राकेश चौरासिया
कर्बला के मैदान में 10 अक्टूबर 680 ईस्वी (10 मुहर्रम 61 हिजरी) को हुई लड़ाई, इस्लामी इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है. इस जंग में, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के पोते और चौथे खलीफा अली इब्न अबी तालिब के बेटे हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) अपने 72 अनुयायियों के साथ, उमय्यद खलीफा यजीद की विशाल सेना से भिड़ गए थे.
यह युद्ध कई जटिल कारकों के कारण हुआ था, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
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सत्ता का संघर्षः यजीद प्रथमएक अनैतिक और अयोग्य शासक था. उसने जबरदस्ती खिलाफत हासिल की थी. हजरत इमाम हुसैन (अ.स.)एक न्यायप्रिय और ईश्वरवादी नेता थे. उन्होंने यजीद के शासन का विरोध किया और इस्लामी मूल्यों के आधार पर शासन करने की मांग की.
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धार्मिक मतभेदः यजीद ने इस्लाम में कई बदलाव किए, जैसे शराब पीना और जुआ खेलना, जो हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके समर्थकों के लिए अस्वीकार्य थे. वे एक शुद्ध और नैतिक इस्लाम का पालन करना चाहते थे.
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न्याय की लड़ाईः हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) ने हमेशा अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी. यजीद के शासन में, मुसलमानों, विशेष रूप से गैर-अरबों, पर अत्याचार किया जा रहा था. हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इन अत्याचारों के खिलाफ लड़ने और न्याय स्थापित करने का फैसला किया.
युद्ध की शुरुआत
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हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) ने यजीद को सत्ता छोड़ने और इस्लामी मूल्यों के आधार पर शासन करने के लिए कई संदेश भेजे, लेकिन यजीद ने इन संदेशों को अनदेखा कर दिया और हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) को मारने का षड्यंत्र रचा.
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हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके अनुयायी, मक्का से कूफा की ओर जा रहे थे, जहां उन्हें लोगों का समर्थन मिलने की उम्मीद थी. रास्ते में, उन्हें यजीद के सैनिकों ने घेर लिया और कर्बला के मैदान में रुकने को मजबूर किया.
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यजीद की सेना ने हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके अनुयायियों को पानी और भोजन तक नहीं पहुंचने दिया. तीन दिनों तक घेराबंदी और युद्ध के बाद, 10 मुहर्रम को, हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके सभी साथी शहीद हो गए.
कर्बला की जंग का महत्व
कर्बला की जंग सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रतीक बन गई है. हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत ने दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित किया है और उनके बलिदान को हर साल मोहर्रम के महीने में याद किया जाता है.
यह जंग हमें सिखाती है कि सच्चाई और न्याय के लिए, चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न हों, हमेशा डटकर मुकाबला करना चाहिए. हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत हमें यह भी याद दिलाती है कि सत्ता का दुरुपयोग करने वालों का अंत हमेशा होता है.