रमज़ान की तैयारी कैसे करें ?

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 25-02-2025
How to prepare for Ramadan?
How to prepare for Ramadan?

 

-फ़िरदौस ख़ान

रमज़ान का महीना बहुत ही मुक़द्दस माना जाता है. इस महीने में सबसे ज़्यादा इबादत की जाती है. रोज़े और तरावीह की वजह से इस महीने में मसरूफ़ियत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. इसलिए इस माह के लिए ख़ुद को पहले से ही तैयार कर लेना चाहिए.

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समय सारिणी 

रमज़ान में इबादत करनी होती है और अपने कारोबारी काम भी करने होते हैं. इसलिए एक समय सारिणी बना ली जाए, तो बहुत सी चीज़ें आसान हो जाएंगी. सहरी की वजह से बहुत जल्दी उठना पड़ता है. इसलिए नौकरीपेशा और कारोबारी लोग कोशिश करें कि तरावीह की नमाज़ आदि से फ़ारिग़ होकर जल्द सो जाएं, ताकि उनकी नींद पूरी हो सके.

उन्हें दिन में आराम करने का वक़्त नहीं मिल पाता है, इसलिए उनकी नींद पूरी होना बहुत ज़रूरी है. नींद पूरी न होने पर जिस्म थका-थका रहता है और सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है. इसी तरह अपने सब कामों के लिए समय तय आकर लेना चाहिए.

इबादत

रमज़ान में ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करने की कोशिश करें. क़ुरआन करीम पढ़ें. तय कर लें कि एक दिन में कितना कलाम पाक पढ़ना है. ये ज़रूरी नहीं है कि रमज़ान में कई कलाम पाक मुकम्मल किए जाएं, बल्कि कलाम पाक को तर्जुमे के साथ समझकर पढ़ना ज़रूरी है.

अल्लाह ने कलाम पाक इसीलिए नाज़िल किया है कि हम अल्लाह के हुक्म के बारे में जाने और उस पर अमल करके अपनी दुनिया और आख़िरत बेहतर बनाएं. रमज़ान में ज़्यादा से ज़्यादा नफ़िल नमाज़ें और तस्बीह पढ़ें.अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अल्लाह की राह में गुज़रने वाली एक सुबह या एक शाम दुनिया से और जो कुछ दुनिया में है, सबसे बेहतर है.”(सही बुख़ारी 2792)

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सदक़ा और ज़कात

रमज़ान से पहले सदक़ा और ज़कात अदा करना अफ़ज़ल माना जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ज़रूरतमंद लोग इन पैसों से अपने घर में राशन आदि भरवा लेंगे और फिर इत्मिनान से रमज़ान में रोज़े रखेंगे. इस बात का भी ख़ास ख़्याल रखा जाए कि ज़कात उन लोगों तक पहुंचानी चाहिए, जो इसके असल हक़दार हैं.

यानी ऐसे ज़रूरतमंद लोग जो भूखे सो जाते हैं, लेकिन किसी से कुछ नहीं मांगते. इसलिए ज़कात उन रिश्तेदारों को देनी चाहिए, जो बहुत ज़्यादा ज़रूरतमंद हैं. यतीम और मिस्कीन लोग भी इसके हक़दार हैं.

रिश्तेदारी या पड़ौस में कुछ ऐसे घर भी होते हैं, जिनमें सिर्फ़ बूढ़ी या बेवा औरतें और छोटे बच्चे होते हैं और उनके घर कोई कमाने वाला भी नहीं होता या औरतें कुछ काम भी करती हैं, तो उनकी आमदनी बहुत ही कम होती है.

ऐसे में ज़कात के सबसे ज़्यादा हक़दार यही लोग हैं. इसलिए बेहतर यही है कि ज़कात अपने ज़रूरतमंद क़रीबी रिश्तेदारों और पड़ौसियों को दी जाए. इस बात का भी ख़्याल रखा जाए कि ज़कात की रक़म कई लोगों में थोड़ी-थोड़ी देने की बजाय किसी एक को ही दे दी जाए. ज़कात की रक़म से किसी का क़र्ज़ भी उतारा जा सकता है या किसी बीमार को इलाज के लिए भी ये रक़म दी जा सकती है.

याद रखें कि ज़कात ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए ही मुक़र्रर की गई है, इसलिए इसे सही जगह पहुंचाएं. इस बात का भी ख़्याल रखें, जिन्हें ये रक़म दी जा रही है, उन्हें शर्मिंदगी का अहसास न हो. उन्हें महसूस हो कि ये रक़म देकर उन पर कोई अहसान नहीं किया जा रहा है, बल्कि इस पर उनका हक़ है.

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राशन 

रमज़ान से पहले अपने घर में भी राशन आदि भर लेना बेहतर है. इससे किसी चीज़ के लिए बार-बार बाहर जाने की ज़रूरत नहीं रहेगी और इबादत के लिए ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त मिल सकेगा. अगर आस-पड़ौस में कोई ज़रूरतमंद है, तो उसे भी कुछ सामान दे दिया जाए, तो बहुत ही अच्छा है. आख़िर रमज़ान का पैग़ाम भी तो यही है, यानी दूसरों की मदद करना.     

ख़रीददारी 

रमज़ान से पहले ही ईद के कपड़े, जूते, चप्पल, चूड़ी, मेहंदी आदि भी ख़रीद लेना बेहतर है. इससे बाज़ार जाने का वक़्त बच जाएगा. वैसे भी रोज़े की हालत में धूप में घूमने से प्यास लगने लगती है. ये सब वो काम हैं, जो रमज़ान से पहले निपटाये जा सकते हैं.   

अपनी इस्लाह करें 

रमज़ान का महीना हमें ख़ुद की इस्लाह करने का मौक़ा देता है. रोज़े का मतलब सिर्फ़ सहरी से इफ़्तार तक भूखा-प्यासा रहना ही नहीं है, बल्कि इस दौरान ख़ुद को तमाम तरह की बुराइयों से भी दूर रखने का हुक्म है.

अगर रोज़े ही हालत में ख़ुद को बुराइयों से दूर नहीं रखा गया, तो फिर वह रोज़ा नहीं माना जाएगा. ऐसा करना सिर्फ़ ख़ुद को भूखा-प्यासा रखना है, यानी फ़ाक़ा करना है. रोज़े का मक़सद ही यही है कि बन्दा ख़ुद को बुराइयों से बचाए और नेकी के रास्ते पर चले.

एक हदीस में कहा गया है कि कितने ही रोज़ेदार ऐसे होते हैं, जिन्हें रोज़े में भूखा और प्यासा रहने के सिवा कुछ नसीब नहीं होता, क्योंकि वे रोज़े की हालत में चीज़ें फ़रोख़्त करते वक़्त कम तोलते और कम नापते हैं, सामान में मिलावट करते हैं, रिश्वत लेते हैं, बोहतान लगाते हैं, चुग़लियां करते हैं, लोगों का माल और रिश्तेदारों का हक़ खा जाते हैं.

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 अपनी नीयत के बारे में सोचें

इस्लाम के मुताबिक़ हर काम की जज़ा नीयत पर निर्भर करती है. अगर कोई नेक काम दिखावे और अपनी वाह-वाही के लिए किया जाए, तो उसकी कोई अहमियत नहीं रह जाती. इसलिए किसी भी काम के पीछे नीयत मदद करना होनी चाहिए, अल्लाह की रज़ा हासिल करना होनी चाहिए, न कि दिखावा करना. इसलिए इस बात पर भी ग़ौर करना चाहिए कि कहीं हम जाने या अनजाने में ऐसा कुछ तो नहीं कर रहे हैं, जो हमें नहीं करना चाहिए.        

फ़ुज़ूल कामों से बचें

रमज़ान का एक-एक लम्हा बहुत मुक़द्दस है. इसलिए कोशिश करें कि इस महीने में ग़ैर ज़रूरी या फ़ुज़ूल काम न करें. मसलन सोशल मीडिया से दूर रहें, क्योंकि इससे वक़्त बहुत ज़ाया होता है. बहुत ज़रूरी हो, तभी सोशल मीडिया पर जाएं. इसके साथ-साथ बीड़ी, सिगरेट, गुटका आदि बुराइयों से भी दूर रहें.

 (लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)