पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार बोले, मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचार आज भी प्रासंगिक
मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
कई किताबों के लेखक और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार ने कहा है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद अपने वक्त के महान शिक्षाविद, भविष्य के नब्ज को जानने वाली ऐसी शख्सियत थे जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं.
ख्वाजा इफ्तिखार नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में पद्म भूषण से सम्मानित और जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव मूसा रजा के जन्मदिन पर आयोजित ‘मौलाना अबुल कलाम आजाद का राजनीतिक फैसला’ विषय पर व्याख्यान माला में बोल रहे थे.
उन्होंने अपने वक्तव्य मंे याद दिलया कि मौलाना अबुल कलाम आजाद ने देश के विभाजन का जोरदार विरोध किया था. जब देश स्वतंत्र हो रहा था, उस समय जब मुसलमानों को 10 साल के लिए 30 फीसदी रिजर्वेशन देने की बात आई तो पंडित नेहरू ने विरोध किया था.
डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने आगे कहा कि मौलाना आजाद जैसा दूरअंदेश शख्स इस देश ने कभी नहीं देखा है. उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा हासिल की. देश में बड़े संस्थान खोले. उनके विचार को नई पीढ़ी को बताने की सख्त जरुरत है.
इफ्तिखार अहमद ने इशारों इशारों में कहा कि जो लोग सर सैयद अहमद खान के खिलाफ फतवा दिया करते थे आज वही लोग उन्हें याद करते हैं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता एस एम खान ने की. उन्होंने कहा कि मौलाना आजाद एक व्यक्ति के नहीं थे बल्कि ऐसे शख्सियत के मालिक थे,जिनकी कुर्बानी को हमेशा याद रखा जाएगा. मूसा रजा ने भी इस सेंटर के लिए बहुत काम किया है, जिसे भी याद रखने की जरूरत है.
युवा पीढ़ी तक पहुंचाएं कलाम की बातें
व्याख्यान से पूर्व बार काउंसिल के अध्यक्ष केसी मित्तल ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के हवाले से हमारी नई पीढ़ी को कुछ नहीं पता कि वह कैसा हिन्दुस्तान देखना चाहते थे. बच्चों को आजादी के दिवानों के बारे में कुछ भी पता नही.
कितने लोग इस बात को जानते हैं कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचार किया थे.अगर हम उन सब चीजों के नहीं नई पीढ़ी को नहीं बताएंगे तो उनके साथ गैर इंसाफी होगी. पंडित नेहरू, महात्मा गांधी, सरदार पटेल जो भी उच्च विचारधारा के लोग थे, उनके बारे में नई पीढ़ी को बताने की जरूरत है.
हम भूल गए
केसी मित्तल ने आगे कहा कि मौजूदा समय में मौलाना आजाद और उनके किताब को पढ़ने से पता चलता है कि वह कैसा भारत देखना चाहते थे. उनके विचार को अगर लोगों तक पहुंचाया जाए तो जितने विवाद आजकल हो रहे हैंए खत्म हो जाएं. लेकिन हम वह नहीं कर रहे है. हमने उनके बताए रास्ते को भुला दिया हैं.
उन्होंने मॉडल एजुकेशन को जरूरी बताया. खुद अंग्रेजी सीखी. उनके पिता नहीं चाहते थे. आज दोनों तरफ समाज में नफरत पैदा करने वाले हैं. आजादी के वक्त भी थे. लेकिन मौलाना आजाद, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू ने मिलकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी. वह लड़ाई विचारधारा की थी.
प्रोग्राम के संयोजक बहर बर्की ने अपने संबोधन में कहा कि मूसा रजा ने अपने पद पर रहते हुए समाज में शांति और भाईचारे को बढ़ावा दिया है. चार साल की कम मुद्दत में उन्हें सरकार ने बड़ी जिम्मेदारी दी जिसे अच्छे से अदा किया.
इस समय लड़के और लड़कियों की पढ़ाई की दिशा में अच्छा काकयम कर रहे हैं. इस सेंटर की बुनियाद में जो खर्चा आया उसे मूसा रजा ने दोस्तों और जानने वालों से पूरा किया. उन्होंने बताया कि मूसा रजा बीमारी के कारण प्रोग्राम में शरीक नहीं हो सके. व्याख्यान में कई और लोगों ने मौलाना अबुल कलाम आजाद और मूजा रजा पर बातें रखी.
कौन हैं मूसा रजा ?
मूसा रजा वर्ष 2010 में पद्म भूषण से सम्मानित किए गए थे. वह 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और गुजरात के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव बने. इसके बाद उन्होंने जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के सलाहकार और दिल्ली में कैबिनेट सचिवालय और इस्पात मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव के रूप में कार्य किया.
इंडिया इस्लामिक सेंटर के निर्माण में उनका बड़ा रोल रहा है. इस समय वह चेन्नई में रहते हैं.प्रोग्राम की शुरुआत शराफत हुसैन की कुरान की तेलावत से हुई और मंच संचालन मशहूर शायर माजिद देवबंदी ने किया.