बीबी का आलम क्यों?

हैदराबाद में मुहर्रम के दौरान बीबी का अलम उठाया जाता है. हैदराबाद में मुहर्रम का जुलूस, विशेष रूप से बीबी का अलम, शहर की शानदार सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह जुलूस सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि शोक, समर्पण और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक भी है.

बीबी का अलम का उठना सिर्फ हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत की याद में मातम मनाने का तरीका नहीं है, बल्कि यह पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) की बेटी हजरत बीबी फातिमा की याद में भी किया जाता है.

16वीं शताब्दी में हयात बख्शी बेगम कुतुबशाही शासक मुहम्मद कुतुब शाह की पत्नी थीं. उन्होंने ने बीबी फातिमा की याद में गोलकुंडा में बीबी का अलम स्थापित किया था. निजाम शासनकाल (1724-1948) में, बीबी का अलम जुलूस और भी भव्य बन गया, जिसमें हजारों लोग शामिल होते थे.

शिया मुसलमान अशूरा के 10वें दिन बीबी का अलम जुलूस निकालते हैं. यह जुलूस हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार की कर्बला में हुई शहादत की याद में निकाला जाता है.

बीबी का अलम हजरत फातिमा के मातम का प्रतीक है, जिन्होंने अपने बेटों, इमाम हुसैन और इमाम हसन की शहादत का गहरा दुःख झेला था.

बीबी का अलम जुलूस हैदराबाद की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है. इसमें विभिन्न समुदायों के लोग शामिल होते हैं, जो शांति और सद्भाव का संदेश देते हैं. यह जुलूस हैदराबाद की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और मुहर्रम की धार्मिक परंपराओं को दर्शाता है.

हैदराबाद में मुहर्रम के दौरान बीबी का अलम उठाना सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह शोक, समर्पण, सांप्रदायिक सद्भाव और हैदराबाद की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है.

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