहमत हैं कि इस्लाम नुसंतारा एक सिद्धांत है, जो आतंकवाद और उग्रवाद से पीड़ित अन्य देशों के लिए उपयोगी हो सकता है. इसीलिए पिछले कुछ दशकों से इस्लाम नुसंतारा की विचारधारा को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है.
इसका उद्देश्य इस्लाम को स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुरूप ढालना है या दूसरे शब्दों में कहें, तो इस्लाम धर्म से अरब स्वाद को खत्म करना है. इस्लाम अरब के रास्ते इंडोनेशिया पहुंचा था. हालाँकि, क्षेत्र के मुसलमान मध्य-पूर्व के मुसलमानों से सामाजिक रूप से भिन्न हैं और उन्होंने अरब की सांस्कृतिक प्रथाओं को नहीं अपनाया.
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इंडोनेशिया में इस्लाम के विकास का एक मुख्य कारण यहां आने वाले सूफी मुसलमानों का उदारवादी रवैया था. इस्लाम नुसंतारा की व्याख्या इस्लाम के एक विशिष्ट रूप के रूप में भी की जा सकती है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में मुसलमानों के बीच स्थानीय पहचान को मजबूत करना है. वे यहां रहने वाले विभिन्न धर्मों और मान्यताओं के लोगों के प्रति सहिष्णु हैं.
इस प्रकार इंडोनेशियाई विद्वानों ने इस्लाम नुसंतारा के रूप में दुनिया को एक मॉडल दिया है कि चरमपंथी विचारधाराओं की संभावना को कम करने के लिए किसी आस्था को स्थानीय कैसे बनाया जाए.
इस्लाम नुसंतारा की भावना ‘गंगा-जमुनी सभ्यता’ को आगे बढ़ाने वाले भारत के समावेशी दृष्टिकोण के करीब है. इंडोनेशियाई मदरसे अपनी न्यायशास्त्र शिक्षा का श्रेय बहत अल-मसैल मॉडल की मध्यम भूमिका को देते हैं. इसका नेतृत्व एक मौलवी करते हैं और इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल होते हैं.
यह शिक्षण मॉडल इंडोनेशियाई मुसलमानों को उनके स्थानीय संदर्भ में न्यायशास्त्र की व्याख्या करने में सक्षम बनाता है. भारतीय मुसलमानों के लिए, इस्लाम के इस नए ब्रांड को समझना एक अच्छा विचार होगा, जो धर्म को स्थानीय परंपराओं और संस्कृति के अनुकूल बनाता है. यह काफी हद तक वैसा ही है, जैसे इस्लामी सूफियों ने भक्ति परंपरा के घटकों को चुना, जिसने अंततः सद्भाव की संस्कृति विकसित करने में मदद की.
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इंडोनेशियाई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस्लाम से जुड़े एक अनावश्यक डर का मुकाबला इस्लाम नुसंतारा के माध्यम से किया जा सकता है. इंडोनेशिया के एक प्रमुख विद्वान डॉ. फरीद एटलस ने बीबीसी को एक साक्षात्कार में यह बात बताई, ‘‘आधुनिक इस्लाम, वहाबी और सलाफी इस्लाम के विपरीत, स्थानीय रीति-रिवाजों और प्रथाओं को अस्वीकार नहीं करता है.
इंडोनेशिया में इस्लाम के विकास का एक मुख्य कारण यहां आए सूफी मुसलमानों का उदारवादी रवैया था.’’
शोधकर्ता और इस्लामिक विद्वान डॉ. अहमद नजीब बुरहानी ने भी बीबीसी को बताया कि देश में चरमपंथ को रोकने के लिए पिछले कुछ दशकों से इस्लाम नुसंतारा की विचारधारा को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य इस्लाम को स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार ढालना है.
इस्लाम नुसंतारा को बढ़ावा देने वाले एक पोस्टर में उन्होंने कहा, इस्लाम नुसंतरा इंडोनेशिया में इस्लाम का एक विशिष्ट रूप है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र के मुसलमानों के बीच स्थानीय पहचान को मजबूत करना है, ताकि वे यहां रहने वाले विभिन्न धर्मों और मान्यताओं के लोगों के साथ मतभेदों के बावजूद सहिष्णुता, सहनशीलता दिखा सकें.
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डॉ. अहमद नजीब बुरहानी ने आगे कहा कि आधुनिक इस्लाम एक ऐसा सिद्धांत है, जो आतंकवाद और उग्रवाद से पीड़ित अन्य देशों के लिए उपयोगी हो सकता है. यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुल देश है, जो किसी भी बदलाव के बावजूद अभी भी बड़े पैमाने पर इस्लाम के प्रभाव में काम करता है. भारत सहित कई देश इस्लामी प्रथाओं के इंडोनेशियाई संस्करण में रुचि दिखा रहे हैं.
इस संबंध में प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक गौतम चौधरी लिखते हैं, ‘‘एक बहु-आस्था वाला देश होने के नाते भारत को इंडोनेशिया के इस्लाम नुसंतारा मॉडल का पालन करना मुश्किल हो सकता है. हालांकि, मॉडल को भारतीय संस्करण में अपनाया जा सकता है, क्योंकि इस्लामी चरमपंथ की समस्या दोनों देशों के लिए समान है.’’
उन्होंने कहा कि भारत की तरह इंडोनेशिया को भी 90के दशक के अंत में मुसलमानों और ईसाइयों के बीच इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसे अंतरधार्मिक संगठनों के गठन और रचनात्मक बातचीत के माध्यम से हल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः इस्लाम नुसंतारा का निर्माण हुआ. गौतम चौधरी आगे लिखते हैं, ‘‘इंडोनेशिया से सीखकर, भारत इस्लाम के साथ स्थानीय संस्कृति को शामिल करके और इस्लाम धर्म को प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का स्रोत बनाकर इस्लाम नुसंतारा का अपना संस्करण विकसित कर सकता है.’’