राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
विघ्न विनाशक गणपति महाराज का देश भर में धूमधाम से गणेश चतुर्थी पर्व शुरू हो गया है. महाराष्ट्र से प्रारंभ सार्वजनिक गणपति महोत्सव दृश्य-श्रव्य संचार माध्यमों के सहयोग से अब सार्वभौमिक हो गया है. पूरे भरतीय उपमहाद्वीप सहित इंडोनेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, ताईवान और फिजी सहित अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में गणेशोत्सव मनाए जाने के समाचार आने शुरू हो गए हैं. लोग सार्वजनिक समारोहों के अतिरिक्त घरों में भी विघ्नहर्ता की प्रतिमा की स्थापना करके पूजा-अर्चना कर रहे हैं.
इतिहासकारों के अनुसार, 10 दिवसीय गणपति महोत्सव का शुभारंभ गणपत्य परंपरा की राजमाता जीजाबाई ने किया था, जिसे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने ऊंचाईयां प्रदान कीं. महाराष्ट्र उन दिनों आदिलशाही के अत्याचार और अराजकता से पीड़ित था.
तब छत्रपति शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में ग्रामदेवता के तौर पर गणपति की स्थापना की, जिसने बाद में एक परंपरा का स्वरूप ले लिया. शिवाजी महाराज ने इस परंपरा को विस्तार दिया और पेशवाओं ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया. इसमें भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त ब्राह्मण भोज, निर्धनों में वस्त्र, भोजन व मिठाई का वितरण और विसर्जन दिवस पर श्री सत्यनारायण कथा का आयोजन किया जाने लगा.
फिर अंग्रेजी राज में सनातन वैदिक हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा किसी भी त्योहार को सार्वजनिक तौर पर मनाने से रोक लगा दी गई. धारा 144 में त्योहार मना रहे लोगों को गिरफ्तार किया जाने लगा. अंग्रेजा हिंदुओं की सामूहिकता से आतंकित रहते थे.
इसका लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने तीव्र विरोध किया. लोकमान्य ने प्रतिरोध स्वरूप 20 अक्टूबर 1893 को पुणे के केसरीवाड़ा से सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की. वहां इतना जनसमूह इकट्ठा हुआ कि अंग्रेजा घबरा गए.
इसके बाद मध्य भारत के कई अंचलों में तिलक का ये सार्वजनकि महोत्सव ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिए प्रमुख अस्त्र बन गया और इसे लोकव्यापी एवं राष्ट्रीय पहचान मिली.
म्हाराष्ट्र के पुणे और मुंबई सहित लगभग सभी प्रांति में छोड़े-बड़े स्तर पर दस दिवसीय गणेशोत्सव की शुरूआत हो चुकी है. 18 सितंबर को ही सायंकाल के शुभ मुहूर्त में गणपति जी प्रतिमाओं को श्रद्धालुजन अपने घरों में ले आए हैं. सार्वजनिक समारोहों के पंडालों को रंग-बिरंगी लाइट और फूलों से सजाया गया है. हर पंडाल की थीम भी होती है. इस बार कई पंडालों के अयोध्या के श्री राम मंदिर की थीम देखने को मिल रही है. पंडालों में सुबह-शाम बप्पा की आरती के साथ हवन-यज्ञ होगा.
शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रिद्धि-सिद्धि के दाता गणपति बप्पा विराजते हैं. लोकमान्यता है कि यह तिथि बप्पा का जन्म दिवस है. इस बार गणेश चतुर्थी 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी और 19 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक रहेगी. ऐसे में गणेश चतुर्थी का पर्व उदया तिथि के अनुरूप 19 सितंबर को मनाया जा रहा है. 19 सितंबर को गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 10.50 मिनट से 12.52 मिनट तक है, अतिशुभ मुहूर्त 12.52 मिनट से 02.56 मिनट तक है.
ध्यान रखें
- चांदी की थाली में स्वास्तिक बनाकर उसमें गणपति को विराजमान करके घर लाएं. चांदी की थाली संभव न हो पीतल या तांबे का प्रयोग करें. मूर्ति बड़ी है, तो हाथों में लाकर भी विराजमान कर सकते हैं.
- गणेशजी की स्थापना घर के ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में करें.
- लकड़ी की चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं फिर गणपति जी स्थापित करें.
- कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं. एक मुट्ठी अक्षत रखें.
- तांबे का कलश पानी भरकर, आम के पत्ते और नारियल के साथ सजाएं.
- रंगोली, फूल, आम के पत्ते और अन्य सामग्री से स्थान को सजाएं.
- गणपति को लाल रंग सर्वाधिक प्रिय है. इसलिए उन्हें रक्ताभ वस्त्र पहनाएं.
- गणेश जी को सिंदूर, फूलमाला, धूप, दीप, अक्षत, पान, लड्डू, मोदक, दूर्वा आदि अर्पित करें.
- गणेश को दूर्वा अवश्य अपर्ति करें.
- गणेशजी को मोदक अति प्रिय है. इसलिए उन्हें मोदक का भोग अवश्य लगाएं.
- गणेश जी को दिन में तीन बार भोग अर्पित करें.
- सुबह-शाम को आरती अवश्य करें.
- आधी अधूरी या खंडित प्रतिमा की स्थापना न करें.
- गणपति पूजा में केतकी पुष्प या तुलसी दल का उपयोग न करें.
- घर में लहसुन और प्याज का उपयोग न करें.
- गणेश चतुर्थी को फलाहार का सेवन करें.
- घर में गणपति स्थापना करने वालों को तन-मन से शुद्ध रहना चाहिए और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए.
- नियमित रूप से गणेश जी की विधिविधान से पूजा करें. पांचवें, सातवें या 11वें दिन उनका विसर्जन करें.
मृदा गणपति
कई नगरों में इस बार ईको फ्रेंडली यानी मिट्टी के गणपति की प्रतिमाओं का अभियान देखने को मिला. पुराने दौर में मिट्टी के गणपति ही बनाए जाते थे. बाद में पीओपी से बप्पा की मूर्तियां बनने लगीं, जो बनाने में आसान होती हैं, लेकिन इससे जलज जीवों और जल पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है. इसलिए एक बार फिर से मिट्टी के गणपति प्रतिमा का पूजन के लिए उपयोग करने पर बल दिया जा रहा है. यह अभियान हल साल बढ़ता ही जा रहा है.