राकेश चौरासिया
बसंत पंचमी का त्यौहार भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित पूरे उपमहाद्वीप में एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इसे माँ सरस्वती की पूजा से जोड़ा जाता है, लेकिन इस त्योहार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह सभी समुदायों द्वारा मनाया जाता है, जिसमें मुसलमान भी शामिल हैं. खासतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले मुसलमान इसे अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं. आइए जानते हैं कि भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुसलमानों के लिए बसंत पंचमी का क्या महत्व है और वे इसे किस तरह मनाते हैं.
भारत में मुसलमान और बसंत पंचमी
भारत में बसंत पंचमी मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में मुसलमानों द्वारा सांस्कृतिक रूप से मनाई जाती है. कई सूफी दरगाहों पर इस अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं.
भारत में कई प्रमुख सूफी दरगाहों पर इस दिन विशेष आयोजन होते हैं. दरगाहों पर बसंत पंचमी मनाने की परंपरा सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया और उनके प्रिय शिष्य अमीर खुसरो से जुड़ी हुई है. हम उन प्रमुख दरगाहों के बारे में जानेंगे, जहाँ बसंत पंचमी का आयोजन किया जाता है.
हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह, दिल्ली
हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह बसंत पंचमी उत्सव का सबसे बड़ा केंद्र है. इस परंपरा की शुरुआत अमीर खुसरो ने की थी. कहा जाता है कि जब हजरत निजामुद्दीन औलिया अपनी मां की मृत्यु के बाद शोक में थे, तो अमीर खुसरो ने उन्हें खुश करने के लिए सरसों पीले फूल और बसंती वस्त्र लेकर उनके पास पहुंचे. यह देखकर हजरत निजामुद्दीन औलिया मुस्कुराए और तब से यह परंपरा हर वर्ष दरगाह पर मनाई जाती है.
कव्वाली कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें अमीर खुसरो की रचनाओं का गायन किया जाता है. कव्वाल पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं और पारंपरिक सूफी गीत प्रस्तुत करते हैं. चादर और पीले फूलों की पेशकश की जाती है. बड़ी संख्या में हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालु एक साथ इस आयोजन में भाग लेते हैं.
हजरत सलीम चिश्ती दरगाह, फतेहपुर सीकरी (उत्तर प्रदेश)
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी स्थित हजरत सलीम चिश्ती की दरगाह पर भी बसंत पंचमी का आयोजन किया जाता है. इस दरगाह पर भी कव्वाली का आयोजन होता है. भक्तजन दरगाह पर पीले फूलों की चादर चढ़ाते हैं. यहाँ आने वाले श्रद्धालु पीले कपड़े पहनते हैं और दुआ माँगते हैं.
अजमेर शरीफ दरगाह, राजस्थान
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, जिसे अजमेर शरीफ के नाम से जाना जाता है, पर भी बसंत पंचमी विशेष रूप से मनाई जाती है. दरगाह पर विशेष कव्वाली का आयोजन होता है. श्रद्धालु चादर और फूल चढ़ाते हैं, जिनमें पीले फूल विशेष रूप से शामिल होते हैं. यहाँ बसंत पंचमी के दिन हजारों लोग सूफी संगीत सुनने के लिए आते हैं.
काको शरीफ दरगाह, बिहार
बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित हजरत बीबी कमाल की दरगाह (काको शरीफ) पर भी बसंत पंचमी को मनाया जाता है. यहाँ कव्वाली का आयोजन किया जाता है. श्रद्धालु इस दिन पीले वस्त्र पहनकर दरगाह पर जाते हैं. इस दिन सूफी संतों की शिक्षाओं को याद किया जाता है.
हजरत बारी शाह की दरगाह, लखनऊ
लखनऊ में हजरत बारी शाह की दरगाह पर भी बसंत पंचमी का आयोजन किया जाता है. कव्वाली और सूफी संगीत की महफिल सजती है. पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा है. पीले फूलों की चादर चढ़ाई जाती है.
हजरत अमीनुद्दीन औलिया दरगाह, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित हजरत अमीनुद्दीन औलिया की दरगाह पर भी बसंत पंचमी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम होते हैं. दरगाह पर कव्वाली और सूफी संगीत का आयोजन होता है. भक्तजन दरगाह पर चादर और फूल चढ़ाते हैं.
सूफी दरगाहों पर बसंत पंचमी के आयोजन यह दर्शाते हैं कि यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रेम, सौहार्द्र, और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है. यह त्योहार भारतीय सांस्कृतिक विरासत की विविधता और समरसता को दर्शाता है, जहाँ भक्ति, संगीत और रंगों का अनूठा संगम देखने को मिलता है.
आम मुस्लिम समाज में बसंत पंचमी
बसंत पंचमी के दिन कई मुस्लिम परिवार पतंगबाजी करते हैं, खासकर उत्तर भारत में. इस दिन पीले रंग के पकवान बनाए जाते हैं, जैसे मीठे चावल और जर्दा. कुछ स्थानों पर बच्चे और युवा पीले कपड़े पहनते हैं और मेले में जाते हैं.
बांग्लादेश में बसंत पंचमी को সরস্বতী পূজা (सरस्वती पूजा) के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं है. यहाँ के मुस्लिम समुदाय भी इसे सांस्कृतिक रूप से मनाते हैं.
सांस्कृतिक उत्सव और मुसलमानों की भागीदारी
ढाका विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थानों में बसंत पंचमी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम होते हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम छात्र एक साथ भाग लेते हैं. हालांकि इस बार कट्टरपंथियों के चलते यह परंपरा खटाई में पड़ती दिख रही है.
मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनाते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं. बांग्लादेशी मुसलमान भी इस दिन पतंगबाजी का आनंद लेते हैं, खासकर पुराने ढाका और चटगांव में.
संगीत और बसंत उत्सव
बांग्लादेश में भी सूफी परंपरा से जुड़े लोग बसंत पंचमी को संगीत और कव्वालियों के जरिए मनाते हैं. ढाका और अन्य प्रमुख शहरों में बसंत पंचमी के दौरान नृत्य-संगीत के कार्यक्रम होते हैं, जिनमें मुस्लिम कलाकार भी शामिल होते हैं.
पाकिस्तान में बसंत पंचमी को एक प्रमुख सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 2007 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बावजूद, पंजाब प्रांत विशेष रूप से लाहौर और फैसलाबाद में आज भी कई मुस्लिम परिवार इसे मनाते हैं.
लाहौर का ऐतिहासिक बसंत उत्सव
2007 से पहले लाहौर में बसंत पंचमी बहुत भव्य तरीके से मनाई जाती थी. मुस्लिम परिवार इस अवसर पर छतों पर पतंग उड़ाते थे और पीले कपड़े पहनते थे. पारंपरिक पकवान जैसे बिरयानी, जर्दा और अन्य मिठाइयाँ बनाई जाती थीं.
धार्मिक और सांस्कृतिक विवाद
पाकिस्तान में कुछ धार्मिक संगठनों ने इसे ‘गैर-इस्लामिक’ कहकर इस पर आपत्ति जताई, जिससे इसे प्रतिबंधित कर दिया गया. हालांकि, पंजाब प्रांत के कई मुस्लिम परिवार इसे आज भी व्यक्तिगत रूप से मनाते हैं. कराची और इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में भी युवा गुप्त रूप से पतंगबाजी करते हैं.
सांस्कृतिक दृष्टिकोण
कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम विचारक बसंत पंचमी को एक हिंदू त्योहार मानते हैं और इससे दूरी बनाए रखते हैं. लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप की गंगा-जमुनी तहजीब इसे केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रखती, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में स्वीकार करती है.
सूफी परंपरा में इस पर्व को प्रेम, आनंद और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है. पतंगबाजी, संगीत, और पीले कपड़े पहनने जैसी परंपराएँ दर्शाती हैं कि यह पर्व एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में सभी समुदायों को जोड़ता है. पाकिस्तान में प्रतिबंध के बावजूद, लोग इसे मनाने के लिए नए तरीके खोज रहे हैं.
भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुसलमान भले ही धार्मिक दृष्टि से बसंत पंचमी को न मनाते हों, लेकिन सांस्कृतिक रूप से यह पर्व उनकी जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है. खासतौर पर उत्तर भारत और बांग्लादेश में मुस्लिम समुदाय इस अवसर पर पतंगबाजी, संगीत और पारंपरिक पकवानों के जरिए इस उत्सव का आनंद लेते हैं.
सूफी परंपरा के तहत इसे एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में स्वीकार किया जाता है, और यह गंगा-जमुनी तहजीब का एक बेहतरीन उदाहरण है. चाहे वह दिल्ली की हजरत निजामुद्दीन दरगाह हो, बांग्लादेश के विश्वविद्यालय हों, या पाकिस्तान के लाहौर की छतेंकृबसंत पंचमी का उत्साह हर जगह देखने को मिलता है.
यह त्योहार केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह प्रेम, सौहार्द्र और आनंद का प्रतीक है, जो उपमहाद्वीप के सभी समुदायों को एक सूत्र में पिरोता है.