ईमान सकीना
जब मैं स्वयं और अन्य लोगों पर उदास बादल मंडराते देखती हूँ, तो मैं यह प्रश्न पूछना चाहती हूं कि ‘‘आपको क्या परेशान कर रहा है?’’ और इस प्रश्न के लगभग हर उत्तर के लिए, आप स्पष्ट रूप से समाधान देख सकते हैं- ‘आभारी बनें’ यानी ‘शुक्र’ अदा करें यानी ईश्वर के प्रति कृतज्ञता जताएं.
और यह सच है. कृतज्ञता हमें हमारी सभी समस्याओं को पूरी तरह से अलग नजरिए से देखने में मदद कर सकती है. यह हमें शिकायत करने के बजाय समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है.
यह हमें कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक और खुश रहने में मदद करती है. यह हमें जीवन में और भी अधिक मेहनत करने में मदद करती है. इसलिए हम कभी भी किसी भी चीज को हल्के में नहीं लेते.
‘‘अल्लाह के प्रति कृतज्ञ रहो, क्योंकि जो कृतज्ञ है, वह अपनी आत्मा की भलाई के लिए कृतज्ञ है.’’ सूरह 31, आयत 12
कृतज्ञता सोचने का एक तरीका (जीवन पर एक दृष्टिकोण) है, जो हमारे कई नफ्स की प्रतिकूल भावनाओं को दूर कर देता है. कम आत्मसम्मान, शत्रुता, लालच, नफरत, अधिक चाहने से तनाव, आलस्य, इत्यादि... कृतघ्नता कई अप्रिय भावनाओं से जुड़ी हुई है. कृतज्ञता ही एकमात्र मानसिकता है, जो धैर्य, खुशी और कड़ी मेहनत के केंद्र में निहित है.
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कृतज्ञता इन प्रतिकूल भावनाओं की सड़ी-गली परतों को हटाकर आपकी आत्मा को शुद्ध करती है. कोई भी अन्य रवैया कृतज्ञता जितना शक्तिशाली नहीं है... संभवतः यह एकमात्र रवैया ही इतना शक्तिशाली है, जो हमें इन सभी घृणित भावनाओं से छुटकारा दिला सकता है.
वास्तव में ‘आभारी मुसलमान’ होना कोई आसान बात नहीं है. हममें से अधिकांश लोग कृतज्ञता की हर बात पढ़ने-सुनने के बावजूद कृतघ्न ही बने रहेंगे. और यह कोई रहस्य नहीं है और न ही यह मेरी कोई साहसिक राय है.
अल्लाह कुरान में बार-बार कहता हैः ‘‘और यदि तुम अल्लाह के उपकारों को गिनोगे, तो तुम उन्हें गिन नहीं सकोगे. वास्तव में, मानवजाति आम तौर पर, सबसे अधिक अन्यायी और कृतघ्न है.’’ कुरानः अध्याय 14, आयत 34
‘‘और वास्तव में तुम्हारा रब मनुष्यों पर दयालु है, परन्तु उनमें से अधिकांश कृतज्ञ नहीं हैं.’’ कुरान अध्याय 27, आयत 74
तो, आइए इसका सामना करें- कृतघ्नता हमारे पास आसानी से आती है. दूसरी ओर, कृतज्ञता ऐसी नहीं है. हमें अपनी संपत्ति, स्वास्थ्य, स्थिति, बौद्धिक क्षमता और जीवन सहित हमारे पास जो कुछ भी है, उसके लिए अल्लाह का आभारी होना चाहिए.
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हमें यह पहचानना चाहिए कि हमारा अस्तित्व और हमारा सतत पोषण अल्लाह पर निर्भर है. इसलिए, जो भी प्रशंसा करनी है, वह केवल उसी के कारण है, क्योंकि किसी के पास उसकी इच्छा के अलावा आपको कुछ भी देने की शक्ति या संसाधन नहीं है.
उसके अनुग्रह और आशीर्वाद अनगिनत हैं. अल्लाह कहता हैः तो क्या वह जो सृजन करता है, उसकी तुलना किसी ऐसे व्यक्ति से की जा सकती है, जो सृजन नहीं कर सकता? तो क्या तुम ध्यान न दोगे?
‘‘और क्या तुम अल्लाह की नेमतों को गिनने की कोशिश करोगे, तुम उन्हें कभी नहीं गिन पाओगे. निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयालु है और जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ तुम प्रकट करते हो, अल्लाह उसे भी जानता है. (अन-नहल 16ः17-19)
कुरान में कई जगहों पर अल्लाह ने ‘शुक्र’ और ‘कुफ्र’ शब्दों की तुलना की है. (अल-बकरा 2ः152, लुकमान 31ः12). ईमान का अर्थ ‘कुफ्र’ या कृतघ्नता के विपरीत ‘शुक्र’ या कृतज्ञता है.
एक अविश्वासी उस प्राणी के प्रति कृतघ्न होता है, जिसने उसे सब कुछ दिया है, जबकि एक मोमिन या आस्तिक वह है, जो अल्लाह ने उसे जो कुछ भी दिया है, उसके लिए हमेशा आभारी रहता है, क्योंकि वह पहचानता है कि उसका भगवान दयालु और प्रेमपूर्ण है. (हुद 11ः90)
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अपने जीवन पर विचार करें और आपको ऐसे असंख्य अवसर मिलेंगे, जब अल्लाह का ‘हाथ’ आपको थामे रहा और आपकी मदद कर रहा था. अक्सर, हम अपने शब्दों के पूर्ण निहितार्थ को समझे बिना, अवचेतन रूप से ‘ईश्वर को इसके लिए और उसके लिए धन्यवाद’ अभिव्यक्ति का उपयोग करते हैं. अल्लाह सबसे दयालु होने के नाते, हमें कुरान में बार-बार यह कहकर प्रेरित करता है कि वह उन सभी को इनाम देगा, जो आभारी हैं.
‘‘और अल्लाह कृतज्ञों को अवश्य बदला देगा.’’ कुरानः सूरह 3, आयत 145
“...और जो कोई इस दुनिया का बदला चाहेगा - हम उसे उसमें से देंगे, और जो कोई आखिरत का इनाम चाहेगा - हम उसे उसमें से देंगे. और हम कृतज्ञों को बदला देंगे.” कुरान सूरह 3ः आयत 145
अंततः, हम मुसलमानों के लिए कृतज्ञता कोई फुर्सत का काम नहीं है. हम आभारी होने के लिए ‘थैंक्सगिविंग’ का इंतजार नहीं करते हैं और शेष वर्ष शिकायत करते हुए बिताते हैं.
आज अपने आशीर्वादों को मत गिनो और महीने के बाकी दिनों के लिए उनके बारे में मत भूलो. क्योंकि कृतज्ञता का प्रभाव संचयी होता है. मतलब, जब आप रोजाना छोटी-छोटी चीजों के लिए आभारी होने का अभ्यास करते हैं, तो कृतज्ञता का प्रभाव बढ़ जाता है. आपकी मानसिकता धीरे-धीरे तब तक बदलती रहती है, जब तक कि आपकी नींद में भी कृतज्ञता आपके पास न आ जाए.