गुलाम कादिर
गुरु नानक (1469-1539) को भारतीय इतिहास के महान संतों में गिना जाता है. उनकी शिक्षाएं एक नए मार्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसमें उन्होंने मानवता के कल्याण के लिए एक अनोखी दृष्टि को अपनाया। उनके धार्मिक विचारों और इस्लाम के साथ उनके संबंध को लेकर भारतीय और पाकिस्तानी लेखकों के बीच मतभेद हैं.
विशेषकर यह दावा कि उन्होंने इस्लाम अपनाया था या नहीं. इस लेख में हम उनके जीवन की कुछ घटनाओं और उनसे जुड़े तथ्यों पर चर्चा करेंगे, जिससे इस मुद्दे पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्राप्त किया जा सके.
गुरु नानक का इस्लाम के प्रति दृष्टिकोण और बाबर के साथ मुलाकात
इतिहास के अनुसार, मुगल सम्राट बाबर और गुरु नानक की मुलाकात एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है. बाबरनामा में उल्लेखित है कि बाबर ने पानीपत की लड़ाई से पूर्व एक 'पवित्र पीर' से आशीर्वाद लिया था. बाबर के आशीर्वाद पाने की यह घटना, कुछ लेखकों के अनुसार, इस ओर इशारा करती है कि वह गुरु नानक को एक 'मुस्लिम पीर' के रूप में मानते थे.
इसमें यह भी कहा गया है कि गुरु नानक ने बाबर को सात मुट्ठी रेत दी, जो इस बात का प्रतीक था कि उनके वंश का शासन सात पीढ़ियों तक चलेगा. सिख परंपरा भी इस घटना को स्वीकार करती है, लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं है कि बाबर ने गुरु नानक को किस धार्मिक दृष्टिकोण से देखा.
बाबर, एक कट्टर मुसलमान था. उसकी किसी हिंदू संत से आशीर्वाद लेने की संभावना कम ही थी. ऐसे में यह संभावना है कि उसने गुरु नानक को एक 'मुस्लिम पीर' के रूप में देखा हो. लेकिन सिख विद्वानों के अनुसार, यह कहना कि गुरु नानक एक मुसलमान थे, यह उनके संदेश को सीमित करना होगा. उनके उपदेश धार्मिक सीमाओं से परे थे.
गुरु नानक का चोगा और इस्लाम से जुड़ी मान्यताएँ
गुरु नानक द्वारा पहना गया 'चोगा' भी उनके इस्लाम से संभावित संबंध के संदर्भ में देखा जाता है. यह चोगा मुस्लिम संतों का परिधान माना जाता था, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद अपने शिष्य गुरु अंगद को सौंपा. इस चोगे पर विशेष लिखावट है, जो कि 1897 में अहमदिया मुसलमानों के प्रमुख हजरत मिर्जा गुलाम अहमद के आग्रह पर खोला गया था.
ऐसा कहा जाता है कि इस चोगे पर "ला इलाहा इल्लल्लाह" लिखा हुआ था. इस घटना का वर्णन मुस्लिम लेखकों ने इस रूप में किया कि गुरु नानक इस्लाम से प्रभावित थे. लेकिन सिख विद्वानों का कहना है कि उन्होंने यह चोगा पहनने का कारण अपने अनुयायियों को यह समझाने के लिए किया कि ईश्वर सभी धर्मों में एक ही है..
गुरु नानक की मक्का यात्रा और इसके पीछे की मंशा
कुछ मुस्लिम विद्वानों का दावा है कि गुरु नानक मक्का गए थे, जो कि सिर्फ मुस्लिमों के लिए ही खुला है, और वे एक मुसलमान के रूप में ही मक्का गए होंगे. इसके बावजूद, सिख इतिहास कहता है कि गुरु नानक मक्का एक 'पवित्र पीर' के रूप में गए थे, न कि किसी धर्म विशेष के अनुयायी के रूप में. उनका जीवन धार्मिक मतभेदों को मिटाने और सभी धर्मों के बीच भाईचारे का संदेश देने में समर्पित था..
गुरु नानक की शिक्षाओं में इस्लामिक और हिंदू तत्वों का समन्वय
गुरु नानक की शिक्षाओं में "एक ईश्वर" का विचार प्रमुख है, जो इस्लामी एकेश्वरवाद से प्रभावित लगता है. उन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांड और सामाजिक भेदभाव का विरोध किया, जो उस समय की हिंदू और इस्लामी दोनों धार्मिक संरचनाओं के विरुद्ध था. उनकी शिक्षाओं में मानवता के कल्याण के लिए समानता, करुणा और भाईचारे पर जोर दिया गया, और ये गुण सभी धर्मों में प्रशंसित माने गए हैं.उन्होंने इन विचारों को सिख धर्म के मूल में स्थापित किया और अपने अनुयायियों को एक स्वतंत्र धर्म का मार्ग दिखाया.
गुरु नानक का धर्म-संबंधी दृष्टिकोण
गुरु नानक की धार्मिक शिक्षाएं किसी विशेष धर्म तक सीमित नहीं थीं. उन्होंने न केवल इस्लामी एकेश्वरवाद बल्कि हिंदू धर्म के कई नैतिक सिद्धांतों को भी अपनाया. उनकी शिक्षाएं मानवता के व्यापक हित के लिए थीं, जिसमें सभी धर्मों के अच्छे सिद्धांतों का समन्वय था.
उनके लिए धार्मिक पहचान से अधिक महत्वपूर्ण मानवता की सेवा और ईश्वर में विश्वास था. सिख धर्म का जन्म इस स्वतंत्र सोच और सार्वभौमिक प्रेम के विचार से हुआ था, जो किसी एक धर्म की सीमाओं में सीमित नहीं हो सकता.
गुरु नानक की धार्मिक विरासत आज भी सिख धर्म में उसी अद्वितीयता और महानता के साथ जीवित है. उनके विचार और शिक्षाएं सभी धर्मों का सम्मान करने और मानवता की सेवा करने के लिए प्रेरित करती हैं, जो किसी भी धर्म के अनुयायियों के लिए एक आदर्श जीवन का मार्ग बन सकती हैं.
लेखक एक सरकारी उच्च पद से सेवानिवृतत हैं