फ़िरदौस ख़ान
रमज़ान इबादत का महीना है. यह हिजरी कैलेंडर का नौवां महीना होता है. इस्लाम के मुताबिक़ अल्लाह तआला ने अपने बन्दों पर पांच चीज़ें फ़र्ज क़ी हैं, जिनमें कलमा, नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात शामिल हैं. कलमा मुसलमानों का अक़ीदा है. नमाज़ तो रोज़ाना ही पढ़ी जाती है, लेकिन रोज़े का फ़र्ज़ अदा करने का मौक़ा रमज़ान में आता है.
हदीसों के मुताबिक़ रमज़ान में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर होता है और इस महीने में इबादत करने पर 70 गुना सवाब हासिल होता है. इसी मुबारक माह में अल्लाह ने अपने आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर क़ु़रआन नाज़िल किया था.
क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! उसी अल्लाह ने यह किताब तुम पर हक़ के साथ नाज़िल की है. यह उन सब आसमानी किताबों की तसदीक़ करती है, जो इससे पहले नाज़िल हुई हैं और उसी ने तौरात और इंजील नाज़िल की है.”
(क़ुरआन 3:3)
इस्लामी तारीख़ के मुताबिक़ दूसरी हिजरी में रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ किए गए थे. इसी साल सदक़-ए-फ़ित्र और ज़कात का भी हुक्म नाज़िल हुआ था. रमज़ान के रोज़ों से पहले मुहर्रम की दस तारीख़ को आशूरा का रोज़ा रखा जाता था, लेकिन यह इख़्तियारी था.
जब अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का से हिजरत करके मदीना तशरीफ़ लाए, तो आपने देखा कि मदीना के बाशिन्दे साल में दो दिन खेल-तमाशों के ज़रिये ख़ुशियां मनाते हैं, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे दरयाफ़्त किया कि इन दो दिनों की हक़ीक़त क्या है? सहाबा ने कहा- “हम जाहिलियत के ज़माने में इन दो दिनों में खेल-तमाशे किया करते थे.”
चुनांचे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अल्लाह तआला ने इन दो दिनों को बेहतर दिनों से बदल दिया है, वह ईदुल अज़हा और ईदुल फ़ित्र है. इस तरह दूसरी हिजरी के शव्वाल महीने की पहली तारीख़ को ईद मनाने की शुरुआत हुई. अल्लाह तआला ने ईद की ख़ुशियां मुसलमानों के सर पर फ़तेह और इज़्ज़त का ताज रखने के बाद अता फ़रमाईं.”
अल्लाह ने रोज़े क्यों फ़र्ज़ किए? इसका जवाब ख़ुद अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में दिया है. अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ऐ ईमान वालो ! तुम पर उसी तरह रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले के लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ.”
(क़ुरआन 2:183)
यानी मुसलमानों से पहले नसरानियों यानी ईसाइयों, यहूदियों और उनसे पहले की क़ौमों पर भी रोज़े फ़र्ज़ किए गए थे. रोज़े में फ़ज्र की अज़ान से पहले से लेकर मग़रिब की अज़ान यानी सूरज ढलने तक खाने और पीने पर पूरी तरह से पाबंदी होती है.
इतना ही नहीं, इस दौरान हर बुरे काम से ख़ुद को दूर रखना होता है, यहां कि झूठ बोलने और ग़ुस्सा करने से भी परहेज़ करना होता है. और रोज़े में बुराइयों से दूर रहकर बन्दा परहेज़गार बन जाता है.
ऐसा नहीं है कि रोज़े सब लोगों पर ही फ़र्ज़ किए गए हैं. जो लोग बीमार हैं और उनमें रोज़े रखने की हिम्मत और ताक़त नहीं है, तो उन्हें छूट दी गई है. ऐसे लोग मोहताजों को खाना खिलाकर फ़िदया अदा कर सकते हैं.
क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “गिनती के चन्द दिन रोज़े रखने हैं. फिर अगर तुम में से कोई बीमार हो या सफ़र में हो, तो दूसरे दिनों में रोज़े रखकर गिनती पूरी कर ले. और जिनमें रोज़ा रखने की क़ूवत न हो, तो वे एक मोहताज को खाना खिलाकर फ़िदया अदा करें. फिर कोई अपनी ख़ुशी से ज़्यादा नेकी करे, तो यह उसके लिए बेहतर है.
और अगर तुम रोज़ा रखो, तो यह तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है. अगर तुम जानते हो. रमज़ान वह मुक़द्दस महीना है, जिसमें क़ुरआन नाज़िल किया गया है, जो लोगों के लिए सरापा हिदायत है और जिसमें रहनुमाई करने वाली और हक़ व बातिल की तमीज़ सिखाने वाली वाज़ेह निशानियां हैं.
ऐ मुसलमानो ! फिर तुममें से जो इस महीने में मौजूद हो, तो वह रोज़े ज़रूर रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो, तो वह दूसरे दिनों में रोज़े रखकर गिनती पूरी करे. अल्लाह तुम्हारे हक़ में आसानी चाहता है और तुम्हारे साथ दुश्वारी नहीं चाहता और शुमार का हुक्म इसलिए दिया गया है, ताकि तुम रोज़ों की गिनती पूरी कर लो. और उसके लिए अल्लाह की बड़ाई करो, जो हिदायत उसने तुम्हें दी है और तुम उसके शुक्रगुज़ार बनो.”
(क़ुरआन 2: 184-185)
रमज़ान से पहले मस्जिदों में रंग-रोग़न का काम पूरा कर लिया जाता है. मस्जिदों में शामियाने लग जाते हैं. रमज़ान का चांद देखने के साथ ही इशा की नमाज़ के बाद तरावीह पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है.
रमज़ान के महीने में जमात के साथ क़ियामुल्लैल यानी रात को नमाज़ पढ़ने को 'तरावीह' कहते हैं. इसका वक़्त रात में इशा की नमाज़ के बाद फ़ज्र की नमाज़ से पहले तक है.
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान में क़ियामुल्लैल में बेहद दिलचस्पी ली. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- ''जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब हासिल करने की नीयत से रमज़ान में क़ियामुल्लैल किया,
उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे.'' आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “यह ऐसा महीना है कि इसका पहला हिस्सा अल्लाह की रहमत है, दरमियानी हिस्सा मग़फ़िरत है और आख़िरी हिस्सा जहन्नुम की आग से छुटकारा है.''
रमज़ान के तीसरे हिस्से को अशरा भी कहा जाता है. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- ''रमज़ान के आख़िरी अशरे की ताक़ रातों में लैलतुल क़द्र की तलाश करो.'' लैलतुल क़द्र को शबे-क़द्र भी कहा जाता है. शबे-क़द्र के बारे में क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “ बेशक हमने इस क़ुरआन को शबे क़द्र में नाज़िल किया. और तुम क्या जानते हो कि शबे क़द्र क्या है?
शबे क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है. इस रात में फ़रिश्ते और रूहुल अमीन यानी जिब्रईल अलैहिस्सलाम अपने परवरदिगार के हुक्म से हर काम के लिए ज़मीन पर उतरते हैं. यह रात फ़ज्र होने तक सलामती है.
(क़ुरआन 97:1-5 )
मुसलमान रमज़ान की 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख़ को पूरी रात इबादत करते हैं और अल्लाह से जहन्नुम से निजात की दुआएं मांगते हैं. रमज़ान का तअरूफ़ी ख़ुत्बा सैयदना हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि शाबान की आख़िरी तारीख़ को नबी ए अकरम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिम्बर पर तशरीफ़ फ़रमा हुए और इरशाद फ़रमाया- “ऐ लोगो!” तुम पर एक अज़ीम और मुबारक महीना साया फ़गन होने वाला है.
ऐसा महीना जिसमें एक ऐसी रात है, जो एक हज़ार महीनों से बढ़कर है. अल्लाह तआला ने इस महीने के दिनों का रोज़ा फ़र्ज़ और रातों की इबादत नफ़िल क़रार दी है. जो शख़्स इस महीने में एक नेक अमल के ज़रिये अल्लाह तआला के क़ुर्ब का तालिब हो, वह ऐसा ही है जैसे दूसरे महीने में फ़र्ज़ अमल करे. और जो शख़्स कोई फ़र्ज़ अदा करे,
वह ऐसा ही है जैसे दूसरे महीनों में 70 फ़र्ज़ अदा करे. ऐ लोगो ! यह सब्र का महीना है, और सब्र का सवाब और बदला जन्नत है. और यह लोगों के साथ हुस्ने सुलूक और ख़ैरख़्वाही का महीना है. इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ा दिया जाता है. जो आदमी इस मुबारक महीने में किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराए, तो उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं,
उसे जहन्नुम से आज़ादी का परवाना मिलता है, और रोज़ेदार के सवाब में कमी किए बग़ैर इफ़्तार कराने वाले को भी उसके बराबर सवाब से नवाज़ा जाता है. यह सुनकर सहाबा ने अर्ज़ किया- “ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हम में से हर आदमी ख़ुद में इतनी गुंजाइश नहीं पाता कि वह दूसरे को इफ़्तार कराए और उसके सवाब को हासिल करे.”
इस सवाल पर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को ऐसा जवाब दिया, जिससे उनकी मायूसी ख़ुशी में बदल गई. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अल्लाह तआला ये इनाम हर उस शख़्स पर फ़रमाता है, जो किसी भी रोज़ेदार को एक घूंट दूध या लस्सी, एक अदद खजूर, यहां तक कि एक घूंट पानी पिलाकर भी इफ़्तार करा दे.
हां, जो शख़्स रोज़ेदार को पेट भर खिलाए, तो अल्लाह रब्बुल आलमीन उसे क़यामत के दिन मेरे हौज़ ए कौसर से पानी पिलाएगा, जिसके बाद उसे कभी प्यास नहीं लगेगी यहां तक कि वह हमेशा के लिए जन्नत में दाख़िल हो जाएगा.
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “यह ऐसा महीना है जिसका पहला अशरा रहमत, दरमियानी अशरा मग़फफ़िरत और आख़िरी अशरा जहन्नुम से आज़ादी का है. जो शख़्स इस महीने में अपने ग़ुलाम के बोझ को हल्का कर दे, तो अल्लाह तआला उसकी मग़फ़िरत फ़रमाता है और आग से आज़ादी देता है. ऐ लोगो ! इस महीने में चार चीज़ों की कसरत रखा करो. पहली कालिमा ए तैय्यब ला इलाह इल्लल्लाह, दूसरी अस्तग़फ़ार, तीसरी जन्नत की तलब, चौथी आग से पनाह.
(मिश्कात:1/174, बैहक़ी शिअबुल ईमान: 3/ 305)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी ए करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “जब माहे रमज़ान आता है तो आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को क़ैद कर दिया जाता है. (बुख़ारी)
हज़रत उमर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- ‘‘क़यामत के दिन रोज़े और क़ुरआन बन्दे की शफ़ाअत करेंगे. रोज़े अर्ज़ करेंगे कि ऐ अल्लाह ! मैंने इसे दिन में खाने और शहवत से रोका. इसलिए तू इसके लिए मेरी शफ़ाअत क़ुबूल फ़रमा और क़ुरआन कहेगा कि मैंने इसे रात में सोने से रोका. लिहाज़ा इसके हक़ में मेरी शफ़ाअत क़ुबूल फ़रमा ले. फिर दोनों की शफ़ाअत क़ुबूल होगी. (मिश्कात शरीफ़)
अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर फ़ारूक़ आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “रमज़ान में अल्लाह का ज़िक्र करने वाले को बख़्श दिया जाता है और इस रमज़ान के महीने में अल्लाह पाक से मांगने वाला कभी भी महरूम नहीं रहता.”
शाहीन कहती हैं कि इस महीने में क़ुरआन नाज़िल हुआ, इसलिए रमज़ान बहुत ख़ास है. हर मुसलमान के लिए यह महीना मुक़द्दस और आला है. हमें इस महीने की अहमियत को समझते हुए ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त इबादत में गुज़ारना चाहिए.
वैसे भी रमज़ान में हर नेकी और इबादत का सवाब साल के दूसरे महीनों से ज़्यादा ही मिलता है. वे कहती हैं कि शबे-क़द्र को उनके ख़ानदान के सभी लोग रातभर जागते हैं. मर्द इबादत के लिए मस्जिदों में चले जाते हैं और औरतें घर पर इबादत करती हैं.
वहीं, ज़ुबैर कहते हैं कि काम की वजह से पांचों वक़्त क़ी नमाज़ नहीं हो पाती, लेकिन रमज़ान में उनकी कोशिश रहती है कि नमाज़ और रोज़ा क़ायम हो सके. दोस्तों के साथ मस्जिद में जाकर तरावीह पढ़ने की बात ही कुछ और है. इस महीने की रौनक़ों को देखकर कायनात की ख़ूबसूरती का अहसास होता है. रमज़ान हमें नेकियां और इबादत करने की हिदायत देता है और हमें अल्लाह के क़रीब करता है.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)