कनाडा का भारत विरोधी इतिहास कोई नया नहीं !

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-09-2023
कनाडा का भारत विरोधी इतिहास कोई नया नहीं !
कनाडा का भारत विरोधी इतिहास कोई नया नहीं !

 

साकिब सलीम

‘हमें खेद है, अगर हम कर सकते तो हम ऐसा करते, लेकिन आप (भारतीय) यूरोपीय लोगों के साथ बराबरी के स्तर पर नहीं आ सकते. हम अपने देश (कनाडा) को श्वेत लोगों का देश बनाने के लिए बाध्य हैं.” ये शब्द हैं सर डॉ. विलियम ओस्लर का. कनाडा के महानतम डॉक्टरों में से  विलियम ओस्लर का जन्म  28 मई 1914 को हुआ था.

उनका इस भारत विरोधी टिप्पणी का संदर्भ क्या था?

20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब से भारतीयों ने भारत में ब्रिटिश शासकों द्वारा उन पर थोपी गई गरीबी से बचने के लिए उत्तरी अमेरिका की ओर पलायन करना शुरू कर दिया. 1907 में प्रकाशित वुड-वर्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, अठारह महीनों के भीतर पंजाब में 20,00,000 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हो गई. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 1901 के पतन के बाद से, वे अक्टूबर तक बहुत धीरे-धीरे आ रहे थे. तब वैंकूवर में 1486 हिंदू थे (यह शब्द किसी भी धर्म के भारतीयों के लिए इस्तेमाल किया गया था).
 
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कनाडा में राजनेता भारतीयों और अन्य एशियाई लोगों का स्वागत नहीं कर रहे थे. 1907 में कनाडा से भारतीयों सहित सभी एशियाई लोगों को बाहर निकालने के उद्देश्य से एशियाटिक एक्सक्लूजन लीग का गठन हुआ था. यही नहीं 7 सितंबर, 1907 को कनाडाई लोगों की एक बड़ी भीड़ ने वैंकूवर में भारतीय, जापानी और चीनी उपनिवेशों पर हमला कर दिया था.
 
भारतीयों को उतना नुकसान नहीं हुआ जितना अन्य एशियाई लोगों को हुआ, क्योंकि उनमें से ज्यादातर सिख थे. उन्होंने सेना में सेवा दी थी और सफेदों की भीड़ से डटकर मुकाबला किया. बावजूद इसके कनाडा पुलिस ने फिर भी भारतीय हिंदुओं, सिखों और मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया.
 
वैंकूवर में इन एशियाई विरोधी दंगों पर 1907 के एक लेख में, वेर्टर डोड ने लिखा, “सच है, हिंदू एक वांछनीय नागरिक नहीं है. वह अनुकूलनीय नहीं है. वह फिट नहीं बैठते. वह विदेशी भूमि में एक अजनबी हैं. वह एक गरीब मजदूर हैं. गंदगी में रहते हैं.” 
 
उनका यह भी कुतर्क था, दो श्वेत व्यक्ति तीन हिंदुओं जितना (काम) करेंगे. यानी तब भी यह भारत विरोधी नफरत हर जगह थी.कनाडा सरकार ने भारतीयों के आप्रवासन की जांच के लिए 1908 में कानून पारित किया था.
 
इन कानूनों में सबसे दुष्ट सतत यात्रा विनियमन था जिसके अनुसार केवल वे लोग ही कनाडा में प्रवेश कर सकते थे, जिनका जन्म या नागरिकता के देश से निरंतर यात्रा करके और या अपने जन्म या राष्ट्रीयता के देश को छोड़ने से पहले खरीदे गए टिकटों के माध्यम से.
 
इस अधिनियम ने उन भारतीयों को प्रभावित किया जिन्हें जहाज यात्राओं के उन दिनों उत्तरी अमेरिकी तट पर पहुंचने से पहले चीन या जापान या दोनों जगह रुकना पड़ता था. विनियमन में आगे कहा गया है कि कनाडा में प्रवेश करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति के पास 200 सौ डॉलर होने चाहिए. यह रकम भारतीयों के लिए बहुत ज्यादा थी.
 
इस विनियमन को कनाडा में भारतीयों द्वारा चुनौती दी गई और 1911 में हुसैन रहीम ने खुद को देश में रहने का अधिकार हासिल कर लिया. फिर भी कानून ने अधिकांश भारतीयों पर प्रतिबंध लगा दिया और कनाडा में उनकी उपस्थिति नगण्य हो गई.
 
जनवरी 1914 में, एक भारतीय क्रांतिकारी बाबा गुरदित सिंह, जो सिंगापुर में एक सफल व्यवसायी थे, ने कनाडा जाने के उद्देश्य से एक जापानी जहाज कोमागाटा मारू किराए पर लिया. गुरदित का उद्देश्य नमक कानून तोड़ने के लिए महात्मा गांधी के अधिक लोकप्रिय दांडी मार्च से कई साल पहले इसे तोड़कर एक भारतीय विरोधी कानून की अवहेलना करना था.
 
जहाज पर कुल 340 सिख, 24 हिंदू और 12 मुस्लिम सवार थे. उनमें से कई गदर पार्टी से जुड़े भारतीय क्रांतिकारी थे. 23 मई 1914 को, जहाज वैंकूवर के पास बुराड इनलेट पहुंचा और उसे डॉक करने की अनुमति नहीं दी गई.
 
इसके बाद कनाडा में भारतीयों ने समितियां बनाईं. इन 376 भारतीयों को कनाडा में अनुमति देने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी गई. डॉ ओस्लर की यह टिप्पणी कोमागाटा मारू के वैंकूवर पहुंचने के पांच दिन बाद आई थी. वह अपने कई हमवतन लोगों की तरह कनाडा में भारतीयों का विरोध कर रहे थे.
 
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जहाज पर हमला किया गया. पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा और अंततः 23 जुलाई 1914 को इसे वापस भारत लौटा दिया गया. वैंकूवर में केवल 20 यात्रियों को उतरने की अनुमति दी गई. यह जहाज 356 भारतीयों को लेकर 27 सितंबर 1914 को कलकत्ता बंदरगाह पर पहुंचा.
 
उनमें से अधिकांश क्रांतिकारी थे. ब्रिटिश सरकार भी उन्हें नहीं चाहती थी. कलकत्ता पुलिस ने इन यात्रियों पर गोलीबारी की जिसमें लगभग 20 लोग मारे गए और कई अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया. गुरदित सिंह और कई अन्य भागने में सफल रहे.
 
यह घटना संयुक्त राज्य अमेरिका में बरकतुल्लाह या सोहन सिंह जैसे भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक रैली स्थल बन गई. यह एक महत्वपूर्ण क्षण भी माना जाता है, जब भारतीयों ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों को समझा.कनाडा सरकार ने 2016 में एक सदी से अधिक समय के बाद कोमागाटा मारू घटना के लिए माफी मांगी.