स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित टाटा ने रचा भारत का विज्ञान महाकाव्य

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-03-2025
Inspired by the thoughts of Swami Vivekananda, Tata created the science epic of India
Inspired by the thoughts of Swami Vivekananda, Tata created the science epic of India

 

saleemसाकिब सलीम

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) की स्थापना एक दूरदर्शी और उदार विचारक श्री जमशेदजी नसरवानजी टाटा की प्रेरणा से हुई. यह संस्थान भारत में विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया.

इस संस्थान की नींव रखने में टाटा की गहरी देशभक्ति, उनके विचारों की स्पष्टता, और भारतीय समाज को समृद्ध बनाने का दृढ़ संकल्प था, उनके जीवन की यह महान कृति भारतीय शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुई.

टाटा की प्रेरणा और उच्च शिक्षा में उनकी भूमिका

1889 में बॉम्बे विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में जब बॉम्बे के गवर्नर लॉर्ड रे ने यह बयान दिया कि भारतीय विश्वविद्यालय केवल परीक्षा लेने वाले संस्थान हैं और ज्ञान के निर्माण में कोई योगदान नहीं करते, तो यह बात टाटा के मन में घर कर गई.

यह टाटा के लिए एक बड़ी प्रेरणा बनी, और उन्होंने निर्णय लिया कि भारत में विज्ञान और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक संस्थान की आवश्यकता है, जो न केवल ज्ञान सृजन करें, बल्कि भारतीय समाज को समृद्ध करने में भी योगदान दे.

टाटा ने 1892 में भारतीय छात्रों को यूरोप में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए फेलोशिप देना शुरू किया. उनका उद्देश्य भारतीय छात्रों को प्रशासनिक और तकनीकी सेवाओं के लिए सक्षम बनाना था. इसके माध्यम से, वे चाहते थे कि भारतीय युवा विदेशी स्तर पर मुकाबला करने के योग्य बनें.

यह फेलोशिप एक आसान ऋण प्रणाली पर आधारित थी, जिसमें छात्र जब कमाने लगते थे, तो वे पैसे वापस कर देते थे, ताकि भविष्य के छात्रों के लिए यह अवसर सुलभ हो सके.

स्वामी विवेकानंद से मुलाकात और आईआईएससी का विचार

1893 में, टाटा की मुलाकात स्वामी विवेकानंद से जापान से शिकागो जाने के दौरान हुई. यह मुलाकात उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी. स्वामी विवेकानंद के विचारों ने टाटा को गहरे प्रभावित किया। स्वामी ने टाटा को बताया कि भारत को अपने तपस्वी व्यक्तित्व को नष्ट करने के बजाय उसे उपयोगी दिशा में मोड़ने की आवश्यकता है.

उनका यह संदेश टाटा के दिल में बस गया, और उन्होंने भारत के लिए एक शोध संस्थान की स्थापना की योजना बनानी शुरू की.टाटा ने 1898 में स्वामी विवेकानंद को पत्र लिखकर अपनी योजना के बारे में बताया.

पत्र में उन्होंने लिखा, "मैं भारत के लिए विज्ञान के अनुसंधान संस्थान की अपनी योजना के बारे में आपके विचारों को याद करता हूँ, जो आपने हमें जापान से शिकागो तक की यात्रा के दौरान दिए थे।" स्वामी विवेकानंद ने इस योजना को तत्काल सराहा और रामकृष्ण मिशन के माध्यम से इसे प्रचारित किया.

प्रबुद्ध भारत पत्रिका में उन्होंने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए लिखा कि भारत को जीवित रहने और समृद्ध होने के लिए आधुनिक विज्ञान को अपनाना होगा, खासकर कृषि और वाणिज्य के क्षेत्रों में.स्वामी विवेकानंद की यह अपील राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी रही.

उन्होंने भारतीय जनता से इस योजना को सहयोग देने की अपील की. उनका मानना था कि यदि भारत को महान बनना है, तो उसे वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी विकास की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे. स्वामी के इस आह्वान का प्रभाव पड़ा और कई प्रमुख व्यक्तियों ने इस योजना को अपना समर्थन दिया.

सरकारी समर्थन और संस्थान का मार्ग

स्वामी विवेकानंद की अपील के बाद, मैसूर के दीवान सर शेषाद्रि अय्यर ने इस योजना को वित्तीय और भौतिक रूप से समर्थन देने का वचन दिया. उन्होंने बैंगलोर में 371 एकड़ ज़मीन, 5 लाख रुपये और संस्थान के लिए 1 लाख रुपये की वार्षिक सब्सिडी देने का प्रस्ताव दिया.

हालांकि, बाद में यह राशि घटाकर 30,000 रुपये कर दी गई, क्योंकि सरकार को यह योजना अत्यधिक महत्वाकांक्षी लगी और उसे लगता था कि इसमें बहुत अधिक धनराशि की आवश्यकता होगी.इसके बावजूद, टाटा ने सरकार के सुझावों को स्वीकार करते हुए इस योजना में संशोधन किया और उसे एक निश्चित रूप में पेश किया.

1899 में, टाटा ने भारत सरकार से यह अनुरोध किया कि वे इस योजना पर विचार करें और उसे कार्यान्वित करने के लिए उचित कदम उठाएं.

टाटा की मृत्यु और उनके पुत्र का योगदान

जे. एन. टाटा की 1904 में मृत्यु हो गई, लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई इस महान योजना को उनके बेटे, सर दोराबजी टाटा ने आगे बढ़ाया। 1909 तक, 1,25,000 रुपये की वार्षिक आय का आंकड़ा दोगुना हो चुका था, और भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो चुका था.

आईआईएससी की स्थापना और उसका महत्व

1909 में, भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना हुई, और यह भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में एक नई शुरुआत के रूप में उभरा. यह संस्थान न केवल भारत को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, बल्कि यह भारतीय युवाओं को उच्च शिक्षा और तकनीकी दक्षता प्राप्त करने के लिए एक अवसर प्रदान करता था.

टाटा का यह विश्वास था कि विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान के माध्यम से भारत के पास अपनी प्राकृतिक संपत्ति का सही उपयोग करने का अवसर होगा, जिससे देश की समृद्धि में वृद्धि होगी. उन्होंने हमेशा विज्ञान को उद्योग का सहायक माना, और यही उनका मूल विचार था. इस संस्थान की स्थापना ने भारत को वैश्विक मंच पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नया स्थान दिलाया.

आईआईएससी की स्थापना एक महान दृष्टिकोण

 

आईआईएससी की स्थापना एक महान दृष्टिकोण और देशभक्ति का परिणाम थी, जो केवल एक व्यक्ति, श्री जमशेदजी नसरवानजी टाटा के विचारों के माध्यम से संभव हो सका. स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक विचारों ने इस योजना को गति दी और राष्ट्र को इसके महत्व का एहसास कराया.

आज आईआईएससी न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में उच्चतम शिक्षा और शोध संस्थानों में से एक माना जाता है, और यह टाटा और स्वामी विवेकानंद की दूरदर्शिता का प्रतीक है.