भक्ति चालक
इस वक़्त रमज़ान का मुक़द्दस महीना जारी है। बच्चे, नौजवान और बुज़ुर्ग सभी इस महीने में बड़े शौक़ से रोज़ा रखते हैं. सूरज निकलने से पहले जो खाना खाया जाता है उसे 'सहरी' कहते हैं. इसके बाद सीधे सूरज डूबने तक खाने-पीने से परहेज़ किया जाता है. शाम को पहला निवाला खजूर से लिया जाता है, जिसे 'इफ्तार' कहा जाता है.
रोज़ा खोलने के कुछ ही मिनटों बाद मग़रिब की नमाज़ होती है. उसके बाद तक़रीबन एक घंटे बाद ईशा की नमाज़ अदा की जाती है. रमज़ान के दौरान इशा की नमाज़ के बाद तरावीह की ख़ास नमाज़ होती है, जो तक़रीबन एक घंटा चलती है. इसी वजह से रोज़ा खोलने के बाद इत्मीनान से खाना खाने का वक़्त नहीं मिल पाता, इसलिए वक़्त पर इफ्तार करना जरूरी होता है.
रमज़ान के दौरान सहरी और इफ्तार के वक़्त की सख़्ती से पाबंदी की जाती है. ऐसे में जो लोग रोज़गार, तालीम या दूसरे कामों की वजह से घर से बाहर होते हैं, उन्हें सहरी और इफ्तार का इंतज़ाम करने में मुश्किल होती है. इसी परेशानी को देखते हुए महाराष्ट्र की कई समाजी तंज़ीमें रमज़ान में मुफ़्त सहरी और इफ्तार तक़सीम करने की ख़िदमत अंजाम दे रही हैं.
आज की इस ख़ास रिपोर्ट में जानते हैं कि ये समाजी तंज़ीमें किस तरह ज़रूरतमंदों की मदद कर रही हैं...
रमज़ान फाउंडेशन - परली वैजनाथ
परली वैजनाथ की रमज़ान फाउंडेशन नामी तंज़ीम पिछले दो साल से मुफ्त सेहरी का इंतज़ाम कर रही है. इस तंज़ीम के कार्यकर्ता पूरे साल पैसे जमा करके रमज़ान के महीने में महीने भर रोज़ेदारों और ज़रूरतमंदों तक सहरी पहुंचाने का नेक काम अंजाम देते हैं. 40 से 50 लोगों की यह तंज़ीम परली वैजनाथ के रेलवे स्टेशन पर मुसाफ़िरों और ज़रूरतमंदों को सेहरी के डिब्बे तक़सीम करती है.
खुद के हाथों से खाना बनाने का जज़्बा
खास बात यह है कि इस तंज़ीम के कारकुन खुद अपने हाथों से सेहरी तैयार करते हैं. औरतें भी इस काम में मदद करती हैं – कोई सब्ज़ियां छांटती है, तो कोई आटा गूंधती है. यह लोग दिनभर इसी तैयारी में लगे रहते हैं.जब खाना बनकर तैयार हो जाता है तो रात 9बजे तमाम कारकुन खाने के डिब्बे लेकर रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं.
जहां वे आवाज़ लगाते हैं – "फ्री सेहरी… फ्री सेहरी…" ताकि रोज़ेदार और ज़रूरतमंद लोग इस सेहरी से फ़ायदा उठा सकें. सेहरी का वक्त खत्म होने तक इनकी यह भाग दौड़ जारी रहती है.
मजहब से ऊपर उठकर खिदमत
इस मुहिम की सबसे काबिल-ए-तारीफ़ बात यह है कि यह सहरी सिर्फ मुसलमानों तक ही नहीं, बल्कि हर जरूरतमंद तक पहुंचाई जाती है. सेहरी के डिब्बे में 2 रोटियां, सब्जी, 2केले और पानी की बोतल होती है. इस तंज़ीम के कारकुनों का कहना है कि वे चाहते हैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिले, इसलिए रमज़ान शुरू होने से पहले ही शहर में बैनर लगाकर लोगों तक इस मुहिम की खबर पहुंचाई जाती है। हर रोज़ 250से 300 लोगों तक यह सहरी पहुंचाई जाती है.
कैसे आया यह ख्याल?
इस नेक मुहिम के पीछे की कहानी बताते हुए संस्था के जिम्मेदार सय्यद वकार कहते हैं –
"रमज़ान के दौरान हम एक बार रेलवे स्टेशन पर थे। उस वक्त वहां का कैंटीन बंद था. कुछ मुसाफ़िरों ने हमसे नज़दीकी होटल के बारे में पूछा, लेकिन उस वक़्त इतना सुबह कोई होटल खुला नहीं था.
"तभी हमने सोचा कि रमज़ान के दौरान बहुत से रोज़ेदार सफर में होंगे, जिन्हें सहरी के लिए परेशानी हो सकती है. इसलिए हमने यह फैसला किया कि कम से कम रमज़ान में तो हमें सहरी बांटकर रोज़ेदारों की खिदमत करनी चाहिए."
वह आगे बताते हैं –
"शुरुआत में हमारे इस मुहिम को ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिली. लेकिन बाद में हमने इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए इश्तेहार लगवाये. हमारा मकसद सिर्फ खाना बांटना नहीं, बल्कि समाज की सेवा करना है. हमारा मजहब भी हमें इसी का हुक्म देता है."
कादरिया वेलफेयर सोसाइटी - पुणे
जुन्नर तालुके की कादरिया वेलफेयर सोसाइटी पिछले 20साल से पुणे शहर में रमज़ान के दौरान मुफ्त सहरी तक़सीम (वितरित) कर रही है. इसके साथ ही, जुन्नर शहर में यह संस्था पुलिस प्रशासन की खास मौजूदगी में इफ्तार का भी एहतिमाम करती है.
खास बात यह है कि इस इफ्तार में सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि इलाके की गणेश मंडलियां और दूसरी समाजसेवी संस्थाएं भी शामिल होती हैं. संस्था के सदर रऊफ खान ने इसे "सौहार्द का इफ्तार" नाम दिया है.
पुणे के छात्रों के लिए राहत का काम
पुणे, जिसे शिक्षा का गढ़ कहा जाता है, वहां देशभर से छात्र पढ़ाई के लिए आते हैं. रमज़ान के दौरान घर से दूर रहने वाले इन छात्रों को सहरी के वक्त परेशानी न हो, इसके लिए रऊफ खान की संस्था उन्हें सेहरी के डिब्बे मुहैया कराती है.
इस सेहरी डिब्बे में खजूर, शरबत और अलग-अलग फल शामिल होते हैं.
पुणे के वाकड़, बालेवाड़ी, वारजे माळवाडी और पेठ इलाके में रोज़ 60 से ज्यादा सहरी डिब्बे बांटे जाते हैं.
"मुझे सिर्फ इंसानियत का धर्म प्यारा है"
इस नेक पहल के बारे में बात करते हुए रऊफ खान कहते हैं –
"इंसानियत की भावना से मैं यह खिदमत कर रहा हूं. ज़रूरतमंदों की मदद करना और भूखों को खाना खिलाना, इससे बड़ा कोई सवाब नहीं है.। इसी सोच के साथ मैंने यह मुहिम शुरू की."
"मैं सिर्फ इंसानियत को ही अपना धर्म मानता हूं. इसलिए मेरी संस्था न सिर्फ रोज़ेदारों के लिए, बल्कि दूसरे समाजों, खासतौर पर महिलाओं के लिए भी कई तरह के कार्यक्रम चलाती है."
खिदमत-ए-खल्क़ फाउंडेशन – उस्मानाबाद
खिदमत-ए-खल्क़ फाउंडेशन महाराष्ट्र भर में काम करने वाली एक तंज़ीम है. ये तंज़ीम पिछले आठ साल से मुफ़्त सेहरी तक़सीम कर रही है.इस मुहिम की सबसे ख़ास बात यह है कि सेहरी खाने वाले रोज़ेदारों के साथ-साथ इसे बनाने वाले हाथ भी खुश होते हैं. क्योंकि यह तंज़ीम हर साल किसी ज़रूरतमंद ख़ानदान को सेहरी बनाने का काम देती है, ताकि उनका भी रमज़ान अच्छे से गुज़रे.
यह मुहिम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद, औरंगाबाद, नांदेड़, लातूर, परली और मोमिनाबाद जैसे शहरों में चलाई जा रही है. इन शहरों की मस्जिदों, मदरसों और अस्पतालों में आने वाले ज़रूरतमंदों के लिए पूरी रमज़ान के दौरान सहरी और इफ्तार का इंतज़ाम किया जाता है.
ख़ासतौर पर अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों को इस मुहिम से बहुत राहत मिलती है. तंज़ीम अस्पतालों में पोस्टर लगवाकर लोगों तक यह पैग़ाम पहुँचाती है कि वे मुफ़्त सेहरी और इफ्तार हासिल कर सकते हैं.
इस पूरी मुहिम का ख़र्च तंज़ीम के कारकुन ख़ुद उठाते हैं. हर रोज़ 60 से ज़्यादा डिब्बे ज़रूरतमंदों तक पहुँचाए जाते हैं. सेहरी के डिब्बे में तीन रोटियाँ, दो तरह की सब्जियां, चावल और पानी की बोतल होती है.उस्मानाबाद शहर के कारकुन सय्यद ज़ाकिर कहते हैं, "रमज़ान के इस पाक महीने में यह काम करके हमें लोगों की दुआएँ मिलती हैं.
न सिर्फ़ रोज़ेदार बल्कि सेहरी बनाने वाले लोग भी हमें दुआएँ देते हैं. हम जानबूझकर ज़रूरतमंद घरों को सेहरी बनाने का काम देते हैं ताकि उनका भी रमज़ान अच्छी तरह गुज़रे."
वह आगे कहते हैं, "हमसे सेहरी लेने वाले मुसाफ़िर भी इस नेक काम में हिस्सा लेने की ख़्वाहिश जताते हैं. पिछले साल तो शहर के पुलिस सुपरिटेंडेंट शकील साहब ने हमारे काम की तारीफ करते हुए हमारी मदद भी की थी. हमारी यही दुआ है कि अल्लाह हमारे इस काम को और ज़्यादा फैलाए."
अल-हैदरी चैरिटेबल ट्रस्ट – पुणे
पुणे की अल-हैदरी चैरिटेबल ट्रस्ट और अहलेबैत हेल्पलाइन पिछले आठ सालों से मुफ़्त सेहरी और इफ्तार का एहतिमाम कर रही हैं. हर रोज़ ये तंज़ीमें क़रीब 400 रोज़ेदारों तक सेहरी के डिब्बे पहुँचाती हैं. इस मुहिम से सबसे ज़्यादा फ़ायदा उन तलबा, मजदूरों, मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों को होता है जो इलाज के लिए शहर में आए होते हैं.
इन तंज़ीमों के 20कारकुन इस मुहिम को पूरा करने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं. पुणे के पेठ इलाक़े, कोंढवा, कोथरूड, फर्ग्युसन कॉलेज रोड, पुणे यूनिवर्सिटी, विमाननगर और येरवडा जैसे इलाक़ों में इस सेहरी के डिब्बों की ख़ास मांग रहती है. रात 11बजे से खाना बनाने का सिलसिला शुरू होता है, जो सुबह 3 बजे तक चलता रहता है. फिर सुबह 3:30से 5बजे तक शहर के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में सेहरी तक़सीम की जाती है.
इस मुहिम के बारे में अल-हैदरी चैरिटेबल ट्रस्ट के सेक्रेटरी खिसाल जाफ़री कहते हैं, "इस्लाम में रमज़ान के महीने की बड़ी अहमियत है. इस दौरान ख़िदमत-ए-खल्क़ पर ज़ोर दिया जाता है. इसी सोच के साथ हमने यह मुहिम शुरू की, ताकि हमारे हाथों से कोई नेक काम अंजाम पाए। इस पाक महीने में जितना हम समाज की भलाई करेंगे, उतना ही सवाब मिलेगा."
वह आगे कहते हैं, "शुरुआत में इस मुहिम को ज़्यादा पहचान नहीं मिली, लेकिन अब डिब्बों की मांग और हमारे काम की पहुंच बढ़ चुकी है. इफ्तार के मुक़ाबले सेहरी की डिमांड ज़्यादा होती है, क्योंकि उस वक़्त होटल बंद रहते हैं। हमारे पास काम करने वाले लोग और वक़्त सीमित हैं, इसलिए हम ज़्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाते. मेरा समाज से यही कहना है कि अगर हम सब मिलकर ऐसे नेक काम करें, तो बहुत से ज़रूरतमंदों की मदद हो सकती है."
एहसास फाउंडेशन – उस्मानाबाद
उस्मानाबाद की एहसास फाउंडेशन पिछले छह सालों से मुफ़्त सहरी तक़सीम कर रही है. कळंब गांव के नौजवान मिलकर शहर में इस मुहिम को अंजाम देते हैं. ये नौजवान सोशल मीडिया का बेहतरीन इस्तेमाल कर अपने पैग़ाम को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाते हैं. तंज़ीम के पोस्टर पर लिखा गया एक खूबसूरत जुमला इस मुहिम का मक़सद साफ़ कर देता है:
"करो मेहरबानी तुम अहले ज़मीं पर,
ख़ुदा मेहरबान होगा अर्श-ए-बरीं पर."
इस मुहिम के तहत गरीब और ज़रूरतमंद औरतों को सेहरी बनाने का काम दिया जाता है. इससे उन्हें रोज़गार भी मिलता है और एक नेक काम का हिस्सा बनने की ख़ुशी भी.एहसास फाउंडेशन के बानी अमीन कहते हैं, "हमारी तंज़ीम और इससे जुड़ा हर शख़्स बिल्कुल बेग़रज़ (निस्वार्थ) होकर इस मुहिम में शामिल है.
सिर्फ़ इसलिए कि हम खुशहाल हैं, इसका मतलब यह नहीं कि हर कोई खुश है. ज़रूरतमंदों की मदद करना कोई एहसान नहीं, बल्कि हमारा फ़र्ज़ है. और इस एहसास को हमेशा ज़िंदा रखना चाहिए."
महाराष्ट्र भर में कई छोटी-बड़ी तंज़ीमें इस मुहिम में शामिल हैं, जैसे:
1) मदनी चैरिटेबल ट्रस्ट – सांगली
सांगली की मदनी चैरिटेबल ट्रस्ट पिछले नौ सालों से मुफ़्त सेहरी तक़सीम कर रही है. इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा उन तलबा (विद्यार्थियों) और मरीज़ों को मिल रहा है जो शहर में तालीम या इलाज के लिए आते हैं.इस मुहिम को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए तंज़ीम के कारकुनों (कार्यकर्ताओं) ने सोशल मीडिया पर पोस्टर वायरल किया है. ज़रूरतमंद लोग सुबह 10बजे से दोपहर 2 बजे तक संपर्क करें, तो उन्हें सहरी घर तक पहुंचाई जाएगी.
2) स्काई ग्रुप – अमरावती
अमरावती के कुछ नौजवानों ने मिलकर स्काय ग्रुप के ज़रिए मुफ़्त सेहरी तक़सीम करने का फैसला किया. इस मुहिम से ज्यादा से ज्यादा लोग फ़ायदा उठा सकें, इसके लिए सोशल मीडिया पर पोस्टर शेयर किया गया है। उन्होंने इसमें संपर्क नंबर भी दिया है और ख़ूबसूरत अंदाज़ में लोगों से कहा है:
"मुस्कुराते हुए कॉल करें."
3) सहरी इंतजाम कमेटी – कुपवाड
कुपवाड की सहरी इंतजाम कमेटी ने पिछले साल से शहर में ख़ास सेहरी का एहतिमाम शुरू किया है.यह मुहिम उन लोगों के लिए है जो रोज़गार, स्कूल या इलाज के लिए अपने घरों से बाहर रहते हैं.इन्होंने पोस्टर जारी कर सुबह 11बजे से शाम 7बजे तक सेहरी के लिए संपर्क करने की अपील की है.
4) फातिमा आजिज़ फाउंडेशन – औरंगाबाद
औरंगाबाद की फातिमा आज़िज़ फाउंडेशन हॉस्पिटल में भर्ती मरीज़ों और हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों तक मुफ़्त सेहरी पहुँचा रही है. चिकलठाणा और जालना रोड के अस्पतालों में रोज़ाना सेहरी के डिब्बे भेजे जाते हैं।
रमज़ान में इंसानियत की मिसाल
इनके अलावा भी कई मुस्लिम तंज़ीमें रमज़ान के पाक महीने में सेहरी और इफ्तार मुफ़्त तक़सीम करती हैं. रोज़ेदारों के साथ-साथ दूसरे मज़हबों के ज़रूरतमंद लोगों को भी यह खाना दिया जाता है.इंसानियत और भाईचारे की इस ख़िदमत को आवाज़ मराठी का सलाम!