इस्लाम में इबादत, काम और परिवार के बीच संतुलन के निर्देश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-01-2025
Islam guides on balancing prayer, work and family I simbolic photo
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-इमान सकीना

इस्लाम में काम और श्रम को केवल आजीविका का साधन नहीं , बल्कि इसे आस्था और इबादत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है. इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार, हर व्यक्ति को अपनी योग्यता, कौशल और समाज की जरूरतों के अनुसार अपने काम का चयन करने का अधिकार है..

शरिया कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और ज्ञान के अनुसार काम का चयन करना चाहिए. यह सभी प्रकार के कार्यों को समानता के स्तर पर लाता है और वर्गभेद को समाप्त करता है. इस्लाम में आलस्य और अनुत्पादक गतिविधियों को ईमान की कमी माना जाता है. हर शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने और समाज में योगदान देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

इस्लाम में काम को इबादत के रूप में देखा गया है .जब इसे ईमानदारी और नैतिकता के साथ किया जाए. कुरान में कहा गया है:"और कहो, काम करो; तो अल्लाह तुम्हारे काम को देखेगा, और [तो] उसका रसूल और ईमान वाले भी देखेंगे..." (कुरान, 9:105).

यह आयत परिश्रम और काम की जवाबदेही पर जोर देती है. पैगंबर मुहम्मद ने भी कहा:"कोई भी व्यक्ति अपने हाथों के श्रम से अर्जित भोजन से बेहतर भोजन नहीं खा सकता है." (सहीह बुखारी).यह कथन आत्मनिर्भरता और ईमानदारी से अर्जित जीविका के सम्मान को दर्शाता है.

इस्लाम में नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच न्याय, निष्पक्षता और सम्मान पर आधारित संबंध स्थापित किए गए हैं. नियोक्ताओं को मजदूरों की मजदूरी समय पर और उचित रूप से अदा करने का निर्देश दिया गया है. पैगंबर मुहम्मद  ने कहा:"मजदूर को उसका पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दो." (इब्न माजा).दूसरी ओर, कर्मचारियों को अपने काम को ईमानदारी और लगन के साथ पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

इस्लाम कार्यस्थल पर शोषण और अन्याय को सख्ती से मना करता है. नियोक्ताओं को श्रमिकों को कम भुगतान करने या उनके लिए अनुचित शर्तें लगाने से रोका गया है. इसी तरह, कर्मचारियों को अपने काम में बेईमानी करने से बचने की सलाह दी गई है.

इस्लाम कड़ी मेहनत को प्रोत्साहित करता है, लेकिन यह भी सिखाता है कि सांसारिक कार्यों में इतने अधिक न उलझें कि आध्यात्मिक दायित्व और पारिवारिक जिम्मेदारियां उपेक्षित हो जाएं. मुसलमानों को काम, इबादत और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखने का निर्देश दिया गया है.

इस्लाम में श्रम संबंधों की शिक्षाएँ परिश्रम, निष्पक्षता और आपसी सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देती हैं. इन सिद्धांतों का पालन करके, न केवल एक न्यायपूर्ण और समृद्ध समाज का निर्माण किया जा सकता है, बल्कि व्यक्ति अपने धार्मिक कर्तव्यों को भी पूरा कर सकते हैं.इस प्रकार, इस्लाम में काम और श्रम को उच्च स्थान दिया गया है, जो न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक विकास का भी साधन है.