-फ़िरदौस ख़ान
सूफ़ियों ने गंगा-जमुनी तहज़ीब को परवान चढ़ाया. सूफ़ी मानते हैं कि इस कायनात की तामीर करने वाला ख़ुदा एक है और सभी इंसान उसके बन्दे हैं. सूफ़ियों ने इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए हर बन्दे से मुहब्बत करने का पैग़ाम दिया. उनके मुरीदों में सभी मज़हबों को मानने वाले लोग शामिल हैं. इसलिए उनकी ख़ानकाहों पर सभी मज़हबों के त्यौहार हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं. यह रिवायत बहुत पहले से चली आ रही है.
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
राजधानी दिल्ली में स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह में दिवाली पर ख़ूब रौशनी की जाती है. दरगाह परिसर को बल्बों की झालरों से सजाया जाता है. दिवाली की रात में मिट्टी के दिये जलाए जाते हैं. दरअसल हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के हिन्दू मुरीद यह सब इंतज़ाम करते हैं.
दिवाली की रात में वे मिट्टी के दिये, तेल और बाती लाते हैं और दरगाह में दिये रौशन करते हैं. वे इसे ईद-ए-चराग़ां कहते हैं. ईद का मतलब है ख़ुशी और चराग़ां का मतलब है दिये. चराग़ रौशन करने के बाद वे मिठाइयां बांटते हैं और एक दूसरे को दिवाली की मुबारकबाद देते हैं.
ख़ास बात यह भी है कि ये लोग यहां रौशन दियों में से एक दिया अपने साथ ले जाते हैं. इनका मानना है कि यह दीया हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का आशीर्वाद है. इसे घर में रखने से उनके यहां धन-धान्य में बढ़ोतरी होगी और ख़ुशहाली आएगी.
बीमार होने पर वे इस दीये का तेल अपने माथे और सिर पर लगाते हैं. उनका कहना है कि ऐसा करने से वे ठीक हो जाते हैं. दिल्ली समेत देश की अन्य दरगाहों पर भी दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं. मुसलमान भी हिन्दू भाइयों की ख़ुशी में शरीक होते हैं. यही तो हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब है.
हाजी अली
महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई के वर्ली तट के क़रीब एक टापू पर स्थित सैयद हाजी अली शाह बुख़ारी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं. आपको हाजी अली के नाम से भी जाना जाता है.
आप अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं. आपने भी लोगों को मुहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम दिया. आपके मुरीदों में भी सभी मज़हबों के मानने वाले लोग शामिल हैं. वे लोग अपने अक़ीदे के मुताबिक़ आपके दर पर हाज़िर होते हैं और सबके साथ अपनी ख़ुशियां साझा करते हैं.
वे दिवाली पर दरगाह परिसर को लाइटों से सजाते हैं. रात में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं. बिजली के बल्बों और मिट्टी के दियों की रौशनी में दरगाह की ख़ूबसूरती देखने लायक़ होती है. यहां की सफ़ेद रंग की मस्जिद भी रौशनी से दमक उठती है.
ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती
राजस्थान के अजमेर में स्थित ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर रौशनी की जाती है, दीये जलाए जाते हैं, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. ख़्वाजा भी अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं.
आपने हिन्दुस्तान में सूफ़ीवाद के चिश्तिया सिलसिले का प्रचार-प्रसार किया. हज़रत इसहाक़ शामी द्वारा ईरान के शहर चश्त में शुरू हुआ यह सिलसिला दुनियाभर में फैला हुआ है. दिवाली के दिनों में यहां ज़ायरीनों की तादाद बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि गुजरात के कारोबारी दिवाली पर पांच दिन अपना कारोबार बंद रखते हैं. छुट्टी के इन दिनों में वे अजमेर आते हैं.
क़मरूद्दीन शाह दरगाह
राजस्थान के झुंझुनूं ज़िले में स्थित क़मरूद्दीन शाह दरगाह भी दिवाली पर रौशनी से जगमगा उठती है. यह गंगा जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है. दिवाली पर दरगाह को ख़ूब सजाया जाता है. रात में बल्बों की रौशनी के साथ मिट्टी के दियों और मोमबत्ती की झिलमिलाती क़तारें भी बहुत ही ख़ूबसूरत लगती हैं. आतिशबाज़ी भी होती है और मिठाइयां भी बांटी जाती हैं. यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है.
यहां के लोग बताते हैं कि हज़रत क़मरूद्दीन शाह की चंचलनाथ टीले के संत चंचलनाथ के साथ गहरी दोस्ती थी. क़मरूद्दीन शाह अपनी ख़ानकाह में इबादत में और चंचलनाथ अपने आश्रम में साधना में लीन रहते थे. जब उनका एक-दूसरे से मिलने का मन करता तो वे अपने-अपने स्थानों से बाहर आते और चल पड़ते. रास्ते में गुदड़ी बाजार में उनकी मुलाक़ात होती. उनकी दोस्ती बहुत मशहूर थी. दूर-दूर तलक इनकी चर्चा थी.
देवा शरीफ़
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के देवा नामक क़स्बे में स्थित देवा शरीफ़ दरगाह में भी दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं. यह हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. आप भी अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादों में से हैं.
आपके वालिद क़ुर्बान अली शाह रहमतुल्लाह अलैह भी जाने-माने औलिया थे. हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों में हिन्दुओं की भी बड़ी तादाद है. वे हर साल दिवाली पर दरगाह परिसर में रौशनी करते हैं और मिठाइयां भी बांटते हैं. दिवाली पर यहां का नज़ारा देखने के क़ाबिल होता है.
किछौछा शरीफ़ दरगाह
उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर ज़िले के क़स्बे अशरफ़पुर किछौछा में सुल्तान सैयद मख़दूम अशरफ़ जहांगीर सेमनानी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर रौशनी की जाती है. उनका जन्म ईरान के सेमन में हुआ था. उन्होंने हिन्दुस्तान में चिश्तिया सिलसिले को ख़ूब फैलाया. उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया.
उनकी दरगाह पर सभी मज़हबों के लोग आते हैं. इसलिए यहां दिवाली का त्यौहार भी मनाया जाता है. दिवाली पर दरगाह को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. रात में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं और मिठाइयां भी बांटी जाती हैं.
साबिर पाक
उत्तराखंड के रुड़की के कलियर शरीफ़ में हज़रत मख़दूम अलाउद्दीन अली अहमद रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर भी दिवाली पर रौशनी करने की पुरानी रिवायत है. आपको साबिर पाक और साबिर पिया कलियरी के नाम से भी जाना जाता है. दिवाली पर यहां ज़ायरीनों की भीड़ उमड़ आती है.
दिवाली की रात में यह दरगाह रौशनी से दमक उठती है. हर तरफ़ मिट्टी के दियों और मोमबत्तियों की ख़ूबसूरत क़तारें नज़र आती हैं. लोग मिठाइयां बांटते हैं और एक-दूसरे को दिवाली की मुबारकबाद देते हैं.