मुगल काल से औपनिवेशिक युग तक उर्दू में ईसाई विचारधारा का विकास

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-12-2024
Development of Christian Ideology in Urdu from the Mughal to the Colonial Era
Development of Christian Ideology in Urdu from the Mughal to the Colonial Era

 

सरफराज अहमद

ईसाई धार्मिक आंदोलनों का इस्लाम के साथ आरंभ से ही वैचारिक संबंध रहा है. इस्लाम ने पैगंबर मुहम्मद से पहले के पैगंबरों में ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह को विशेष महत्व दिया. यह महत्व इतना है कि कुरान ने ईसा मसीह को पैगंबर मुहम्मद की तरह ईश्वर का दूत मानने पर जोर दिया है. इस कारण खिलाफत के समय से लेकर भारत के उपनिवेश-पूर्व काल, मुगल और अन्य शासनों के दौर में ईसाई धर्म, उसके इतिहास और विचारधारा का मुसलमान विद्वानों ने लगातार अध्ययन किया.

अकबर के शासनकाल में ईसाई धर्म से संबंधित साहित्य का अनुवाद करने का प्रयास हुआ था. अकबर की परंपरा को दारा शिकोह ने आगे बढ़ाया. उनकी अनुवाद योजनाओं में बाइबल भी शामिल थी. 1857 में मुगल साम्राज्य के पतन तक ईसाई और मुसलमान ज्ञान परंपरा के बीच यह वैचारिक संवाद बना रहा.

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी इसका सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव 20वीं सदी की शुरुआत तक  रहा. इस दौर में उर्दू भाषा हिंदी के मुकाबले संपर्क और संवाद की जनभाषा बनी रही. मैकडोनाल्ड ने उर्दू के प्रशासनिक महत्व को घटाने तक, इसे राजनीतिक महत्व  प्राप्त था.

उर्दू के इस सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों ने एक ओर उर्दू भाषा के साथ अन्याय किया, तो दूसरी ओर ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उर्दू में साहित्य रचने को बढ़ावा दिया. उर्दू में ईसाई साहित्य का आरंभिक संदर्भ 1839 से मिलता है.

अंग्रेजों के भारत आगमन के बाद ईसाई धर्म का वास्तविक रूप से प्रसार शुरू हुआ. अंग्रेजों ने शासक के रूप में ईसाई धर्म के प्रचार में कितना योगदान दिया, यह शोध का विषय है. लेकिन उनकी प्रेरणा और मिशनरी कार्यों के जरिए ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बड़े पैमाने पर साहित्य रचा गया. इसके लिए उन्होंने कई भाषाओं का उपयोग किया.

राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की तुलना में उर्दू में ईसाई साहित्य अधिक मात्रा में रचा गया. ईसाई धर्म के प्रचार के लिए कई अखबार उर्दू में प्रकाशित किए गए. इनमें प्रमुख थे: खैरख़्वान-ए-हिंद (संपादक: पादरी आर. सी. माथुर, मिर्जापुर, 1886 तक प्रकाशित),खैरख़्वाह-ए-खल्क़ (1862 में आरंभ),मख़ज़न-ए-मसीही (इलाहाबाद, 1868),रिसाला मवाइज़-ए-उक़बा (दिल्ली, 1867),कोकब-ए-इसवी (1868),मासिक हक़ायक़-ए-इरफान (संपादक: पादरी अमादुद्दीन, अमृतसर, 1868),सदरुल अख़बार (आगरा, 1846),कोकब-ए-हिंद (संपादक: पादरी क्रीयोन, कलकत्ता, 1869),शम्सुल अख़बार (कलकत्ता, पादरी रज्जब अली),रिसाला-ए-मसीह (लाहौर, 1907),रिसाला-ए-मसीही तजल्लि (लाहौर),मासिक रिसाला-ए-तरक्की (लाहौर, 1924),रिसाला-ए-मायदा (संपादक: मूसा ख़ान, लाहौर),अश्शाहीद (संपादक: पादरी के. एल. नासिर, श्रीगोदा),अकुव्वत (संपादक: एफ.एम. नजमुद्दीन, लाहौर, 1946 तक).

अखबारों के बाद साहित्य निर्माण में भी ईसाई पादरियों ने बड़े पैमाने पर कार्य किया. उर्दू में ईसाई ज्ञान सृजन का इतिहास 1839 से मिलता है. किताब-ए-मुकद्दस का आख़िरी हिस्सा के नाम से पहला ईसाई ग्रंथ कलकत्ता और अमेरिका की धार्मिक संस्थाओं की मदद से उर्दू में प्रकाशित हुआ.

1839 में इसकी पहली प्रति आई. हमारे खुदावंद येशु मसीह का नया वसीका नामक अनूदित पुस्तक 1841 में कलकत्ता से प्रकाशित हुई। किताबुल खुस के खंड 1 और 2 क्रमश: 1842 और 1843 में कलकत्ता से प्रकाशित हुए.

उसी समय किताब-ए-मुकद्दस नामक एक और ग्रंथ प्रकाशित हुआ. यह कुछ महत्वपूर्ण ईसाई उर्दू पुस्तकें हैं. इसके अलावा उजेर अहमद ने अपनी पुस्तक में विस्तार से जानकारी दी है, जिसमें बाइबल के 20 अनुवाद, तौरात का एक अनुवाद, बाइबल पर आधारित 19 पुस्तकें, ईसाई धर्म पर 50 पुस्तकें, 14 ईसाई उर्दू काव्य संग्रह और 14 बाल साहित्य की पुस्तकें शामिल हैं.

ईसाई धर्मियों की तरह हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म का साहित्य भी उर्दू में बड़े पैमाने पर उपलब्ध है. महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों के 20 से अधिक अनुवाद उर्दू में हैं. आर्य समाज ने क्षेत्रीय स्तर पर 10 मुखपत्र उर्दू में प्रकाशित किए. इस कारण उपनिवेश काल में उर्दू की जनभाषा के रूप में महत्ता उजागर होती है.

उर्दू ने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक ज्ञान जगत से अपना संबंध जोड़ा. इसी कारण दास कैपिटल का भारतीय भाषाओं में पहला अनुवाद उर्दू में हुआ. आधुनिक चिकित्सा शिक्षा भी पहली बार स्थानीय भाषाओं में उर्दू के माध्यम से उपलब्ध हुई. इसी ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश अधिकारियों ने उर्दू में ईसाई साहित्य सृजन को प्रोत्साहित किया.

(लेखक मध्यकालीन इतिहास के जानकार हैं.)