साकिब सलीम
यह बहुत कम लोगों को पता है कि देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद संगीत प्रेमी थे. यही नहीं वह सितार भी अच्छा बजा लेते थे. आज देश में संगीत के क्षेत्र में जो चलन और रूझान बढ़ा है, दरअसल, उनके बोए बीज का ही परिणाम है.
‘आप (सरदार पटेल) शायद यह नहीं जानते कि मुझे (मौलाना आजाद) हमेशा से भारतीय संगीत में गहरी दिलचस्पी रही है और एक समय मैं खुद भी इसका अभ्यास करता था. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 10 फरवरी 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल को लिखे इस पत्र में खुद के संगीत प्रेमी होने का खुलासा किया था.
पत्र लिखा था. वह ऑल इंडिया रेडियो प्रसारण के संगीत के मानक से असंतुष्ट थे और उन्होंने पटेल से इस मामले को देखने के लिए कहा ताकि ऑल इंडिया रेडियो मानक निर्धारित करे. मौलाना अबुल कलाम आजाद न केवल एक इस्लामी विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी थे एक प्रशिक्षित संगीतकार भी थे. संगीत में गहरी रुचि रखते थे.
मौलाना आजाद ने 16 सितंबर 1943 को मौलाना हबीबुर्रहमान शेरवानी को लिखे एक गैर-पोस्ट पत्र में लिखा, “मैं आपको एक बात बताऊं! मैंने इस पर कई बार विचार किया है. मैं जीवन में हर चीज के बिना खुश रह सकता हूं, लेकिन मैं संगीत के बिना नहीं रह सकता.
मेरे लिए संगीत की ध्वनि ही जीवन का सहारा है, मानसिक परिश्रम का निवारण है और शरीर के सभी रोगों का निवारण है....यदि आप मुझे जीवन की सुख-सुविधाओं से वंचित करना चाहते हैं, तो बस मुझे इस चीज से वंचित कर दें और तुम्हारा उद्देश्य पूरा हो जाएगा.”
मौलाना आजाद ने 1905 में संगीत में रुचि विकसित की, जब उन्होंने राग दर्पण खरीदा, जो फकीर खुल्ला सैफ खान (औरंगजेब के समकालीन संगीतकार) द्वारा भारतीय संगीत पर एक प्राचीन संस्कृत पाठ का फारसी अनुवाद था.
जब वह किताब की दुकान पर थे, कोलकाता के अलिया कॉलेज के प्रिंसिपल डेनिस रॉस ने 17 वर्षीय मौलाना को इस पुस्तक की सामग्री समझाने की चुनौती दी. मौलाना को संगीत का कोई ज्ञान नहीं और वे समझा नहीं सकते थे. इसके बाद उन्होंने संगीत सीखने को एक चुनौती के रूप में लिया.
मौलाना ने अपने सूफी पिता के शिष्य और जयपुर और दिल्ली परंपराओं से प्रशिक्षित एक कुशल संगीतकार मसीता खान को उन्हें सिखाने के लिए कहा. मौलाना के पिता संगीत के खिलाफ थे, इसलिए मसीता ने उन्हें एक दोस्त के घर पर प्रशिक्षण दिया.
सितार सीखने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा. वह एक कुशल सितार वादक बनने तक लगभग पांच वर्षों तक प्रतिदिन सितार का प्रशिक्षण लेते रहे.मौलाना आजाद ने लिखा, जिस दौर में आगरा की यात्रा पर सहमति बनी थी, उसी दौर की एक घटना है.
अप्रैल का महीना था और चांदनी रातें थीं. जब रात का आखिरी पहर शुरू होने वाला होता तो चांद का पर्दा हट जाता और एक-एक करके झांकता. मैंने इस बात की व्यवस्था करने के लिए विशेष प्रयास किए कि रात को सितार लेकर ताज की छत पर यमुना की ओर मुख करके बैठे. जैसे ही चांदनी फैलने लगती तो वह सितार पर गाना बजाता और उसमें खो जाता. मैं क्या कहूँ और कैसे कहूँ कि कैसे माया की चमक इन्हीं आँखों के सामने से गुजरी है.”
26 पेज लंबे इस पत्र में मौलाना आजाद ने भारतीय संगीत और मध्य युग के माध्यम से इसके विकास का एक संक्षिप्त इतिहास लिखा है. उनकी नजर में संगीत भारत की रगों में बहता है. जब औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया तो वह भारतीयों को संगीत सीखने और बजाने से नहीं रोक सका.
यह आदेश केवल दरबारी संगीतकारों को प्रभावित कर सका, लेकिन कई संगीतकारों ने शाही दरबारों के बाहर इस परंपरा को जीवित रखा.आजादी के बाद जब मौलाना आजाद ने भारत के शिक्षा मंत्री का कार्यभार संभाला तो उन्होंने भारतीय संगीत के प्रचार-प्रसार में विशेष रुचि ली.
उनके मंत्रालय द्वारा किए गए पहले कार्यों में से एक भारतीय संस्कृति के संगीत, नाटक और नृत्य में प्रशिक्षण के लिए एक ट्रस्ट स्थापित करना था.29 अगस्त 1949 को दिए गए एक भाषण में, मौलाना आजाद ने कहा, इस उद्देश्य के लिए तीन अकादमियां होनी चाहिए, अर्थात् भारतीय भाषाओं, साहित्य, दर्शन और इतिहास से निपटने के लिए एक अकादमी ऑफ लेटर्स, एक कला अकादमी (ग्राफिक, प्लास्टिक सहित) और अनुप्रयुक्त कला) और वास्तुकला, और नृत्य, नाटक और संगीत की एक अकादमी.
इन अकादमियों का उद्देश्य उन विषयों में अध्ययन को विकसित करना, बढ़ावा देना होगा जिनसे वे निपटते हैं.उन्होंने यह भी घोषणा की, “भारत सरकार ने भारतीय संगीत को प्रोत्साहन देने की दिशा में पहले कदम के रूप में, दो अकादमियों की स्थापना को बढ़ावा दिया है - एक लखनऊ में हिंदुस्तानी संगीत और दूसरी मद्रास में कर्नाटक संगीत. इन अकादमियों का उद्देश्य भारतीय संगीत की इन शाखाओं में उन्नत अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा.
28 जनवरी, 1953 को भारतीय नृत्य, नाटक और संगीत अकादमी (संगीत नाटक अकादमी) का उद्घाटन करते हुए मौलाना आजाद ने कहा, “मेरा मानना है कि संगीत के क्षेत्र में भारत की उपलब्धि ग्रीस से भी अधिक है.
भारतीय संगीत की व्यापकता और गहराई शायद बेजोड़ है. साथ ही स्वर और वाद्य संगीत का एकीकरण भी. भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सार हमेशा आत्मसात और संश्लेषण की भावना रही है. इसे संगीत के क्षेत्र से अधिक स्पष्टता से कहीं नहीं दिखाया गया है.”
मौलाना आजाद ने आगे कहा, “नृत्य, नाटक और संगीत की यह अनमोल विरासत वह है जिसे हमें संजोना और विकसित करना चाहिए. हमें न केवल अपने लिए बल्कि मानव जाति की सांस्कृतिक विरासत में अपने योगदान के लिए भी ऐसा करना चाहिए.
कला के क्षेत्र से अधिक कहीं भी यह सच नहीं है कि कायम रखने का मतलब सृजन करना है. परंपराओं को संरक्षित नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें नए सिरे से बनाया जा सकता है. इन अकादमियों का उद्देश्य हमारी परंपराओं को संस्थागत स्वरूप प्रदान करके उनका संरक्षण करना होगा.”
शिक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मौलाना आजाद द्वारा भारतीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए छात्रों और संस्थानों को वित्तीय सहायता भी दी गई थी.