दरगाहे नज्फे हिंद के लिए बने व्यापक योजना

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 21-05-2023
दरगाहे नज्फे हिंद के लिए बने व्यापक योजना
दरगाहे नज्फे हिंद के लिए बने व्यापक योजना

 

अशोक मधुप

शियाओं के प्रसिद्ध दरगाह  उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के दरगाहे नज्फे हिंद जोगीरमपुरी के लिए एक व्यापक योजना बनाने और उस पर अमल करने की जरूरत है. ऐसा इंतजाम किए जाने की जरूरत है कि यहां आने वाले अकीदतमंदों को परेशानी न उठानी पड़े.

हर साल गेंहू की फसल के कटने के बाद होने वाली चार रोजा मजलिस में लाखों की संख्या में अकीदतमंद आते हैं.इस स्थान को इतना लोकप्रिय किया जाए कि यहां हर समय अंकीदतमंद आए। इससे  जनपद में टूरिज्म बढ़ेगा।  जनपदवासियों की आए बढ़ेगी.

25 मई से उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर के जोगीरम्पुरी में चार दिवसीय मजलिस शुरू हो रही हैं.जोगीरम्पुरी शिया मुस्लिमों का प्रसिद्ध  स्थल है.इसे नजफे  हिंद भी कहा जाता है.अरब के बाद शिया मुसलमानों का ये दुनिया में सबसे महत्व का धार्मिक स्थान है .मान्यता है कि यहां हजरत अली घुड़सवारी दस्ते के साथ आए थे.

चार दिन की मजलिसों में लाखों अकीदतमंद पूरी दुनिया से शामिल होने आते हैं.दरगाह के  एक प्रवक्ता के  अनुसार  चार दिनों में यहां हर समय दो लाख के करीब अकीदतमंद  मौजूद रहते हैं.  काफी अकीदतमंद आते और जाते रहतें हैं.एक अनुमान के अनुसार चार दिन में दस लाख के आसपास अकीदतमंद देश और दुनिया से यहां पहुंचते हैं.

 मजलिस के पहले दिन से पूरा दरगाह क्षेत्र  रंज-ओ-गम एवं मातमी मजलिसों के आगोश में समा  जाता है.यहां आकर जायरीन जियारत करते हैं.मातमी मजलिसों में रात −दिन उलेमा वाकयात-ए-करबला के साथ हजरत इमाम हुसैन एवं उनके लश्कर को क्रूर बादशाह यजीद द्वारा दी गई दिल दहलाने वाली यातनाओं का जिक्र करते हैं, तो शिया साहेबान फफककर रोने एवं सीनाजनी के लिए मजबूर हो जाते हैं.

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 इस दौरान दरगाह के शमशुल हसन हॉल से हर वक्त हजरत इमाम हुसैन, उनके साथियों एवं कुटुंब के लोगों की दीन और इसलाम की हिफाजत के लिए दी गई बेशकीमती कुरबानियों का उलेमा द्वारा किए जाने वाले जिक्र से पूरा परिसर गमगीन माहौल में तब्दील हो जाता है.

यहां  चार दिनी मजलिस  तब शुरू होती हैं, जब गेंहू कटने के बाद मजार के चारों ओर के  खेत खाली हो जाते हैं.इन मजलिस  के आने वालों के लिए इंतजामिया मजार के चारों ओर की लगभग एक सौ बिघे के आसपास जमीन लेती हैं.

कुछ जमीन फ्री मिल जाती है तो कुछ का किराया देना पडता  है.इस जमीन में इंतजामिया जायरीन के लिए टैंट लगाते हैं.अस्थाई शौचालय बनवाते हैं.जगह −जगह पीने के पानी के इंतजाम करते हैं.

जिला प्रशासन इन मजलिस के इंतजाम के पूरा सहयोग करता है.इसीलिए जनपद की सभी नगर पालिकाएं, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत और जिला पंचायत सहयोग करती हैं।पुलिस व्यवस्था  बनाती है.

जोगीरम्पुरी दरगाह आज शिया समाज ही नहीं, विभिन्न धर्मों के अनुयायियों की अकीदत की स्थान  बन चुका है।यहां  सभी धर्म के अनुयायी हरसमय  आते  और सजदा  करते हैं.उर्स के समय के लिए लाखों अकीदतमंद आते हैं, इसलिए  इस समय के लिए व्यापक व्यवस्था  बनाने की  जरूरत है.

ताकि अकीदतमंद आराम से आए और यहां  रहकर वापिस हो जांए.इसके लिए  इस तरह का इंतजाम किए जाने की जरूरत है कि अकीदतमंद के आने का एक रास्ता हो और जाने का दूसरा.

आने वाले रास्ते के प्रवेश स्थल पर वाहन उन्हें छोड़ दें.इन वाहनों की पार्किंग जाने वाले स्थान के आसपास हो.ताकि दरगाह से निकल कर इन्हें अपने  वाहन खोजने की परेशानी न हो.ऐसी की व्यवस्था पब्लिक वाहन के लिए हो.

बाजार आदि की भी पहले से ऐसी व्यवस्था हो कि वह मार्ग में रूकावट न बनें.अकीदतमंद की भारी संख्या को देखते हुए रास्ते चौड़े और साफ रखे जाएं .जायरीन के पीने के पानी की जगह−जगह व्यवस्था हो.

इसी को ध्यान रखकर सामूहिक शौचालय –स्नानागार  भी बनने चाहिंए .हालाकि अभी जनपद के स्थानीय निकाय के अस्थाई शौचालय मजलिसों के दौरान यहां तैनात कर दिए जाते  हैं.किंतु उर्स के अलावा अन्य  समय के लिए भी अकीदतमंद की आवाजाही को देखते हुए इंतजाम किए जाने चाहिए.

दरगाह प्रबंध समिति से लंबे  तक जुड़े रहे  बिजनौर के प्रसिद्ध अधिवक्ता खुरर्शीद मोहसिन जैदी कहते हैं कि मजलिस के समय के लिए यहां कुंभ जैसे इंतजाम हों.यहां के लिए नियमित पब्लिक ट्रांस्पोर्ट  का  इतजाम हो.

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क्या है मान्यता

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के नजीबाबाद नगर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर जोगीरम्पुरी उर्फ अहमदपुर सादात मुसलिम शिया समाज की अकीदत की जगह है.यह स्थान हरिद्वार – काशीपुर और मेरठ – पौडी  नेशनल हाई−वे पर पड़ता है.

हवाई मार्ग यहां दिल्ली और देहरादून एयरपोर्ट से उतरकर आया जा सकता है.दिल्ली से दरगाह की दूरी लगभग चार घंटे और देहरादून से दो घंटे के आसपास बैठती है.नजीबाबाद उत्तर रेलवे का हाबड़ा− देहरादून रूट पर  महत्वपूर्ण जंक्शन है.

 मान्यता है कि हजरत अली घुड़सवारी दस्ते के साथ यहां पहुंचे थे.जोगीरम्पुरी के बारे में अनुयायियों का यकीन है कि मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में अलाउद्दीन बुखारी वफादार दीवान थे.

उनके इंतकाल के बाद उनके साहबजादे सय्यद राजू को दीवान मुकर्रर किया गया.आलमगीर की उपेक्षा को देख सय्यद राजू जोगीरम्पुरी पहुंचे.उन्हें आलमगीर से खतरा था। वह या अली अदरिकनी वजीफा करते और मौला अली से अपनी हिफाजत के लिए रात-दिन दुआएं मांगते.दिन में जंगल में चले जाते.

रात में घार आ जाते।एक दिन देर से आंख खुलने पर सय्यद राजू को घर की मचान में ही छिपने को मजबूर होना पड़ा.संयोग से उसी दिन एक घुड़सवारी दस्ता जंगल में आ पहुंचा.दस्ते का नेतृत्व कर रहे नौजवान के चेहरे पर तेज व हाथ में अलम था.

बाकी घुड़सवार नकाबपोश थे.जंगल से घास लेकर लौट रहे एक नाबीना ब्राह्मण से नौजवान ने सय्यद राजू की बाबत जानकारी ली.नौजवान ने कहा कि सय्यद राजू के अलावा किसी को भी इस बात की भनक नहीं होनी चाहिए कि कौन आया है.

नाबीना ने फरमाया कि मेरी आंखों में रोशनी नहीं है, मैं जल्द इस काम को कैसे अंजाम दे सकता हूं? दस्ते के मुखिया का हुक्म हुआ कि वह अपनी आंखें बंद कर खोले.नाबीना के आंखें खोलते ही उसकी दुनिया ही बदल गई.

आंखों में रोशनी पाकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा.वह भागता हुआ वह सय्यद राजू के पास पहुंचा और कहा कि जिन्हें आप रात-दिन याद करते हैं, वह घुड़सवार दस्ते के साथ आपसे मिलने आए हैं.

जब सय्यद राजू वहां पहुंचे, तो दस्ता नदारद था.घोड़े की टापों एवं मुंह के झाग के निशान मौजूद थे.मायूस सय्यद राजू ने इन निशानों को महफूज कर लिया.400साल पहले मौला अली के जोगीरम्पुरी आने पर भले ही उनकी मुलाकात सय्यद राजू से नहीं हो पाई, लेकिन उन्हें ख्वाब में हुक्म हुआ कि दरगाह तामीर कराई जाए.

दरगाह तामीर कराने के दौरान पानी की कमी महसूस की गई.एक शख्स ने दरगाह स्थल के नजदीक गूलर के पेड़ की एक शाख से पानी टपकते देखा.कहते हैं, पानी गिरने से जमीन नम हुई.

वहां पानी का एक करिश्माई चश्मा फूटा.इससे पूरी दरगाह तामीर हुई.आज भी इस चश्मे की अहमियत बरकरार है.मान्यता है कि इसका पानी पीने से चर्म रोग, पेट की बीमारियां और ऊपरी हवाओं से निजात मिलती है.

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं