कैप्टन मोहम्मद अकरम: आई.एन.ए. के पहले शहीद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-08-2024
कैप्टन मोहम्मद अकरम: आई.एन.ए. के पहले शहीद
कैप्टन मोहम्मद अकरम: आई.एन.ए. के पहले शहीद

 

साकिब सलीम

“आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) का गठन जित्रा(Jitra)में किया गया था.कैप्टन मोहन सिंह को जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जी.ओ.सी.) बनाया गया था.इतिहास में पहली बार ‘आजाद हिंदुस्तान जिंदाबाद’ और ‘आजाद हिंद फौज जिंदाबाद’ के नारों से आसमान गूंज उठा.

कैप्टन मोहम्मद अकरम खान और जमादार साधु सिंह आई.एन.ए. में शामिल होने वाले पहले व्यक्ति थे.वे 15 जनवरी 1942 को अलोर स्टार आए.” ज्ञानी केसर सिंह ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन का वर्णन इस तरह किया है.

हम सभी आज़ाद हिंद फ़ौज (AHF) या भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को जानते हैं, जिसका नेतृत्व बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया.हम में से बहुत कम लोग कैप्टन मोहन सिंह को INA के पहले कमांडर के रूप में जानते हैं.

क्या हम कैप्टन मोहम्मद अकरम को जानते हैं? दिसंबर 1941 में मलेशिया के जित्रा में ब्रिटिश सेना के आत्मसमर्पण के बाद, इंडिया इंडिपेंडेंस लीग के ज्ञानी प्रीतम सिंह ने ब्रिटिश सेना के भारतीय अधिकारियों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए राजी किया.

कैप्टन मोहन सिंह और कैप्टन मोहम्मद अकरम दो महत्वपूर्ण अधिकारी थे जिन पर भारतीय सैनिकों को भरोसा था.14वीं पंजाब रेजिमेंट के दोनों अधिकारी प्रीतम सिंह के प्रस्ताव पर सहमत हो गए.जापानी अधिकारी मेजर फुजिवारा ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को पूर्ण समर्थन देने का वादा किया.

अकरम ने अन्य भारतीय सैनिकों को आई.एन.ए. में शामिल होने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.जहाँ भी भारतीय सैनिक जापानियों द्वारा पकड़े जाते, मोहन सिंह और मोहम्मद अकरम खान उनसे मिलते और उन्हें आई.एन.ए. में शामिल होने के लिए राजी करते.

freedom

विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद आई.एन.ए. के सैनिकों पर ब्रिटिश सरकार ने मुकदमा चलाया.अदालत में सूबेदार मेजर बाबू राम ने कहा कि फरवरी 1941 में जब उनकी रेजिमेंट ने आत्मसमर्पण कर दिया और जापान को सौंप दिया, तो "दो या तीन दिन बाद मेजर फुजिवारा, कैप्टन मोहन सिंह और कैप्टन मोहम्मद अकरम के साथ कैंप में आए."

आई.एन.ए. के मामलों में अकरम मोहन सिंह के बाद दूसरे नंबर पर थे.मार्च 1942 में, दक्षिण-पूर्व एशिया में लड़ रहे भारतीय नेताओं की एक बैठक टोक्यो में बुलाई गई.इस बैठक को टोक्यो सम्मेलन के नाम से जाना गया.

जापानी अधिकारियों और अनुभवी भारतीय क्रांतिकारियों रास बिहारी बोस और राजा महेंद्र प्रताप के परामर्श से भविष्य की कार्रवाई और सहयोग का फैसला वहाँ किया जाना था.मोहम्मद अकरम उन तीन आई.एन.ए. अधिकारियों में से एक थे जिन्हें बैठक में भाग लेना था.

मोहन सिंह और अकरम अलग-अलग विमानों से टोक्यो के लिए रवाना हुए.कैसर सिंह लिखते हैं, “चार सबसे उत्साही कार्यकर्ताओं का पहला जत्था 11 मार्च 1942 की सुबह-सुबह साइगांव के रास्ते जापान के लिए रवाना हुआ.

वे थे स्वामी सत्यानंद पुरी - थाईलैंड की भारतीय राष्ट्रीय परिषद के आयोजक, सरदार प्रीतम सिंह.भारतीय स्वतंत्रता लीग के संस्थापक, कैप्टन मोहम्मद अकरम.भारतीय राष्ट्रीय सेना में जनरल मोहन सिंह के दाहिने हाथ और श्री नीलकंठ आयरे,श्री राघवन के भरोसेमंद सहायक.फुजिवारा विभाग के ओट्टागुरु और छह अन्य जापानी भी उनके साथ थे.

बताया जाता है कि वे 13 मार्च 1942 को साइगांव से चले गए थे, और उसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला.”बाद में बताया गया कि 24 मार्च को उनका विमान माउंट शिराकुरा में दुर्घटनाग्रस्त हो गया.

लेफ्टिनेंट कर्नल नरंजन सिंह गिल, जो मोहन सिंह और अकरम के अलावा टोक्यो सम्मेलन में भाग लेने वाले तीसरे आईएनए अधिकारी थे, ने इन चार लोगों को "हमारे आंदोलन के पहले शहीद" कहा.हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं. भले ही आज उन्हें शायद ही कोई जानता हो.हमने स्थानीय मंदिर, होंगेनजी में उन्हें उचित सम्मान दिया, जहाँ उनकी राख को रखा गया था.