शिवाजी महाराज के समावेशी स्वराज्य की झलक, पुणे में भव्य सर्वधर्म इफ्तार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-03-2025
Yakjahati Iftaar
Yakjahati Iftaar

 

भक्ति चालक

छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को अक्सर गलत तरीके से पेश किया जाता है, उन्हें मुस्लिम विरोधी के रूप में ब्रांड करने का प्रयास किया जाता है. राजनीतिक आख्यान सुविधा के अनुसार उनकी छवि को आकार देते हैं, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य साबित करते हैं कि उन्होंने विभिन्न जातियों और समुदायों के लोगों को एकजुट करके स्वराज्य का निर्माण किया. जब पूरे राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है, तो ऐसे समय में पुणे के एक संगठन ने महाराज के धार्मिक सद्भाव के दृष्टिकोण को बनाए रखने के लिए एक उल्लेखनीय कदम उठाया है.

रमजान के पवित्र महीने के साथ और हाल ही में पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ शिव जयंती मनाई गई, पुणे के नव जागृति मित्रमंडल ने बज्मे ताहा यंग सर्कल, बज्मे राहेबर यंग सर्कल, यूनिटी फ्रेंड सर्कल, फैजाने रजा यंग सर्कल और जियान फ्रेंड सर्कल के साथ मिलकर मंगलवार पेठ में एक भव्य सर्वधर्म इफ्तार का आयोजन किया.

इस पहल के बारे में बात करते हुए, नव जागृति मित्रमंडल के अध्यक्ष राहुल शर्मा ने कहा, ‘‘छत्रपति शिवाजी महाराज की लड़ाई मुगलों के खिलाफ थी, मुसलमानों के खिलाफ नहीं. उन्होंने स्वराज्य की स्थापना के लिए सभी जातियों और धर्मों के लोगों को एकजुट किया, जिससे साबित हुआ कि वे कभी मुस्लिम विरोधी नहीं थे. शिव जयंती की हमारी अवधारणा भक्ति और शक्ति के मिश्रण से प्रेरित है. इस साल, हमने अपने मुस्लिम भाइयों और वारकरी संप्रदाय के सदस्यों को एक साथ लाकर इसे मनाने का फैसला किया.’’

सद्भाव की नींव

अपने शासनकाल के दौरान, छत्रपति शिवाजी महाराज ने भक्ति-शक्ति अवधारणा को सफलतापूर्वक लागू किया - धार्मिक एकता और समानता फैलाने के लिए भक्ति का उपयोग करते हुए स्वराज्य की स्थापना के लिए शक्ति का उपयोग किया. वारकरी संप्रदाय ने सामाजिक सुधारों, समानता और न्याय को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस दर्शन से प्रेरित होकर, आयोजकों ने उन्हीं मूल्यों को प्रतिबिंबित करने के लिए कार्यक्रम की संरचना की.

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राहुल शर्मा ने विस्तार से बताया, ‘‘पिछले चार सालों से हम इफ्तार का आयोजन कर रहे हैं. पहले हनुमान जयंती और रमजान एक साथ पड़ते थे, इसलिए हम दोनों त्यौहार एक साथ मनाते थे. इस साल, चूँकि शिव जयंती रमजान के पवित्र महीने में ही थी, इसलिए हमारे मुस्लिम मित्रों ने दोनों त्यौहारों को एक साथ मनाने का सुझाव दिया. इस तरह यह पहल अस्तित्व में आई.’’

समुदाय की प्रतिक्रिया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने पहली बार वारकरी समुदाय के साथ अपना विचार साझा किया, तो उन्हें संदेह था कि क्या अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग वास्तव में एक साथ आएंगे. हालाँकि, इस कार्यक्रम में भाग लेने के बाद, वे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने हमारे पहल की तहे दिल से प्रशंसा की. उनकी प्रशंसा हमारे प्रयासों की सच्ची पुष्टि है.’’

हाजिर लोगों में एक परवीन तंबोली ने कहा, ‘‘शिवाजी महाराज की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित यह कार्यक्रम वास्तव में सराहनीय है. भारत में हिंदू और मुसलमान सद्भावना के साथ रहते हैं, और यह कार्यक्रम हर साल उस एकता को मजबूत करता है. महाराष्ट्र में हिंदू और मुसलमानों को विभाजित करने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा. मैं यहाँ अपना रेाजा खोलने आया हूँ क्योंकि मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूँ कि ‘हिंदू और मुसलमान एक हैं’.’’

पुणे जिला खुदरा व्यापारी संघ के उपाध्यक्ष रिजवान खान भी मौजूद थे. अपने अनुभव को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं पहली बार इस कार्यक्रम में शामिल हुआ था, और मैंने जो देखा उससे मैं अभिभूत हूँ. यह गंगा-जमुनी संस्कृति का एक सुंदर संगम था. हिंदू, मुस्लिम और वारकरी संप्रदाय के सदस्यों ने एक साथ मिलकर वास्तव में पवित्र वातावरण बनाया. इस तरह की पहल हर जगह दोहराई जानी चाहिए. मैं अपने साथी व्यापारियों के साथ इसी तरह का कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ.’’

कार्यक्रम के आयोजकों में से एक इस्माइल खान ने इस पहल के महत्व पर प्रकाश डाला, ‘‘शिव जयंती के शुभ अवसर पर, हमने इस इफ्तार की मेजबानी करने का फैसला किया. पिछले चार सालों से, हमारे चार समूह हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए भोजन अभियान और इफ्तार सभाएँ आयोजित कर रहे हैं. हमारा लक्ष्य पीढ़ियों से चली आ रही हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखना और उसे मजबूत बनाना है.’’

शिवाजी महाराज की सच्ची विरासत का प्रमाण पुणे के नव जागृति मित्रमंडल ने छत्रपति शिवाजी महाराज की असली विरासत को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है. शिव जयंती और रमजान के उपलक्ष्य में आयोजित भव्य इफ्तार में हिंदू, मुस्लिम और वारकरी संप्रदाय के लोग एक साथ आए, जो धार्मिक सद्भाव और एकता का प्रतीक है. इस पहल ने इस बात की पुष्टि की कि शिवाजी महाराज का स्वराज्य समावेशिता और सह-अस्तित्व की नींव पर बना था - जिससे यह आयोजन भक्ति-शक्ति दर्शन की सच्ची अभिव्यक्ति बन गया.