- पीठ पर लगने से चोट नहीं लगती, बल्कि खुशी मिलती
जफर इकबाल / जयपुर
कई सांस्कृतिक विरासतों और ऐतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे राजस्थान विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुका है. यही वजह है कि राजस्थान को रंगीला राजस्थान कहा जाता है. और जब बात रंगों के त्यौहार होली की हो, तो इसमें भी राजस्थान का खास मुकाम आता है. अबीर-गुलाल के इस त्यौहार के करीब आते ही पूरा गुलाबी शहर तरह-तरह के रंगों से अटा नजर आता है. जयपुर की होली में खास आकर्षण का केंद्र है गुलाल गोटा.
गुलाल गोटे की होली का इतिहास काफी पुराना है. इनका प्रचलन जयपुर के आमेर से शुरू हुआ था. आमेर जब जयपुर रियासत की राजधानी हुआ करता था। 1727 में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी. उस समय इन कारीगरों को आमेर से लाकर जयपुर स्थित मनिहारों के रास्ते में बसाया गया था. तब से लेकर आज तक ये कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाल गोटा बनाने का काम करते आ रहे हैं। शाही होली का प्रतीक रहे लाख से बने ये गुलाल गोटे अब जयपुर की खास पहचान बन चुके है. आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक पहुँच गई है. अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड, सिंगापुर आदि देशों के पर्यटक इसे खरीद कर ले जा रहे है, जिसके चलते विदेशो में इसकी मांग बनी हुई है.
परंपरागत गुलाल गोटे पर आधुनिकता का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है. वक्त के साथ-साथ इन गुलाल गोटों आकार में भी बदलाव आया है. जितने आकर्षक ये गुलाल गोटे हैं, उतना ही आकर्षक इनको बनाने का तरीका भी है.
सबसे पहले लाख की छोटी-छोटी गोलियों को एक नलकी के जरिये मुंह से फुलाया जाता है. फिर इनको पानी से भरे बर्तन में रख दिया जाता है. इसके बाद इनमें प्राकृतिक सुगंध वाली गुलाल भरी जाती है. फिर इसे रंगीन कागज से पैक कर दिया जाता है. एक गुलाल गोटा 5 ग्राम लाख से बना होता है और तैयार होने के बाद एक गुलाल गोटे का वजन लगभग 15 ग्राम होता है. ये इतना हल्का होता है कि किसी को भी इससे चोट लगने का खतरा नहीं रहता.
बाजार में ये गुलाल गोटे अलग-अलग रंग और डिजाइन में उपलब्ध है। होली के इस मौके पैर ये गुलाल गोटे आम जनता के साथ-साथ पर्यटकों को भी काफी लुभा रहे हैं.
ये रंग-बिरंगी गोटियां भारत की गंगा-जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल हैं.पीढ़ियों से जयपुर के मनिहारों के रास्ते में बसने वाले मुस्लिम परिवारों के लोग भ्ज्ञी इन्हें खास तौर पर होली के लिए तैयार करते हैं. इस तरह जहां एक ओर ये गुलाल गोटे कौमी एकता का प्रतीक हैं, वहीं दूसरी ओर इस परम्परा को कायम रखने के लिए आधुनिक पीढ़ी भी जागरूक होती नजर आ रही है. इसी का नतीजा है कि हम अपनी इस अनूठी परम्परा को इतने वर्षों बाद भी संजो कर रख पाए हैं.