-फ़िरदौस ख़ान
बिहार की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहाहिक विरासत बहुत ही समृद्ध है. लेकिन वक़्त एक ऐसी शय है, जो शानदार इमारतों को भी खंडहरों में तब्दील कर देता है. गुज़रते वक़्त के साथ बहुत सी चीज़ें नेस्तनाबूद हो जाती हैं. फिर वे सिर्फ़ यादों में ही ज़िन्दा रहती हैं. ख़ुशनुमा बात यह है कि बिहार सरकार अपने गौरवशाली अतीत की निशानियों को फिर से ज़िन्दा करने की क़वायद में जुटी हुई है.
बिहार का एक गौरवशाली और वैभवशाली इतिहास रहा है. आज का बिहार प्राचीन काल में तीन हिस्सों में विभाजित था, जिसमें मगध, अंग और विदेह यानी मिथिला शामिल था. यह राजा जनक, सीता, कर्ण, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, आचार्य मंडन मिश्र, मनु, याज्ञबल्कय, मैत्रेयी, कात्यानी, अशोक, बिन्दुसार और बिम्बिसार की पावन धरती है.
गंगा की सहायक नदी फल्गु के तट पर बसे बौद्धगया में बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यहां के महाबोधि मन्दिर में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा आज भी उसी अवस्था में है, जिस अवस्था में तपस्या करते हुए उन्हें ज्ञान मिला था.
बौद्ध धम्म के अनुयायी इसे सबसे पवित्र नगरों में से एक मानते हैं. यूनेस्को ने साल 2002में महाबोधि मन्दिर को विश्व धरोहर का दर्जा दिया था. इस मन्दिर की ख़ास देखभाल की जाती है. यह अपनी धार्मिक विरासत को ज़िन्दा रखे हुए है. यहां से विश्वभर में बौद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार हुआ.
इस राज्य में बौद्ध भिक्षु विहार यानी भ्रमण करते थे. इसलिए इसे विहार कहा जाने लगा. बाद में यही विहार शब्द बिहार में बदल गया. बौद्ध भिक्षुओं के रहने की जगह को भी विहार कहा जाता है. वैशाली भी महात्मा बुद्ध की कर्मभूमि रही है.
नालंदा
नालंदा राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है. इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की वजह से यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया है. प्राचीन काल में नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र था. चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा विवरणों में इस विश्वविद्यालय का विस्तार से वर्णन किया गया है. यह महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य बौद्ध सारिपुत्र की जन्म स्थली भी है.
राज्य सरकार ने नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने के लिए पहली सितम्बर 2014को नालंदा ज़िले के राजगीर में नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार में ख़ास दिलचस्पी दिखाई थी.
सरकार का मक़सद प्राचीन काल के नालन्दा विश्वविद्यालय की तरह इसे भी विश्व स्तर पर विख्यात करना है. इसलिए साल 2007में दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में इस बारे में चर्चा की गई और सोलह सदस्य देशों ने इसका समर्थन किया. साल 2009में चौथे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान चीन, कोरिया, सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया सहित दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ के सदस्य देशों ने इसे समर्थन देने का वादा किया था.
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि इससे जुड़े दस्तावेज़ भी इसके साथ नष्ट हो गए थे. विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों से मिली जानकारी के मुताबिक़ गुप्त कालीन सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ईस्वी पूर्व नालन्दा विश्वविद्यालय की बुनियाद रखी थी.
जब चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था उस वक़्त इस विश्वविद्यालय में 8500 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. शिक्षकों की तादाद 1510 थी. इनमें असंग, धर्मकीर्ति, ज्ञानचन्द्र, शीलभद्र, धर्मपाल, गुणमति, स्थिरमति, चन्द्रपाल, प्रभामित्र, जिनमित्र, नागार्जुन, वसुबन्धु और दिकनाग आदि शामिल थे. विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए तमाम बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध थीं.
बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र है. यह भी एक प्राचीन शहर है. यहां के मौजूद अवशेष इसकी भव्यता की गवाही देते हैं. गया को देश का दूसरा बनारस कहना ग़लत नहीं होगा. पितृपक्ष के मौक़े पर यहां पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है.
किंवदंतियों के मुताबिक़ भगवान विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है. इसलिए यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतक को विष्णु के परम धाम बैकुंठ की प्राप्ति होती है. यह मोक्ष प्राप्ति का साधन है.
जहानाबाद ज़िले के सुलतानपुर में स्थित बराबर की गुफ़ाओं का संबंध मौर्यकाल से है. कुछ गुफ़ाओं में अशोक के शिलालेख हैं. सदियों पुरानी सोनभंदर की गुफ़ाओं के बारे में माना जाता है कि इसमें से एक दरवाज़ा बिम्बिसार के ख़ज़ाने की तरफ़ जाता है. इसके बारे में बहुत सी लोककथाएं मशहूर हैं.
सासाराम का सम्राट शेरशाह सूरी से गहरा ताल्लुक़ है. कुछ इतिहासकारों के मुताबिक़ सम्राट शेरशाह सूरी का जन्म सासाराम में हुआ था. यहां उनका मक़बरा भी है. शेरशाह सूरी ने मुग़लों को हराकर उत्तरी भारत में सूरी साम्राज्य क़ायम किया था.
पटना ज़िले के मनेर में प्रसिद्ध सूफ़ी हज़रत मख़्दूम शेख़ शरफ़ुद्दीन याहिया मनेरी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. हिजरी कैलेंडर के शव्वाल के महीने में यहां उर्स होता है, जिसमें दूर-दूर से ज़ायरीन आते हैं. इनमें हिन्दुओं की तादाद बहुत ज़्यादा होती है. यह दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव की एक बेहतरीन मिसाल है. धार्मिक पर्यटन स्थलों में इसका भी शुमार होता है.
सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य के सभी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को संरक्षित और विकसित कर रही है. सरकार ने रोहतास पहाड़ी इलाक़े को विकसित करने की योजना बनाई है. इसके अलावा राष्ट्रीय और राजकीय मार्गों पर सत्कार केंद्र खोले जाएंगे.
इनमें राज्य के पारम्परिक भोजन के साथ-साथ फ़ास्ट फ़ूड भी मिलेगा. यहां बिजली, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी जनसुविधाओं के अलावा पार्किंग स्थल, चिकित्सालय, बैंक एटीम, गैराज, वाहन चार्जिंग स्टेशन और हस्तशिल्प की दुकानें भी होंगी. इसके लिए पर्यटन विभाग ने 23मार्गों का चयन किया है. इसके लिए सरकार वित्तीय सहायता भी मुहैया करवाएगी. इससे राज्य में रोज़गार के नये-नये अवसर पैदा होंगे.
कला संस्कृति
बिहार कला, संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत ही समृद्ध राज्य है. प्राचीन काल से ही यह संगीत की धरती रही है. यहां भृगु, गौतम और याज्ञवलक्य आदि ऋषि-मुनियों ने संगीत साधना की थी. मुस्लिम शासन काल में सूफ़ी संतों ने सूफ़ियाना संगीत को ख़ूब बढ़ावा दिया. रौशनआरा और रामदासी ने भी इसे लोकप्रिय बनाया.
महान कलाकार भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी कला संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया. वे कवि, संगीतकार, अभिनेता नाटककार और नाट्य निर्देशक थे. उन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर' कहा जाता है. राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें 'अनगढ़ हीरा' कहा था. जगदीशचंद्र माथुर ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें 'भरत मुनि की परम्परा का कलाकार' बताया था.
शारदा सिन्हा भी बिहार की सुप्रसिद्ध लोक गायिका हैं. वे भोजपुरी, मैथिली और मगही गीत गाती हैं. उन्हें भारत सरकार से संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री और बिहार कोकिला का सम्मान मिल चुका है. उदित नारायण, आदित्य नारायण, मनोज तिवारी, दलेर सिंह और पवन सिंह भी यहां के नामी गायक हैं.
बॉलीवुड में शॉटगन के नाम से विख्यात शत्रुघ्न सिन्हा ने हिन्दी फ़िल्म जगत में बिहार का नाम रौशन किया है. उनकी बेटी सोनाक्षी सिन्हा भी प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं. उनके अलावा मनोज वाजपेयी, शेखर सुमन, संजय मिश्रा, अखिलेन्द्र मिश्रा, नीतू चन्द्रा और नेहा शर्मा भी अपनी प्रतिभा का सफ़ल प्रदर्शन कर रहे हैं. फ़िल्म गैंग ऑफ़ वासेपुर से लाइम लाईट में आए पंकज त्रिपाठी दर्शकों के पसंदीदा अभिनेता बन चुके हैं. वेब सीरीज़ मिर्ज़ापुर में उनका कालीन भईया का किरदार ख़ूब सराहा गया.
बिहार के गीत और फ़िल्में पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बिहार के लोग देश के हर कोने में मिल जाएंगे. यहां के लोग बहुत मेहनतकश हैं. वे रोज़गार की तलाश में दूर-दराज़ के इलाक़ों में जाते हैं, तो अपने साथ-साथ अपनी संस्कृति भी ले जाते हैं.
यहां के लोगों की यह ख़ासियत है कि परदेस में भी ये लोग बहुत मिलजुल कर रहते हैं और वहां भी अपने तीज-त्यौहार पूरे विधि-विधान से मनाते हैं. इनकी बदौलत ही आज बिहार की संस्कृति दक्षिण भारत तक फैल चुकी है. छठ के मौक़े पर देशभर में बिहारी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यहां का लिट्टी चोखा भी इडली डोसे की तरह ही लोगों का पसंदीदा व्यंजन बन गया है.
बत्तख़ मियां अंसारी
बिहार बत्तख़ मियां अंसारी की सरज़मीं हैं, जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जान बचाई थी. साल 1917का वाक़िया है. महात्मा गांधी, स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर मोतिहारी आए थे. उस वक़्त यहां के किसान नील की खेती करके बर्बाद हो चुके थे.
उन्हें इस बाबत नील कारख़ानों के प्रबंधकों के नेता इरविन से भी बातचीत करनी थी, इसलिए उन्होंने उसका रात्रि भोज का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी उनके साथ थे. वे इरविन के जानलेवा इरादों से अनजान थे. इरविन ने अपने बावर्ची बत्तख़ मियां अंसारी को ज़हर वाले दूध का गिलास महात्मा गांधी को देने का आदेश दिया.
बत्तख़ मियां ने ऐसा करते हुए उन्हें इशारा कर दिया. उन्होंने महात्मा गांधी की तो जान बचा दी, लेकिन अंग्रेज़ों के क़हर से अपने परिवार को नहीं बचा पाए. अंग्रेज़ों ने उन पर बहुत ज़ुल्म ढहाये. आज़ादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति बने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मोतिहारी के सफ़र के दौरान बत्तख़ मियां अंसारी की ख़ैर ख़बर ली और प्रशासन को उन्हें 35एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया.
इस बारे में बाक़ायदा राष्ट्रपति भवन की तरफ़ से बिहार सरकार को लिखित आदेश जारी किया गया था. लेकिन उन्हें ज़मीन नहीं मिली और ग़ुरबत में ज़िन्दगी बसर करते हुए वे इस दुनिया से चले गए.उनका परिवार आज भी चम्पारण ज़िले के अपने पुश्तैनी गांव एकवा परसौनी में एक झोपड़ी में रह रहा है.
उनके पोते कलाम मियां के मुताबिक़ बहुत जद्दोजहद के बाद उन्हें 35एकड़ में से सिर्फ़ छह एकड़ ज़मीन ही मिली. नदी के किनारे पर होने की वजह से इसमें से सिर्फ़ दस कट्ठा ज़मीन ही बची है, बाक़ी ज़मीन पानी में बह गई. राज्य की अनेकों महान विभूतियों ने इसके गौरव को बढ़ाया है, जिनमें आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा, बाबू कुंवर सिंह, साहित्यकार विद्यापति, दाऊद, फणीश्वरनाथ रेणु, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, रामधारी सिंह दिनकर, रमेशचन्द्र झा और मृदुला सिन्हा आदि शामिल हैं. यह भी नेताओं और आईएएस वालों का गढ़ माना जाता है.
बहरहाल, बिहार प्रगति के पथ पर अग्रसर है. यह बात अलग है कि उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह इसकी रफ़्तार धीमी है. यहां अमूमन हर साल आने वाली बाढ़ भी इसे पीछे ले जाती है.
(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)