-फ़िरदौस ख़ान
देश में ऐसे बहुत से मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं, जिनकी ज़िन्दगी का मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वराज हासिल करना था. वे अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद करवाना चाहते थे. उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी देश को आज़ाद करवाने की जद्दोजहद में ही गुज़ार दी. वे मुल्क की आज़ादी का ख़्वाब अपनी आंखों में बसाये इस दुनिया से चले गए. आज़ाद मुल्क में सांस लेना उन्हें नसीब नहीं हुआ, लेकिन उनकी कोशिशों की बदौलत देश आज़ाद हुआ और आज हम आज़ाद मुल्क में जी रहे हैं.
मौलाना शौकत अली हिन्दू और मुसलमानों की एकता को बहुत अहमियत देते थे. उन्हें महात्मा गांधी सियासत में लाए थे. उनके बारे में महात्मा गांधी ने लिखा है- “मौलाना शौकत अली तो बड़े से बड़े शूरवीरों में से एक हैं. उनमें बलिदान की अद्भुत योग्यता है और उसी तरह ख़ुदा के मामूली से मामूली जीव को चाहने की उनकी प्रेम शक्ति भी अजीब है.
वह ख़ुद इस्लाम पर फ़िदा हैं, पर दूसरे धर्मों से वह घृणा नहीं करते. मौलाना जौहर अली इनका दूसरा शरीर है. मौलाना शौकत अली में मैंने बड़े भाई के प्रति जितनी अनन्य निष्ठा देखी है, उतनी कहीं नहीं देखी. उनकी बुद्धि ने यह बात तय कर ली है कि हिन्दू-मुसलमान एकता के सिवा हिन्दुस्तान के छुटकारे का कोई रास्ता नहीं है.”
मौलाना शौकत अली की ये एक बड़ी ख़ासियत थी कि वे अपनी ग़लती का अहसास होने पर उसे सुधार लिया करते थे. मौलाना शौकत अली के कथित आपत्तिजनक बयान के बारे में महात्मा गांधी ने लिखा था- “कोकोनाडा के उनके भाषण का एक हिस्सा बहुत ही आपत्तिजनक बताकर मुझे दिखाया गया था.
मैंने मौलाना का ध्यान उस पर खींचा. उन्होंने उसी दम स्वीकार किया कि हां, वास्तव में यह भूल हुई. कुछ दोस्तों ने मुझे सूचना दी कि मौलाना शौकत अली के ख़िलाफ़ परिषद् वाले भाषण में कितनी ही बातें आपत्तिजनक हैं. यह भाषण मेरे पास है, परन्तु उसे पढ़ने का मुझे समय नहीं मिल पाया. यह मैं ज़रूर जानता हूं कि यदि उसमें सचमुच कोई ऐसी बात होगी, जिससे किसी का दिल दुखी हो, तो भी शौकत अली ऐसे लोगों में पहले व्यक्ति हैं, जो उसको ठीक करने के लिए तैयार रहते हैं.
मौलाना शौकत अली का जन्म 10मार्च 1873को उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर में हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से तालीम हासिल की थी. उन्हें क्रिकेट का भी शौक़ था. वे अलीगढ़ विश्वविद्यालय की क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने. वे सिविल सेवा में भी रहे.
उन्होंने अपने भाई मौलाना मुहम्मद अली जौहर के उर्दू साप्ताहिक हमदर्द और अंग्रेज़ी साप्ताहिक कॉमरेड में भी काम किया. उन्होंने ख़िलाफ़त आन्दोलन में शिरकत की. उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए ब्रिटिश हुकूमत की हर ज़्यादती और हर ज़ुल्म बर्दाश्त किया.
महात्मा गांधी ने उन्हें और उनके भाई मुहम्मद अली जौहर को छुड़ाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत से पत्र-व्यवहार भी किया था. इस बारे में महात्मा गांधी लिखते हैं- “इन भाइयों का मिलाप मुझे अच्छा लगा. हमारा स्नेह बढ़ता गया. हमारा परिचय होने के बाद तुरंत ही सरकार ने अली भाइयों को जीते-जी दफ़न ही कर दिया था.
मौलाना मुहम्मद अली को जब-जब इजाज़त मिलती, वह मुझे बैतूल जेल से या छिंदवाड़ा जेल से लम्बे-लम्बे पत्र लिखा करते थे. मैंने उनसे मिलने जाने की प्रार्थना सरकार से की, मगर उसकी इजाज़त न मिली.अली भाइयों के जेल जाने के बाद मुस्लिम लीग की सभा में मुझे मुसलमान भाई ले गए थे.
वहां मुझसे बोलने के लिए कहा गया था. मैं बोला. अली-भाइयों को छुड़ाने का धर्म मुसलमानों को समझाया. इसके बाद वे मुझे अलीगढ़ कॉलेज में भी ले गए थे. वहां मैंने मुसलमानों को देश के लिए फ़क़ीरी लेने का न्यौता दिया था. अली भाइयों को छुड़ाने के लिए मैंने सरकार के साथ पत्र-व्यवहार चलाया.”
26 नवम्बर 1938 को दिल्ली में उनका इंतक़ाल हुआ. महात्मा गांधी लिखते हैं- “स्वर्गीय मौलाना शौकत अली के स्मारक के बारे में मैंने कई तजवीज़ें पढ़ी हैं. ज्यों ही मुझे मौलाना की मृत्यु के बारे में मालूम हुआ, जिसकी अभी बिल्कुल भी आशा नहीं थी, मैंने कुछ मुसलमान मित्रों को उनके साथ अपने अंतस्थल की वेदना प्रकट करते हुए लिखा.
उनमें से एक मित्र ने लिखा है- “मैं यह जानता हूं कि मौलाना शौकत अली अपने ख़ास ढंग से सच्चा हिन्दू-मुस्लिम समझौता कराने के लिए सचमुच चिन्तित थे. स्वर्ग में उनकी आत्मा को यह जानकर कि उनका एक जीवन-उद्देश्य आख़िरकार पूरा हो गया, जितनी शान्ति मिलेगी उतनी किसी दूसरे काम से नहीं.
ऐसे भी लोग हो सकते हैं, जिन्हें कि संदेह हो लेकिन मौलाना को और उनका दिमाग़ जिस तरह काम करता था इसको अच्छी तरह जानकर जैसा कि मैं उन्हें जानता था, मैं भरोसे के साथ इस बात की ताईद कर सकता हूं.”कभी-कभी जो वह जोश में आकर ख़िलाफ़ बोल जाते थे, उसके बावजूद मौलाना के दिल में एकता और शान्ति के लिए बड़ी तमन्ना थी जिसके लिए कि वह ख़िलाफ़त के दिनों में बड़े मोहक ढंग से बोलते व काम करते थे.
मुझे इसमें कोई शक नहीं कि उनकी यादगार में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही क़ौमों का एकता के लिए हुआ संयुक्त निश्चय ही सबसे सच्चा स्मारक होगा.ख़ाली काग़ज़ी एकता का निश्चय नहीं, बल्कि दिली एकता का, जिसका आधार शक और बेऐतबारी नहीं, बल्कि आपस का विश्वास होगा. कोई दूसरी एकता हमें नहीं चाहिए और इस एकता के बिना हिन्दुस्तान के लिए सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती.”
महात्मा गांधी लिखते हैं- “आप लोगों ने जो इतनी शान्ति रखी, इसके लिए आपको धन्यवाद है. पहले इतनी शान्ति नहीं हुआ करती थी. इससे साफ़ है कि पिछले तीन दिन जो हुआ उससे हमने धर्म नहीं खोया है. यदि आदमी शान्ति से न रहे, कभी अपने विचारों को भीतर से न देखे, जीवन भर दौड़-दंगल में ही रहे और हर वक़्त गर्म बना रहे तो वह उस शक्ति को पैदा नहीं कर सकता, जिसे शौकत साहब ‘ठंडी हवा’ कहा करते थे.
मुहम्मद अली साहब भी कहते थे कि हमें अंग्रेज़ों से लड़कर स्वराज्य लेना है और हमारी लड़ाई होगी तकली की तोपों से और कुकुड़ियों के गोलों से. वह जितना विद्वान था, उतना ही कल्पनाएं दौड़ाने वाला था.”