गिलानी गांव का सौहार्दपूर्ण इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 14-11-2024
Gilani village is a confluence of heritage and harmony
Gilani village is a confluence of heritage and harmony

 

साहिल रज़वी

बिहार के नालंदा जिले के दिल में बसा गिलानी एक ऐसा गाँव है जो अपनी अद्वितीय परंपरा और गहरे साम्प्रदायिक सौहार्द को समेटे हुए है. यहाँ के लोग, चाहे वे किसी भी समुदाय के हों, गर्व से अपने नाम के साथ ‘गिलानी’ या ‘जिलानी’ जोड़ते हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि धर्म और संस्कृति की सीमाओं से परे एक गहरा जुड़ाव है.

यह एक पुरानी परंपरा है, जहां हज़रत शेख अब्दुल क़ादिर गिलानी, जो गिलान, ईरान के महान सूफी संत थे, के प्रति श्रद्धा और सम्मान ने यहाँ के लोगों में एक विशेष प्रकार की एकता और सामूहिक पहचान विकसित की है. इस नाम का प्रयोग केवल मुस्लिम समाज तक सीमित नहीं है, बल्कि कई हिंदू भी इसे अपने परिवारों की पहचान के रूप में अपनाते हैं.

‘गिलानी’ का इतिहास: विश्वास और श्रद्धा की धरोहर

गिलानी नाम, जो गिलान, इराक (जहां ग़ौस-ए-आज़म, शेख अब्दुल क़ादिर जिलानी का जन्म हुआ था) के संतों से लिया गया है, इस गाँव में बसने वाले संतों के नाम पर पड़ा. इन संतों ने गिलान से भारत में आकर यहाँ बसावट की, और उन्होंने यहाँ के लोगों को अपनी शिक्षाएँ दीं. इसके बाद यह नाम गाँव का हिस्सा बन गया. हज़रत अब्दुल क़ादिर गिलानी का प्रचार न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में, बल्कि दुनिया भर में फैला था. उनकी शिक्षा प्रेम, करुणा और विनम्रता पर आधारित थी, और इसके कारण उन्हें समाज के विभिन्न वर्गों से अनुयायी मिले. उनके कुछ प्रारंभिक अनुयायी भारत में आकर बस गए और धीरे-धीरे मोहिउद्दीनपुर गिलानी में बस गए. उन्होंने अपनी पहचान के रूप में ‘गिलानी’ उपनाम को अपनाया, जो अब गाँव की पहचान बन गया है.

बिहार के सूफी विद्वान सैयद अमजद हुसैन के अनुसार, "गिलानी नाम हज़रत अब्दुल क़ादिर गिलानी के उपनाम 'मोहिउद्दीन' और 'गिलानी' से लिया गया था, इसलिए इसे मोहिउद्दीनपुर गिलानी कहा गया था. समय के साथ यह केवल गिलानी के रूप में प्रचलित हो गया." इस गाँव का संबंध प्रसिद्ध देवबंदी विद्वान मौलाना मनीज़िर अहमद गिलानी से भी है, और यह हज़रत सैयद अहमद जजनेरी, जो हज़रत अबुल फराह वस्ती के वंशज थे, के वंशजों का भी घर था. आज भी यहाँ एक मंदिर, मस्जिद और मदरसा मौजूद हैं, जो शांति और सौहार्द का प्रतीक हैं. हिंदू और मुस्लिम दोनों ही अपने नाम के साथ ‘गिलानी’ जोड़ते हैं, जो गाँव के साथ उनके अटूट संबंध को प्रदर्शित करता है. यहाँ अब तक किसी प्रकार की साम्प्रदायिक हिंसा की कोई घटना नहीं हुई, जो इसके साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करती है.

गिलानी गाँव: साम्प्रदायिक सौहार्द का आदर्श

गिलानी के लगभग 5,000 निवासी विभिन्न समुदायों से आते हैं, जिनमें मुसलमान, पासवान, कोइरी, यादव, नाई, रविदास, कहार, कुम्हार और पंडित जैसे हिंदू समूह शामिल हैं. हर समुदाय गर्व से ‘गिलानी’ उपनाम का प्रयोग करता है, जो एक साझा धरोहर को दर्शाता है. यह प्रथा एक गहरी एकता की भावना को जन्म देती है, जो धार्मिक और सामाजिक पहचान से परे जाती है.

Madrasa Islamia, Gilani, Nalanda 

मदरसाह इस्लामिया, गिलानी के शिक्षक शाहनवाज़ अनवर ने साझा किया, "गाँव में हिंदू और मुस्लिम सभी मिलकर प्रेम और सम्मान के साथ रहते हैं, और सभी त्योहारों को एक साथ मनाते हैं. मेरे बचपन से ही मैंने देखा है कि गाँववाले अपने नाम के साथ ‘गिलानी’ जोड़ते हैं. बाहरी लोग अक्सर हैरान होते हैं, लेकिन हमारे लिए यह उपनाम हमारे धरोहर का एक गर्वित हिस्सा है, जिसे हम गर्व से अपनाते हैं."

विविधता का उत्सव: गाँव का जीवन और सांस्कृतिक मिश्रण 

गिलानी में जीवन सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं का एक आदर्श मिश्रण है. यहाँ सभी त्यौहारों को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और ईद, दीवाली, होली और अन्य स्थानीय उत्सवों में सभी समुदायों की भागीदारी होती है. मंदिर और मस्जिद एक साथ खड़े होते हैं, जो गाँव में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और आपसी सम्मान को प्रतीक हैं. यहाँ सामान्य गाँव आयोजन और मिलनसारियाँ होती हैं, और बुजुर्ग अक्सर अपने पूर्वजों की एकता की कहानियाँ सुनाते हैं, जिससे सामूहिक सौहार्द बनाए रखने की महत्वपूर्णता को सुदृढ़ किया जाता है.

गिलानी के योगदान और उपलब्धियाँ: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गिलानी

गिलानी ने अतीत में कई प्रमुख व्यक्तित्वों को जन्म दिया है, जैसे विद्वान, सरकारी अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर और लेखक. यह गाँव आकार में भले ही छोटा हो, लेकिन इसका प्रभाव इसके सीमाओं से कहीं दूर तक फैला है. गिलानी के कई निवासी अपने-अपने क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए हैं, जहाँ वे गर्व से अपने अनोखे उपनाम को धारण करते हैं. उनकी सफलता की कहानियाँ गिलानी के युवाओं को उत्कृष्टता की ओर प्रेरित करती हैं, जबकि वे अपनी धरोहर से जुड़े रहते हैं.

गिलानी के एक प्रसिद्ध बेटे थे मौलाना मनीज़िरअहमद गिलानी, जो एक प्रसिद्ध और प्रभावशाली देवबंदी विद्वान थे. उन्होंने इस्लामी विचारधारा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हालांकि उनका मजार अब खराब स्थिति में है, लेकिन गाँववाले कभी भी उनकी याद या उनकी विरासत को नहीं भूलते.

Mazar, Maulana Manazir Ahsan Gilani

समाप्ति: गिलानी की एकता और धरोहर का प्रतीक

इस दुनिया में जहाँ अक्सर विभाजन की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं, वहाँ गिलानी एक एकता का प्रतीक बनकर उभरता है. यह गाँव यह दिखाता है कि धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताएँ कैसे एक साथ रह सकती हैं, यदि आपसी सम्मान और साझा धरोहर की भावना हो. यहाँ ‘गिलानी’ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है जो लोगों को एकजुट करती है और उन्हें गर्व की अनुभूति देती है. 

गिलानी के लोग चाहते हैं कि जो परंपराएँ उनके पूर्वजों ने शुरू की थीं, वे बनी रहें, लेकिन साथ ही वे आधुनिकता को भी गले लगाना चाहते हैं. यह खास धरोहर न केवल समुदाय को समृद्ध बनाती है, बल्कि पूरे देश में साम्प्रदायिक सौहार्द का एक उज्जवल उदाहरण प्रस्तुत करती है. 

(साहिल रज़वी एक लेखक और शोधकर्ता हैं, जो सूफीवाद और इतिहास में विशेष रुचि रखते हैं. वे जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र हैं. संपर्क के लिए आप उन्हें [email protected] पर ईमेल कर सकते हैं)