-फ़िरदौस ख़ान
उर्दू शायरी में राम का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है. उर्दू के शायरों ने राम की ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को अपनी शायरी में बख़ूबी पेश किया है. ये राम सिर्फ़ हिन्दुओं के ही राम नहीं हैं, बल्कि सबके राम हैं. ये राम किसी मज़हब, जाति और पंथ तक सीमित नहीं हैं. ये राम तो कुल कायनात के राम हैं.
उर्दू और फ़ारसी के महान शायर अल्लामा इक़बाल राम को हिन्दुस्तान का इमाम कहा करते थे. वे कहते हैं-
लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के रामे-हिन्द
ये हिन्दियों के फ़िक्रे-फ़लक उसका है असर
रिफ़अत में आस्मां से भी ऊंचा है बामे-हिन्द
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द
है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है
यही रौशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था
राम सिर्फ़ एक व्यक्ति या एक राजा ही नहीं थे, बल्कि वे एक पूरी सभ्यता और संस्कृति थे. उनके वजूद में हिन्दुस्तानी तहज़ीब का समावेश है. उनकी पत्नी सीता भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं.
वे राजसी सुख और वैभव छोड़कर अपने पति के साथ वनवास जाती हैं. उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी अपने भाई के साथ वनवास जाते हैं और उनकी सेवा करते हैं. वे भारतीय जीवन दर्शन और आपसी व पारिवारिक संबंधों के आदर्श स्थापित करते हैं. ज़फ़र अली ख़ान कहते हैं-
नक़्श-ए तहज़ीब-ए हुनूद अभी नुमाया है अगर
तो वो सीता से है, लक्ष्मण से है और राम से है
राम एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई, एक आदर्श पति और आदर्श मित्र ही नहीं, बल्कि एक आदर्श राजा भी थे. उनका सम्पूर्ण जीवन मर्यादामय था, तभी तो उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है. सागर निज़ामी कहते हैं-
ज़िन्दगी की रूह था, रूहानियत की शाम था
वो मुजस्सम रूप में इंसान का इरफ़ान था
और
हिन्दियों के दिल में, बाक़ी है मोहब्बत राम की
मिट नहीं सकती क़यामत तक हुकूमत राम की
यूं तो राम की ज़िन्दगी के अनेक पहलू हैं, लेकिन राम के वनवास पर बहुत लिखा गया है. मशहूर शायर व फ़िल्म गीतकार जां निसार अख़्तर कहते हैं-
उजड़ी-उजड़ी हर आस लगे
ज़िन्दगी राम का बनवास लगे
इसी तरह हफ़ीज़ बनारसी लिखते हैं-
एक सीता की रफ़ाक़त है तो सबकुछ पास है
ज़िन्दगी कहते हैं जिसको राम का बन-वास है
राम का ज़िक्र बहुत ज़्यादा किया जाता है. कई त्यौहार राम से जुड़े हुए हैं, जैसे रामनवमी, दशहरा और दिवाली आदि. तभी तो ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर कहते हैं-
उस बुत-ए-काफ़िर का ज़ाहिद ने भी नाम ऐसा जपा
दाना-ए-तस्बीह हर इक राम-दाना हो गया
शायरों ने राम की ख़ूबसूरती पर बहुत कुछ लिखा है. फ़िराक़ गोरखपुरी सीता के स्वयंवर के मौक़े राम के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन करते हुए कहते हैं-
ये हल्के सलोने सांवलेपन का समां
जमुना जल में और आसमानों में कहां
सीता पे स्वयंवर में पड़ा राम का अक्स
या चांद के मुखड़े पे है ज़ुल्फ़ों का धुआं
नज़ीर अकबराबादी का ये दोहा बहुत ही लोकप्रिय है. लोग इसे कहावत के तौर पर भी ख़ूब इस्तेमाल करते हैं.
दिल चाहे दिलदार को तन चाहे आराम
दुविधा में दोहू गए माया मिली न राम
अमीर ख़ुसरो ने अपनी मुकरियों में राम का ज़िक्र किया है. वे कहते हैं-
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम
वक़्त के साथ बहुत कुछ बदल गया. अगर कुछ नहीं बदला, तो राम का वनवास नहीं बदला. मशहूर शायर व फ़िल्म गीतकार कैफ़ी आज़मी तसव्वुर करते हैं कि आज के दौर में अगर राम अयोध्या वापस आएं, तो वे कैसा महसूस करेंगे. उनकी नज़्म ‘दूसरा बनवास’ मुलाहिज़ा फ़रमाएं-
राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक़्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहां ख़ून के गहरे धब्बे
पांव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फ़ज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे
अब्दुर्रऊफ़ मख़्फ़ी राम को सम्बोधित करते हुए उनसे सवाल पूछते हैं-
सितम मिटाने तुम आए थे मेरी लंका में
बताओ राम ये क्या है तुम्हारी बस्ती में
इसी तरह क़ल्ब-ए-हुसैन नादिर कहते हैं-
हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहां
जल रही है दिल-ए-पुरनूर की लंका देखो
इंसान अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने दीन और धर्म के नाम पर इतना ख़ून बहाता है कि बहुत से लोग धर्म के नाम से भी चिढ़ने लगते हैं और नास्तिक हो जाते हैं. मशहूर शायर और फ़िल्म गीतकार साहिर लुधियानवी कहते हैं-
जिस राम के नाम पे ख़ून बहे उस राम की इज़्ज़त क्या होगी
जिस दीन के हाथों लाज लुटे इस दीन की क़ीमत क्या होगी
इसी तरह अनवारी अंसारी कहते हैं-
लड़वा रहे हैं राम को जो भी रहीम से
इन मज़हबी ख़ुदाओं से क्या दोस्ती करें
रहबर जौनपुरी कितनी प्रासंगिक बात कहते हैं-
रस्म-ओ-रिवाज-ए-राम से आरी हैं शर-पसंद
रावण की नीतियों के पुजारी हैं शर-पसंद
अब इंसान ने इतने रूप धारण कर लिए हैं कि उसके असल रूप की पहचान करना मुश्किल हो गया है. ऐसे में लोग संतों को भी शक की नज़र से देखने लगे हैं. बशीर बद्र कहते हैं-
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे
हालात जो भी हों, लेकिन इतना तय है कि राम आज भी जनमानस से जुड़े हैं. सैयद सफ़दर रज़ा खंडवी कहते हैं-
सत-गुरु लिख या रहीम-ओ-राम लिख
एक है उसके हज़ारों नाम लिख
बेशक ये राम की सरज़मीं है. उस राम की, जिस पर हिन्दुस्तान को हमेशा नाज़ रहेगा.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)