G 20 के साथी : इंडोनेशिया की कला संस्कृति भारत की देन

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 01-09-2023
G 20 के साथी : इंडोनेशिया की कला संस्कृति भारत की देन
G 20 के साथी : इंडोनेशिया की कला संस्कृति भारत की देन

 

-फ़िरदौस ख़ान

भारत एक विविध संस्कृति वाला प्राचीन देश है. दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं, जिनकी संस्कृति भारत से बहुत मिलती जुलती है. इंडोनेशिया भी एक ऐसा ही देश है, जिस पर भारतीय संस्कृति का बहुत गहरा असर देखने को मिलता है. यह कहना क़तई ग़लत नहीं होगा कि इंडोनेशिया में भी एक भारत बसता है. इंडोनेशिया की सभ्यता बहुत पुरानी है. प्राचीनकाल से ही यह द्वीप समूह व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा है.

चौथी सदी ईसा पूर्व तक यहां की सभ्यता अपने उरूज़ पर थी. यहां के लोग हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म को मानते थे. फिर वक़्त के साथ-साथ यहां भी बहुत कुछ बदल गया. इंडोनेशिया मुस्लिम बहुल देश है.

साल 2011 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यहां की तक़रीबन 87.2फ़ीसद आबादी मुसलमानों की है. इसके अलावा यहां बौद्ध और हिन्दू भी रहते हैं. यहां इस्लाम का बहुत प्रचार-प्रसार हुआ. ख़ास बात यह है कि दुनियाभर में जहां अरब के सूफ़ियों ने इस्लाम को फैलाया, वहीं इंडोनेशिया में भारत के सूफ़ियों ने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया.

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इसलिए यहां की संस्कृति पर हिन्दुस्तानी झलक देखने को मिलती है. इंडोनेशिया के मुसलमान मानते हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे. कालान्तर में जब इस्लाम का प्रचार-प्रसार हुआ तो उनके पूर्वजों ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया. इस्लाम अरब की सरज़मीन का मज़हब है और वहां की अपनी तहज़ीब है.   

मज़हब बदलने से उनकी अक़ीदत तो बदल गई, लेकिन उनकी संस्कृति आज भी इंडोनेशियाई ही है. यहां के लोग अपने बच्चों के नाम अपने पूर्वजों की याद में हिन्दुआनी रखते हैं. इसलिए नाम से किसी के मज़हब के बारे में पता नहीं चल पाता.

 दरअसल, इंडोनेशिया की संस्कृति भारत की देन है. भारत से इंडोनेशिया में हिन्दू, बौद्ध और इस्लाम ही नहीं गया, बल्कि यहां की कला संस्कृति भी गई. इंडो-इस्लामिक हैरिटेज सेंटर की एक रिपोर्ट की मानें तो सुमात्रा में सुल्तान मलिक अल सालेह के मक़बरों का शिल्प गुजरात के मक़बरों जैसा ही है.

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इसके अलावा गुजरात के मुसलमानों के अनेक रिवाज इंडोनेशिया के मुसलमानों की तरह ही हैं. सुमात्रा में गुजरात और मालाबार से मुसलमान गए थे. साल 1267में गुजरात के कैम्बे इलाक़े के एक मौलाना ने इंडोनेशिया में पहली बार एक मुस्लिम राज्य स्थापित किया था.

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कहते हैं कि इंडोनेशिया में इस्लाम केरल और गुजरात के व्यापारियों ने फैलाया था. इसके अलावा बंगाल और कश्मीर के सूफ़ियों ने भी यहां इस्लाम को बढ़ावा दिया था. 

इसलिए इंडोनेशिया में एक शांतिपूर्ण और समान संस्कृति का विकास हुआ. वहां न सिर्फ़ इस्लाम फैला, बल्कि पुरानी परम्पराओं और स्थानीय रीति-रिवाजों ने धार्मिक प्रथाओं को बहुत हद तक मुतासिर किया.

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भारत और इंडोनेशिया के ताल्लुक़ात हज़ारों साल पुराने हैं. यहां के व्यापारी हज़ारों साल से इंडोनेशिया का सफ़र करते रहे हैं. ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक़ इंडोनेशिया में कभी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों की तादाद बहुत ज़्यादा थी.

फिर बौद्ध भिक्षुओं ने यहां अपने धम्म का प्रचार किया. लोगों ने महात्मा बुद्ध के धम्म को अपना लिया. इसके बाद यहां इस्लाम आया. अरब के मुस्लिम व्यापारी कारोबार के सिलसिले में यहां आया करते थे.

बहुत से व्यापारियों ने यहां की महिलाओं से विवाह किए और फिर यहीं बस गए. कई बड़े व्यापारियों ने यहां के प्रभावशाली परिवारों में विवाह संबंध जोड़े और इस तरह यहां इस्लाम ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं.

इन व्यापारियों के अलावा सूफ़ियों ने भी यहां के बाशिन्दों को इस्लाम का पैग़ाम सुनाया. उन्होंने समाज में फैली नशे, जुआ और ऊंच-नीच जैसी बुराइयों के प्रति लोगों को जागरूक किया. उन्होंने प्रेम, भाईचारे, सद्भाव और समानता का सबक़ पढ़ाया.

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लोगों को उनकी बातें अच्छी लगने लगीं और उनके मन में सूफ़ियों के लिए श्रद्धा बढ़ती गई. उन्होंने इस्लाम को खुले दिल से अपनाया. नतीजतन, आज इंडोनेशिया दुनिया का सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन गया है.

इंडोनेशिया में सूफ़ियों की दरगाहें हैं, मस्जिदें हैं और ईदगाहें भी हैं. अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च संस्थान के मुताबिक़ इंडोनेशिया में दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले में सबसे ज्यादा मस्जिदें  हैं. वहां आठ लाख से ज़्यादा मस्जिदें हैं.

वहां के पूर्व उपराष्ट्रपति जुसफ़ कल्ला का कहना है कि उनके देश में 10लाख मस्जिदें हैं. इस मामले में भारत दूसरे पायदान पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यहां तीन लाख मस्जिदें हैं, जबकि एक डेटा के मुताबिक़ इनकी तादाद तकरीबन सात लाख है.  

इंडोनेशिया में मदरसे भी हैं, जिनमें विद्यार्थियों को मज़हबी तालीम देने के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है, ताकि वे वक़्त के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल सकें.मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद इंडोनेशिया में हिन्दू संस्कृति का बहुत प्रभाव है. यहां अनेक प्राचीन मन्दिर हैं.

यहां के जावा द्वीप के योग्यकर्ता प्रांत में प्रम्बानन मन्दिर है. इसे रारा जोंग्गरंग के नाम से भी जाना जाता है. साल 850 में राजा राकाई पिकाटन ने इसका निर्माण करवाया था. इसके बाद लोकपाल और बालीटुंग महासमभू ने इसका विस्तार किया. लेकिन मुख्य शिव मन्दिर का पुनर्निर्माण साल 1953 में पूरा हुआ.

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कहा जाता है कि यह इंडोनेशिया में सबसे बड़ा हिन्दू मन्दिर है, जबकि दक्षिण पूर्व एशिया में दूसरा सबसे बड़ा मन्दिर है. इसके परिसर में कुल 240मन्दिर हैं. इसके ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व और इसकी शानदार वास्तुकला की वजह से यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया हुआ है.

इतना ही नहीं, यहां का पूरा बेसिह मन्दिर भी विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है. यह भी बहुत पुराना है. यहां का सिंघसरी शिव मन्दिर,  पुरा तपन सरस्वती मन्दिर और तनह लोट मन्दिर भी कला और सौन्दर्य का अद्भुत संगम हैं.     

इंडोनेशिया के मध्य जावा प्रांत के मगेलांग में बोरोबुदूर विहार है. इसे एक चट्टान पर बड़े स्तूप की तरह बनाया गया है. इसके गुम्बद के चारों तरफ़ 72बुद्ध प्रतिमाएं हैं. इसे दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मन्दिर माना जाता है.

यहां मुस्लिम त्यौहारों के साथ-साथ हिन्दुओं के तीज-त्यौहार भी हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं. दशहरे से पहले रामलीला का मंचन किया जाता है. इसमें मुसलमान भी बढ़ चढ़कर शिरकत करते हैं. रामायण और महाभारत यहां बहुत लोकप्रिय है.

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घरों में रामायण का पाठ होता है. यहां राम के अलावा कृष्ण, शिव और गणेश की भी पूजा-अर्चना की जाती है. यहां नोट पर गणेश का चित्र बना हुआ है, जिससे साबित होता है कि यहां पर हिन्दू देवी-देवताओं की कितनी मान्यता है.  

इंडोनेशिया के लोग अपनी संस्कृति से बहुत लगाव रखते हैं. यहां की प्रमुख भाषा इंडोनेशियाई है. इसके अलावा यहां जावा, बाली, सुंडा, मदुरा, अरबी और अंग्रेज़ी आदि भाषाएं भी बोली जाती हैं. यहां के लोगों का मुख्य भोजन चावल है. वे चावल के साथ गोश्त, मछली, अंडे  और सब्ज़ियां खाते हैं. यहां के खाने में नारियल और मसालों का ख़ूब इस्तेमाल किया जाता है. 

यहां का पारम्परिक पहनावा सरोंग है, जो बाटिक कला का शानदार नमूना है. यहां के लोगों की वेशभाषा में बाटिक शर्ट और कबाया प्रमुख है. पुरुष औपचारिक अवसरों पर लम्बी आस्तीन और अन्य अवसरों पर छोटी आस्तीन की शर्ट पहनते हैं. महिलाएं बाटिक शर्ट या ब्लाउज़ पहनती हैं. यहां धोती भी पहनी जाती है.

बाटिक इंडोनेशिया की एक प्राचीन कला है, जिसे कपड़ों पर बनाया जाता है. यूनेस्को ने इंडोनेशियाई बाटिक को अमूर्त विरासत की उत्कृष्ट कृति के रूप में नामित किया है. यूनेस्को के मुताबिक़ इंडोनेशिया अपनी विरासत को संरक्षित करता है.

दरअसल यह मूल रूप से भारत के आदिवासियों की कला है, जो देश के उत्तर, पश्चिम और पूर्व के कई राज्यों में प्रचलित है. यह कला सदियों पहले भारतीय कारीगरों के ज़रिये इंडोनेशिया पहुंची और वहां ख़ूब फली-फूली.

भारत में पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव की वजह से यहां की स्थानीय कलाएं दम तोड़ने लगीं, लेकिन इंडोनेशिया में बाटिक को बहुत सराहा गया. वहां पारम्परिक बाटिक लिबास पहनने वाले को बहुत ख़ास माना जाता है. यह परिधान सम्मान का प्रतीक है. 

इंडोनेशिया को अमूमन हर साल बाढ़ और तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है. इसके बावजूद यहां की अर्थव्यवस्था दक्षिण-पूर्वी एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था मानी जाती है. साल 2022 में इंडोनेशिया में सकल घरेलू उत्पाद प्रति व्यक्ति 4,788 अमेरिकी डॉलर था. यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. मौजूदा वक़्त में यह सोलहवें पायदान पर है.

इंडोनेशिया की मौजूदा राजधानी जकार्ता को दुनिया का सबसे तेज़ी से डूबने वाला शहर बताया जाता है. यह शहर रफ़्ता-रफ़्ता समन्दर में डूब रहा है. एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2050तक इसका एक तिहाई हिस्सा पानी में डूब जाएगा. इसलिए राजधानी को बोर्नियो द्वीप पर ले जाया जा रहा है.

इस नई राजधानी का नाम होगा नुसंतारा. इसका काम ज़ोरशोर से चल रहा है.इंडोनेशिया की एक ख़ास बात यह भी है कि इसने वक़्त के थपेड़ों के बावजूद अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को ज़िन्दा रखा. ऐसा नहीं है कि इंडोनेशिया को किसी की बुरी नज़र नहीं लगी, लेकिन यहां के लोगों ने आपसी प्रेम, भाईचारा और सद्भाव को बनाए रखा.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)