खुर्जा के जहीरूद्दीन: 6 हजार रुपये से शुरू किया कारोबार, अब करोड़ों के मालिक

Story by  दयाराम वशिष्ठ | Published by  [email protected] | Date 10-02-2025
 खुर्जा के जहीरूद्दीन: 6 हजार रुपये से शुरू किया कारोबार, अब करोड़ों के मालिक
खुर्जा के जहीरूद्दीन: 6 हजार रुपये से शुरू किया कारोबार, अब करोड़ों के मालिक

 

दयाराम वशिष्ठ | फरीदाबाद ( हरियाणा )

"लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती." यह कहावत खुर्जा के 62 वर्षीय शिल्पकार जहीरूद्दीन पर सटीक बैठती है. जीवन के शुरुआती संघर्षों के बावजूद, उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से खुद को एक सफल कारोबारी के रूप में स्थापित किया. मात्र 150 रुपये से मजदूरी शुरू करने वाले जहीरूद्दीन ने एक दशक की कड़ी मेहनत के बाद 1990 में अपने व्यवसाय की नींव रखी.

आज, वे न केवल शिल्प गुरु अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं, बल्कि अपने परिवार के साथ मिलकर करोड़ों का कारोबार भी चला रहे हैं. इस वर्ष, वे सूरजकुंड मेले में अपनी उत्कृष्ट कारीगरी के साथ उपभोक्ताओं को अपनी पसंदीदा कलाकृतियों से रूबरू करा रहे हैं.


surajkund
 

नेशनल अवार्डी से सीखी कारोबार की बारीकियां

जहीरूद्दीन ने अपने संघर्षमय जीवन को याद करते हुए बताया कि वर्ष 1977 में, जब वे दसवीं कक्षा के छात्र थे, तब आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई अधर में लटक गई. फीस में रियायत मिलने के बाद ही वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सके.

संयोगवश, उनके स्कूल के प्रिंसिपल का बेटा उस समय नेशनल अवार्डी अब्दुल रसीद से कप, प्लेट और अन्य शिल्प सामग्री बनाने का काम सीख रहा था. जहीरूद्दीन ने भी इसे अपने करियर के रूप में अपनाने का निर्णय लिया और मात्र 150 रुपये मासिक वेतन पर इस कारीगरी को सीखना शुरू किया. लगातार मेहनत और अभ्यास के बाद वे इस काम में पारंगत हो गए.

6 हजार रुपये से शुरू किया कारोबार, अब करोड़ों के मालिक

वर्ष 1990 में मात्र 6 हजार रुपये की पूंजी से जहीरूद्दीन ने अपना कारोबार शुरू किया. शुरुआत में वे कप, प्लेट, गमले, दही की हांडी और डोंगे सहित 10 आइटम का निर्माण करते थे. उन्हें पहली बार चंडीगढ़ में हरियाणा सरकार द्वारा आयोजित मेले में भाग लेने का अवसर मिला, जहां मात्र 15 दिनों में 35 हजार रुपये की कमाई हुई.

यह सफलता उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पिता के निधन के बाद, उन्होंने अपने भाइयों को साथ लेकर इस कारोबार को और विस्तार दिया। आज, उनके भाई रहीसुद्दीन को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.
khurja
खुर्जा में 5 लाख रुपये में खरीदा कारखाना, अब कीमत करोड़ों में

अपने संघर्षों को याद करते हुए जहीरूद्दीन बताते हैं कि उन्होंने खुर्जा में 5 लाख रुपये की लागत से अपना पहला कारखाना खरीदा था. आज इसकी कीमत करोड़ों में पहुंच चुकी है.

उनके कारखाने में करीब 25 कुशल कारीगर कार्यरत हैं, जो 50 से अधिक प्रकार की उत्कृष्ट शिल्प कृतियों का निर्माण कर रहे हैं. उनकी मेहनत और लगन के कारण उनके उत्पाद बाजार में हाथों-हाथ बिक जाते हैं.

नई पीढ़ी की सोच ने कारोबार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया

उनके भतीजे, जिन्होंने अलीगढ़ से एमबीए किया है, अब पारंपरिक शिल्प को आधुनिक डिजाइन के साथ पेश कर रहे हैं. गूगल जैसी डिजिटल तकनीकों की सहायता से वे नई-नई डिजाइन तैयार कर कारोबार को और आगे बढ़ा रहे हैं.

अब एक्सपोर्ट कारोबार की ओर बढ़ रहा परिवार

व्यवसाय के विस्तार की योजना के तहत, अब उनका परिवार अपने उत्पादों को एक्सपोर्ट करने की दिशा में अग्रसर हो चुका है. उनके भतीजे को एक्सपोर्ट लाइसेंस भी मिल गया है, जिससे वे अपने शिल्प को वैश्विक बाजारों में पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं.

गुजरात की मिट्टी और राजस्थान का पत्थर देते हैं उत्पादों को खास पहचान

उनके द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों में कप, प्लेट, दही की हांडी, डोंगा और गमले प्रमुख रूप से शामिल हैं. इन शिल्पों के निर्माण में गुजरात की मिट्टी और राजस्थान के पत्थर का उपयोग किया जाता है. 

इन दोनों सामग्रियों को विशेष मिश्रण के रूप में मिलाया जाता है और फिर ऑक्साइड कलर से पेंट कर डिजाइनों को उकेरा जाता है. इसके बाद गैस भट्टियों में उच्च तापमान पर इन्हें तैयार किया जाता है.

हर बजट के लिए उपलब्ध हैं आकर्षक उत्पाद

इस वर्ष के सूरजकुंड मेले में उनकी स्टॉल पर विभिन्न प्रकार के शिल्प उत्पाद सजे हुए हैं. इनमें टी-सेट, हांडी, गमले, डिनर सेट, फूल प्लेट और अन्य 50 से अधिक आकर्षक डिजाइन के उत्पाद शामिल हैं. 

इनकी कीमतें 25 रुपये से लेकर 3500 रुपये तक हैं, ताकि हर वर्ग के लोग अपनी पसंद के अनुरूप खरीदारी कर सकें.


khurja

जहीरूद्दीन की सफलता की कहानी न केवल मेहनत और समर्पण का प्रमाण है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यदि इंसान अपनी लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहे, तो उसे सफलता अवश्य मिलती है. आज वे न केवल खुद एक प्रतिष्ठित कारोबारी हैं, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए प्रेरणा भी बने हुए हैं. उनका अगला लक्ष्य भारतीय कारीगरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है, जिसमें वे पूरी निष्ठा से जुटे हुए हैं.