फैजान खान/ आगरा
ताजनगरी आगरा की धरती पर अनेक एसी धरोहरें हैं, जो दुनिया में इस शहर को बाकी से जुदा करती है. इनमें से एक है शाहगंज बोदला रोड पर बोदला चौराहे के नजदीक ‘माफी दरगाह नबी करीम’. दावा किया जाता है कि यहां पर नबी-ए-करीम के कदम-ए-पाक के निशान हैं. उनकी जियारत करने के लिए देशभर से जायरीन आते हैं.
बता दें कि ईद मिलाद-उन-नबी सैकड़ों जुलूस इसी दरगाह पर आकर खत्म होते हैं. शहंशाह अकबर के जमाने में सराय बोदला के आसपास का इलाका शहंशाह अकबर की फौज की छावनी थी.
इसीलिए अकबर ने 1037 हिजरी में यहां अकबरी मस्जिद की तामीर कराई. मस्जिद के पास तब हाथी खाना हुआ करता था जिसके प्रमाण स्वरूप आज भी खोदाई करने पर वहां हाथी बांधने के बड़े-बड़े खूंटें और पत्थर मिल जाते है. सात फीट नीचे चूने का फर्श भी नजर आ जाता है.
दरगाह के गद्दीनशीन शेख मुहम्मद शफीक बाबा लाल शाह कादरी ने बताया कि इस मस्जिद से लगी बाराह दरी और बारहदरी के बीचों-बीच स्थित “ माफी दरगाह नबी करीम “ का निर्माण शहंशाह जहांगीर ने करवाया था.
इस में पैगंबर-ए-इस्लाम नबी-ए-करीम के पैर का निशान (कदम शरीफ ) रखा हुआ है. ऐसा निशान या तो यहां है या फिर अरब में करीब 10 गुना 12 इंच (10गुणा 12) के अनगढ़ से पत्थर पर स्पष्ट नजर आता है.
यह दाहिने पैर का निशान है. पैर का निशान यहां कैसे आया इसके पीछे भी एक इतिहास है. इसे हर आदमी को जानना जरूरी है. बादशाह जहांगीर के दरबार में (हजरत ख्वाजा उस्मान रहमतुल्लाह अलैह) नाम के वजीर थे.
वजीर भी ऐसे जो हर वक्त अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे. एक बार जब वो हज करने गए और हमेशा की तरह सद्भावना बतौर अरब के बादशाह से मुलाकात की तो अरब के बादशाह ने भी उनसे प्रभावित होकर उन्हें यह कदम शरीफ बतौर तोहफा भेंट किया.
हजरत ख्वाजा उस्मान खुशी-खुशी अरब आगरा आए. आप ने बादशाह जहांगीर को कदम रसूल की जियारत कराई. इस पर बादशाह ने उसे अपने पास रखने की ख्वाहिश जाहिर की.
बादशाह के हुक्म को टालना उनके लिए आसान नहीं था. अपनी बेबसी पर ख्वाजा उस्मान की आंखों से आंसू गिरने लगे तो बादशाह ने उनके दिल की हालत को महसूस किया.
तब यह तय हुआ कि हम दोनों में से जिसका पहले इंतकाल होगा उस की मजार पर यह कदम शरीफ रखा जाएगा. अगली सुबह लोगों को खबर मिली कि हजरत ख्वाजा उस्मान रहमतुल्लाह अलैह का रात में इंतकाल हो गया है.
बादशाह जहांगीर ने हजरत ख्वाजा उस्मान रहमतुल्लाह अलैह का मकबरा बनवाकर आप के सीने मुबारक पर कदम शरीफ रखा. तब से लोग आप को नबी शाह बाबा के नाम से जानते हैं.
जहांगीर ने मकबरे के अलावा मकबरे चारों ओर विशाल बारादरी का निर्माण भी करवाया. तब से लेकर आज तक यह दरगाह और दरगाह में कदम रसूल सर्वधर्म के लोगों का जियारत गाह (श्रद्धा) का केंद्र बना हुआ है.
कदम रसूल को तमाम जायरीन उर्स के दौरान दरगाह के खादिमों के जरिए को दूध से गुस्ल करवाते हैं. इस मकबरे में पुराने दौर में खादिमों की जुबानी सुना है कि कुछ ऐसी तकनीक कारीगरी थी कि दूध की कुछ बूंदें सीधे गर्भ स्थल में मौजूद हजरत ख्वाजा उस्मान रहमतुल्लाह अलैह उर्फ नबी शाह बाबा के मजार ए मुकद्दस के सीने मुबारक की जगह पर गिरती हैं.