पुण्य तिथि विशेष: जौन एलिया ‘सार्वभौमिक भाईचारे’ से भी ऊपर ‘राष्ट्रवाद’ में रखते थे यकीन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-11-2024
Death anniversary special: Jaun Elia believed in 'nationalism' above 'universal brotherhood'
Death anniversary special: Jaun Elia believed in 'nationalism' above 'universal brotherhood'

 

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/1687097899Saquib_Salim.jpgसाकिब सलीम

जो कोई भी सोशल मीडिया पर सक्रिय है और उर्दू शायरी का शौकीन है, वह निश्चित रूप से जौन एलिया को जानता होगा. हम सभी ने उन्हें वीडियो में तीव्र भावनाओं के साथ शायरी करते देखा है. युवा उन्हें शुद्ध प्रेम के शायर के रूप में प्यार करते हैं और विद्वान उन्हें मार्क्सवाद में विश्वास करने वाले दार्शनिक शायर के रूप में सराहते हैं. लेकिन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद बनाम अंतरराष्ट्रीयतावाद पर उनके विचार बहुत कम लोग जानते हैं.

वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवी और धार्मिक उपदेशक, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के देशों में, लोगों को एक बड़े उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय सीमाओं के पार एकजुट होने के लिए कहते हैं. हमने ऐसे लोगों को आग्रह करते हुए देखा है कि धर्म, नारीवाद, लोकतंत्र या किसी अन्य विचारधारा से भी बड़े कारणों के लिए राष्ट्रीय या सांस्कृतिक निष्ठा को छोड़ा जा सकता है. सोशल मीडिया पर अक्सर लोग अपने-अपने देशों में विचारधाराओं को बचाने के लिए एक-दूसरे को टैग करते हैं. एलिया ऐसे बुद्धिजीवियों के घोर आलोचक थे.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/168709886006_Jaun_Elia_believed_in_Nationalism_over_Universal_Brotherhood_2.jpg

एलिया ने एक उर्दू पत्रिका इंशा का संपादन किया. इसके जनवरी 1963 के अंक में उन्होंने एक लेख लिखा, तेरे दीवाने यहां तक पहुंचे (आपके प्रेमी यहां पहुंच गए हैं), जहां उन्होंने अपने पाठकों को चेतावनी दी, ‘‘सार्वभौमिक भाईचारे के नारों से कभी धोखा मत खाओ. कुछ लोग इसकी आड़ में आपको गुमराह करने की कोशिश करते हैं.’’


ये भी पढ़ें : Exclusive interview-1: मुफ्ती अहमद नादिर कासमी से समझें, इज्तिहाद कियास फिकह क्या और क्यों हैं?


एलिया चाहते थे कि लोग ऐसे कार्यकर्ताओं की पहचान करें, जो खुद को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरों पर अपना विश्वास थोपने की कोशिश करते हैं. कोई व्यक्ति भूख से मर रहा है, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं है, लेकिन वह व्यक्ति उनके विश्वास का पालन करता है या नहीं, इसकी उन्हें निश्चित रूप से चिंता है. वे उन मुद्दों से ऊपर हैं, जो पृथ्वीवासियों से संबंधित हैं. उनकी ईश्वरीय मान्यता / विचारधारा का न तो कोई राष्ट्र है और न ही कोई भाषा. वे हमारे समाज को बर्बाद करना चाहते हैं.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/168709881306_Jaun_Elia_believed_in_Nationalism_over_Universal_Brotherhood_3.jpg

एलिया एक वैश्विक समाज के खिलाफ नहीं थे, लेकिन वे ऐसे लोगों के खिलाफ थे, जो अंतर्राष्ट्रीयता के नाम पर राष्ट्रों और उनकी संस्कृतियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं. उन्होंने लिखा, ‘‘एक वैश्विक समाज की अवधारणा आपको अपनी सभ्यता के प्रति विश्वासघाती और अपने ही देश का दुश्मन होना नहीं सिखाती है. लेकिन ये लोग विश्व बंधुत्व का नारा लगाने वाले चाहते हैं कि आप अपनी स्वतंत्रता, शक्ति, राष्ट्रवाद, सामाजिक अखंडता और रचनात्मक स्व का समर्पण कर दें.’’

 


ये भी पढ़ें :  क्या आपको पता है, देवबंदी उलेमा के इज्तिहाद ने मुस्लिम महिलाओं को दिया ‘खुला’ का अधिकार


एलिया ने आगे अपने पाठकों से पूछा कि अगर वे मानते हैं कि इन बुद्धिजीवियों के इरादे राष्ट्रों को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं थे, तो भी अगर वे ऐसी क्रांति लाने में सफल होते हैं, जहां भाषा, संस्कृति और राष्ट्र के लिए प्रेम किसी ‘बड़े कारण’ के लिए गौण हो जाता है, तो किसे लाभ होगा इस स्थिति से. बेशक देश और संस्कृति के दुश्मन इस मौके का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करेंगे.

 


ये भी पढ़ें :  इज्तिहाद वक्त की जरूरत  


 

एलिया पाकिस्तान में लिख रहे थे और उनके निशाने पर पैन-इस्लामवादी और रूसी समर्थित कम्युनिस्ट थे. लेकिन, उनके शब्दों ने अपनी प्रासंगिकता नहीं खोई है. एक बिल्कुल अलग समय और स्थान में यह चेतावनी भारतीयों के लिए उन बुद्धिजीवियों के खिलाफ सही है, जो राष्ट्रीय एकता के बदले उत्पीड़ितों के सार्वभौमिक भाईचारे की बात करते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि सार्वभौमिक भाईचारा या उत्पीड़ितों के अधिकार बुरे विचार हैं, लेकिन राष्ट्रों और संस्कृतियों की संप्रभुता से समझौता करने के लिए उनका उपयोग निश्चित रूप से है.