कांवड़ यात्रा के दौरान जब मुस्लिम बच्चे लगाते थे नारा- एक दो तीन चार, भोले तेरी जय जयकार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-07-2023
कांवड़ यात्रा के दौरान जब मुस्लिम बच्चे लगाते थे नारा- एक दो तीन चार, भोले तेरी जय जयकार
कांवड़ यात्रा के दौरान जब मुस्लिम बच्चे लगाते थे नारा- एक दो तीन चार, भोले तेरी जय जयकार

 

साकिब सीलम

‘एक दो तीन चार, भोले तेरी जय जयकार .’ हर साल जुलाई-अगस्त के दौरान मेरे इलाके में सड़कों पर खेलने वाले छोटे मुस्लिम बच्चों की जुबान पर यह नारा हुआ करता था. हमारा मोहल्ला हिंदू-मुस्लिम मिश्रित आबादी वाला है. मोहल्ले के अधिकांश बच्चे या तो स्कूल के बाद शाम को पास के मदरसे में जाते थे या कोई इस्लामी शिक्षक कुरान पढ़ाने आता था.

बावजूद इसके सावन के महीने में मुस्लिम बच्चे खेलते समय हिंदू धार्मिक नारे अवश्य लगाते मिल जाते थे. बिना किसी बड़े व्यक्ति के भौंहें सिकोड़े. दिल्ली में बैठे राजनीतिक टिप्पणीकार और भारतीय समाज का अध्ययन करने वाले शिक्षाविद् इसे विचित्र या अपवाद कह सकते हैं, पर ऐसा है नहीं.
 
हर साल सावन के महीने में, लाखों शिव भक्त जिन्हें कांवड़िए कहा जाता है, भारत भर के विभिन्न शिव मंदिरों में गंगाजल ले जाने के लिए हरिद्वार जाते हैं. ये भक्त मीलों पैदल चलते हैं और सावन शिवरात्रि अनुष्ठान पूरा होने तक कई दिनों तक खाट पर या छत के नीचे नहीं सोते.
 
मैं मुजफ्फरनगर का हूँ, जिसकी सीमा हरिद्वार और सहारनपुर जिलों से लगती है. कांवड़िए जो रास्ता अपनाते हैं, वह मेरे मोहल्ला से होकर गुजरता है. हर साल हमने देखा है कि हमारी सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं. स्कूल कई-कई दिनों तक बंद रहते हैं. यह एक छुट्टी की तरह होता है, जहां परिवार एक साथ समय बिताते हैं और बच्चे खेलते और धार्मिक नारे लगाते हुए सड़कों पर चल रहे भक्तों की भीड़ को देखते रहते हैं.
 
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वर्तमान समय में, किसी विदेशी देश या महानगर में बैठे सोशल मीडिया योद्धा लिखेंगे कि इस कांवड़ यात्रा से मुसलमानों को असुविधा होती है. वे इससे नफरत करते हैं. दरअसल, हकीकत यहै कि बड़ी-बड़ी सजी हुई कांवड़ें मुसलमानों को भी आकर्षित करती हैं. बचपन में हम सड़क किनारे खड़े होकर इन कांवड़ों को मंत्रमुग्ध होकर देखते थे.
 
मैं कई मुसलमानों को जानता हूं, जिनमें मेरे परिवार के सदस्य भी शामिल हैं, जिन्होंने कांवड़ सेवा शिविर के लिए दान दिए हैं. कई मुस्लिम युवा अपने हिंदू दोस्तों के साथ पैदल चलकर गंगाजल लाने के लिए हरिद्वार आते-जाते देखे हैं. हमारा एक मुस्लिम पारिवारिक मित्र अपने कट्टर हिंदू मित्र के साथ हर साल हरिद्वार जाता है.
 
जो लोग मानते हैं कि दुनिया सोशल मीडिया के आने के बाद ही शुरू हुई और हिंदू 2014 से पहले धर्म का पालन नहीं करते थे, उन्हें अपने बुजुर्गों से बात करनी चाहिए. आज, हम कुछ बड़ी हस्तियों को सार्वजनिक कार्यक्रम बनाए बिना भगवान की पूजा करते हुए देखते हैं.
 
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1990 के दशक में यह आम बात थी कि लोग कांवड़ लेकर मशहूर हस्तियों की एक झलक पाने के लिए बाहर आते थे. ऐसे लोगों में सुनील दत्त, गुलशन कुमार आदि शामिल हैं. किसी ने इसे इवेंट नहीं बनाया. इसके उलट उन्होंने जनता का ध्यान आकर्षित न करने की कोशिश की. उनके लिए कांवड़ उनके और भगवान शिव के बीच आस्था का प्रतीक था.
  
पुरानी यादें हर व्यक्ति का अधिकार है. शायद यही कारण है कि मुझे उन कांवड़ों की याद आती है जहां बड़े डीजे नहीं बजाए जाते थे. लोग कांवड़ की ऊंचाई की तुलना करते थे. याद रखें कि वह मोबाइल फोन से पहले का समय था. फिर भी लोगों को सब कुछ पता चल जाता था.
 
एक निश्चित समय पर एक शानदार कांवड़ गुजरने की खबर सबको मामलू होती थी. इस कांवड़ को देखने के लिए लोग छतों और सड़कों के किनारे उमड़ पड़ते थे. कभी-कभी घंटों तक इंतजार करना पड़ता था. कुछ मौकों पर खबरें गलत होती थीं.
मैंने कभी किसी मुसलमान को कांवड़ियों की किसी भी असुविधा के लिए नाराज होते नहीं देखा.
 
वे उनके विश्वास का सम्मान करते थे. उनमें हिंदू, सिख, जैन और मुस्लिम भी शामिल होते थे. कई बार रूट डायवर्जन के प्रशासनिक प्रबंधन और अन्य मुद्दों के बारे में शिकायत की जाती थी.यह सावन शिवरात्रि है और मेरे मोहल्ले के बच्चे शिव भजन और नारे गुनगुना रहे होंगे, जबकि मैं जगजीत सिंह को गाते सुन रहा हूँ,
 
“ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी,
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन.’’

 
-लेखक इतिहास के जानकार हैं.