मुंबई.
भारतीय शेयर बाजारों में अधिक विदेशी फंड आने से रुपया बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 पैसे बढ़कर 83.32 पर बंद हुआ, जो अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. हालांकि, शेयर बाज़ार में आने वाले फंड को "हॉट मनी" माना जाता है और यह अल्प सूचना पर बाहर निकल सकता है.
इसलिए बाजार विश्लेषक इस बात को लेकर सतर्क हैं कि रुपया आगे कितना मजबूत होगा. बहुत कुछ तेल की कीमतों पर भी निर्भर करेगा. डॉलर सूचकांक, जो छह मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी मुद्रा की ताकत का अनुमान लगाता है, भी 0.07 प्रतिशत कम पर कारोबार कर रहा था, जिससे रुपये को मदद मिली। डॉलर हाल ही में इस उम्मीद से कमजोर होना शुरू हुआ है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अगले साल ब्याज दरों में कटौती शुरू करेगा.
इससे उभरते बाजारों की मुद्राओं को अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में भी मदद मिली है. विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने कहा कि आरबीआई ने डॉलर की खरीदारी की जिससे रुपये की बढ़त सीमित हो गई. आरबीआई द्वारा डॉलर की खरीद-फरोख्त का मकसद रुपये में व्यापक उतार-चढ़ाव को रोकना और उसे स्थिर बनाए रखना है.
जब रुपया तेजी से गिरने लगता है, तो आरबीआई भारतीय मुद्रा को सहारा देने के लिए डॉलर बेचता है. इसके विपरीत, जब रुपया बढ़ता है, तो यह आरबीआई को डॉलर खरीदने का मौका देता है. यह भी बताया गया है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक से पहले विदेशी मुद्रा बाजार प्रतीक्षा और घड़ी की स्थिति में है, जिसने ब्याज दरों पर निर्णय लेने के लिए तीन दिवसीय विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा शुक्रवार को की जाएगी.