Story by आवाज़ द वॉयस | Published by onikamaheshwari | Date 14-03-2025
Holi 2025: This is how Holi was celebrated in the Mughal court
ज़ाहिद ख़ान
देश में मनाए जाने वाले तमाम त्यौहारों में होली, एक ऐसा त्यौहार है, जो अपनी धार्मिक मान्यताओं से इतर विभिन्न धर्मों के लोगों को आपस में जोड़ने का महत्वपूर्ण काम करता है. मुस्लिम, जैन और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदाय भी बिना किसी धार्मिक भेदभाव के अपने हिंदू भाईयों के साथ होली को जोश-ओ-ख़रोश से मनाते हैं.
आम हो या ख़ास होली पर्व हमेशा से ही सभी का पसंदीदा त्यौहार रहा है. मुग़ल सल्तनत काल में भी विभिन्न हिंदू एवं मुस्लिम त्यौहार ज़बर्दस्त उत्साह और बिना किसी भेदभाव के मनाए जाते थे. होली पर्व को मुग़ल शासकों ने राजकीय मान्यता दी थी. मुग़ल दरबार में कई दिनों तक होली का जश्न मनाया जाता था. अमीर उमराव भी राज्य के सामान्य जन के साथ होली में शामिल होते थे. मुग़ल शहंशाह न सिर्फ़ ख़ुद उत्साह से होली खेलते, बल्कि अपनी हिंदू रानियों को भी होली खेलने से नहीं रोकते थे.
धर्म को लेकर बेहद कट्टरपंथी माने जाने वाले मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की हुकूमत में होली का त्यौहार रंग और उमंग से मनाया जाता था. इस उत्सव में मुस्लिम कुलीन जन अपने हिंदू भाईयों के साथ खुले दिल से शामिल होते थे.
औरंगज़ेब के जीवनी लेखक भीमसेन ने अपनी किताब में उल्लेख किया है, ‘औरंगज़ेब की हुकूमत के दौरान होली के पर्व पर ख़ान जहान बहादुर कोटलाशाह राजा सुब्बान सिंह, राय सिंह राठौर, राय अनूप सिंह और मोकहम सिंह चंद्रावत के घर जाकर रंग पर्व का आनंद उठाते थे.
जिसमें भी ख़ान बहादुर के बेटे मीर अहसान और मीर मुहसिन होली खेलते समय राजपूतों की बनिस्बत ज़्यादा जोश से भरे रहते थे.’ औरंगज़ेब के परिवार के मेंबर उनकी नाराज़गी के बावजूद होली समारोहों में जोश-ओ—ख़रोश से शामिल होते थे.
मिर्ज़ा क़तील की किताब ‘हफ़्त तमाशा’ जो कि अठारहवीं सदी के आस-पास लिखी गई है. इसमें मिर्ज़ा क़तील ने होली पर्व पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है.
अपनी इस टिप्पणी में वे कहते हैं, ‘अफ़गानों और कुछ विद्वेष रखने वाले लोगों के अलावा सब मुसलमान होली खेलते थे. कोई छोटा-सा-छोटा व्यक्ति भी बड़े-से-बड़े संभ्रान्त आदमी पर रंग डालता था, तो वह उसका बुरा नहीं मानता था.’
मुगल काल में बादशाह भी अपनी रानियां के साथ हरम में होली खेला करते थे. खास तौर पर मुगल बादशाह जहांगीर को होली बहुत पंसद थी. होली के त्यौहार की उनकी एक पेंटिंग भी काफी फेमस है जो की गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया में रखी हुई है. बादशाह हरम में अपनी रानियां के साथ जमकर होली खेला करते थे. इसके साथ ही होली के लिए खास तौर पर बाजार सजाया जाता था.
मुगल बादशाह अकबर का होली खेलने का तरीका बाकी लोगों से काफी अलग था. उनके इस तरीके को जानकर आप काफी हैरान रह जाएंगे. बादशाह अकबर होली खेलने के लिए पूरे साल ऐसी चीजें ढूंढा करते थे. जिससे होली के रंगों को दूर तक फेंका जा सके. इस दिन बादशाह अकबर सभी भेदभाव को मिटाकर आम लोगों के साथ होली खेलते थे. जहां सभी मुगल बादशाह जमकर होली खेलते थे.
मुग़ल बादशाहों में ही नहीं, बल्कि बंगाल में भी मुस्लिम नवाब मुर्शीद कुली ख़ान, अली वरदी, सिराजुद्दौला, और मीर जाफ़र होली का त्यौहार धूमधाम से मनाया करते थे. इतिहास की किताबों में यह साफ़-साफ़ ब्यौरा मिलता है कि अली वरदी के भतीजों शहमत जंग और सबलत जंग ने भी एक बार मोती झील के बगीचे में लगातार सात दिन तक होली मनाई. जहां रंगों का त्यौहार मनाने के लिए रंगीन पानी और अबीर का ढेर तथा केसर तैयार कर रखा गया था.
होली की बात हो और अवध का ज़िक्र ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. अवध के नवाब हमेशा विभिन्न उत्सवों में अपनी रियाया के साथ त्यौहारों में शामिल होते थे. उनके दरबार में कई दिन पहले से ही होली की महफ़िलें सजने लगतीं, जिसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते. यह तो बरतानवी इतिहासकार और हिंदू-मुस्लिम समुदाय में शामिल कट्टरपंथी थे, जिन्होंने यह सब कभी पसंद नहीं किया.
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हिंदू और मुस्लिम के बीच एक-दूसरे के प्रति मन में जो भ्रांतियां और शक़ की दीवारें खड़ी की गईं, उसके पीछे धार्मिक असहिष्णुता नहीं, बल्कि सियासी मायने ज़्यादा हैं. जिसको मौजूदा पीढ़ी को जानने की बेहद ज़रूरत है.