आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
"दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं, खून से ही हम शहीदों की, फौज बना देंगे. मुसाफिर जो अंडमान के, तूने बनाए जालिम, आजाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे." यह कविता भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद अशफाक उल्ला खां की है, जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एकता की ऐसी मशाल जलाई, जो आज भी जल रही है.
22 अक्टूबर 1900 को अशफाक उल्ला खां का जन्म शाहजहांपुर के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम शफिकुल्लाह खान और मां का नाम मजरुनिस्सा था. वे अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. जब वे बड़े हुए, तो उनका शायरी से लगाव बढ़ने लगा. हालांकि, राजाराम भारतीय नाम के छात्र की गिरफ्तारी ने उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई.
इसके बाद वे स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल हो गए और अपनी कविताओं के जरिए देश प्रेम के जज्बात को बखूबी व्यक्त करने लगे. अशफाक उल्ला खां ने लिखा, "कस ली है कमर अब तो कुछ करके दिखाएंगे, आजाद ही हो लेंगे, या सिर ही कटा देंगे। हटेंगे नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे."
साल 1924 में, अशफाक उल्ला खां ने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम का एक संगठन बनाया. इसका उद्देश्य स्वतंत्र भारत की प्राप्ति के लिए सशस्त्र क्रांति का आयोजन करना था. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के क्रांतिकारियों ने 8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में एक बैठक की.
इस मीटिंग में उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए काकोरी से सरकारी नकदी ले जा रही एक ट्रेन को लूटने का निर्णय लिया. इन पैसों का उपयोग हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए किया जाना था.
राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी में ट्रेन को लूट लिया. जबकि बिस्मिल को पुलिस ने पकड़ लिया, अशफाक उल्ला खां एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनका पुलिस पता नहीं लगा पाई. बताया जाता है कि काकोरी कांड के बाद वे छिप गए और बिहार से बनारस चले गए, जहां उन्होंने 10 महीने तक एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम किया.
हालांकि, बाद में वे देश से बाहर निकलने की कोशिश में दिल्ली चले गए. इसी दौरान उनकी मुलाकात अपने एक दोस्त से हुई, जिसने गद्दारी की और खां के बारे में पुलिस को बता दिया. 17 जुलाई 1926 की सुबह उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में रखा गया। बाद में उन पर मुकदमा चला और 19 दिसंबर 1927 को महज 27 साल की उम्र में उन्हें फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई.
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