साकिब सलीम
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आज़ाद हिंद फ़ौज या भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) को अक्सर ऐतिहासिक आख्यानों के बजाय रोमांचकता के चश्मे से देखा जाता है.इसके परिणामस्वरूप, आईएनए के बारे में हमारी धारणा वीरता के मिथकों से घिरी हुई है और बोस और अन्य आईएनए अधिकारियों द्वारा नियोजित असाधारण योजना, कूटनीति और सैन्य रणनीति के प्रति हमारी आँखें बंद कर देती है.
आई.एन.ए. बर्मा में ब्रिटिश नेतृत्व वाली मित्र सेनाओं के खिलाफ लड़ रही थी.सेना को नियमित युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया गया था,लेकिन, 1944की शुरुआत में यह स्पष्ट हो गया कि जापान से कम या बिना किसी सुदृढीकरण के नियमित युद्ध संभव नहीं होगा.
हाई कमांड ने फैसला किया कि मित्र सेनाओं के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध किया जाएगा.आई.एन.ए. के पास एक चिकित्सा दल था.उन्हें गुरिल्ला युद्ध के लिए रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी.यह अभूतपूर्व था कि गुरिल्ला युद्ध के लिए एक चिकित्सा रणनीति तैयार की जा रही थी.
आई.एन.ए. के चिकित्सा दल के प्रमुख लेफ्टिनेंट कर्नल आर.एम. कासलीवाल ने चिकित्सा कर्मियों और सैनिकों को गुरिल्ला युद्ध के बारे में सिखाने के लिए रोमन में लिखी उर्दू-हिंदी में एक पुस्तिका तैयार की.यह पुस्तिका, गुरिल्ला जंगी कार्रवाइयों के दौरन में ‘मेडिकल’ का इंतेज़ाम, अपनी तरह की अनूठी पुस्तिका थी.
यह पुस्तिका इस धारणा को तोड़ती है कि गुरिल्ला युद्ध बिना किसी खास योजना के किए जाते हैं.अगर वे योजना बनाते भी हैं तो उनके दौरान नियमित चिकित्सा मिशन संचालित नहीं होते.डॉ. कासलीवाल ने शुरू में लिखा था, "गुरिल्ला युद्ध नियमित युद्ध से अलग है.
इस तरह के युद्ध में सफलता काफी हद तक सैनिकों की लड़ने की क्षमता पर निर्भर करती है और चूंकि सैनिकों की लड़ने की क्षमता उनके स्वास्थ्य और शारीरिक तंदुरुस्ती पर बहुत निर्भर करती है, इसलिए इस तरह के युद्ध में स्वच्छता और अन्य चिकित्सा व्यवस्थाओं के महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है."
कासलीवाल ने सबसे पहले गुरिल्ला युद्ध के बारे में बताया.उन्होंने बताया कि कैसे सामान्य युद्ध और गुरिल्ला युद्ध अलग होते हैं.गुरिल्ला युद्ध में, सशस्त्र व्यक्तियों के छोटे समूह दुश्मन के इलाके में से काम करते हैं."सैनिकों के ये छोटे समूह अत्यधिक गतिशील होते हैं और परिणामस्वरूप वे हल्के हथियारों से लैस होते हैं.आश्चर्य का तत्व उनका सबसे प्रभावी हथियार है." पैम्फलेट ने यह भी बताया कि गुरिल्ला युद्ध के लिए संचालन के लिए एक बड़ा क्षेत्र और नागरिक आबादी का सहयोग आवश्यक है.
इसके बाद कासलीवाल ने चिकित्सा कर्मियों की आवश्यकताओं के बारे में बताया.उन्होंने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में चिकित्सा व्यवस्था के लिए यह स्पष्ट है कि सेना की सामान्य रूढ़िवादी चिकित्सा व्यवस्थाएँ काम नहीं आएंगी." गुरिल्ला युद्ध में पर्याप्त चिकित्सा कर्मी, दवाइयाँ और घायलों को नियमित रूप से बाहर निकालना जैसे कारक बनाए नहीं रखे जा सकते.इसलिए पूरी रणनीति पर फिर से काम करने की जरूरत है.
गुरिल्ला युद्ध में, सैनिकों को प्रतिकूल परिस्थितियों में बहुत स्वस्थ और सक्रिय रहने की आवश्यकता होती है.उनके पास स्वच्छ पानी, स्वच्छता, दवाइयाँ, उचित भोजन आदि तक पहुँच नहीं होती है.कासलीवाल ने कुछ दिशा-निर्देश निर्धारित किए.उन्होंने कहा,
इनके अलावा, कासलीवाल ने खाने से पहले पानी को उबालने या किसी अन्य माध्यम से कीटाणुरहित करने, स्वच्छ भोजन करने, स्वच्छता बनाए रखने और जंगलों में मच्छरदानी या रिपेलेंट्स का उपयोग करने पर जोर दिया.कासलीवाल ने घायल सैनिकों के बारे में भी लिखा, “जब भी मुख्यालय को संदेश भेजना संभव होगा, तो उन मामलों का पूरा विवरण भेजना आवश्यक होगा जो जगह के सटीक स्थान के साथ पीछे छोड़े जा रहे हैं ताकि जब सुविधाएं उपलब्ध हों, तो मुख्यालय द्वारा इन मामलों से संपर्क करने और यदि संभव हो तो उन्हें बेस अस्पताल में निकालने की व्यवस्था की जा सके.
यदि ऑपरेशन के क्षेत्र में, एक एयरोड्रम पर कब्जा कर लिया जाता है, तो कभी-कभी आकाशवाणी द्वारा गंभीर मामलों को निकालना संभव हो सकता है, लेकिन फिर यह बहुत दुर्लभ होने वाला है और इस पर शायद ही भरोसा किया जा सके.यदि दुश्मन गैस युद्ध या यहां तक कि छोटे सीमित इलाकों में जीवाणु युद्ध का सहारा लेता हैतो एम.ओ. जीव या इस्तेमाल की गई गैस की प्रकृति के अनुसार स्थिति से निपटेगा और सफलतापूर्वक इसका मुकाबला करने के तरीके और साधन तैयार करेगा.सरसों गैस विषाक्तता के खिलाफ उपचार के लिए ब्लीच मरहम जारी किया जाएगा.
यह पुस्तिका हमें यह बताने में महत्वपूर्ण है कि आई.एन.ए. जोशीले उग्र देशभक्तों का समूह नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रवादियों का एक सुनियोजित समूह था जो युद्ध कला को किसी और की तरह ही जानता था.यह हमें यह भी बताता है कि आई.एन.ए. का हर कदम सोच-समझकर उठाया गया था और हताहतों की संख्या को कम से कम करने की कोशिश की गई थी.