मैसूर की 75 वर्षीय मां ने 45 साल के बेटे के साथ 25 साल पुराने स्कूटर से पूरी की 92,822 किलोमीटर की तीर्थयात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-04-2025
75-year-old mother from Mysore completes 92,822 km pilgrimage with 45-year-old son on 25-year-old scooter
75-year-old mother from Mysore completes 92,822 km pilgrimage with 45-year-old son on 25-year-old scooter

 

 

 

 

 

देबराज मित्रा /मैसूर

जब हम अपनी जीवन यात्रा में अपनी माँ के साथ बिताए गए समय को सोचते हैं, तो किसी भी तरह की यात्रा उनके साथ साझा करने का अनुभव अविस्मरणीय होता है. लेकिन मैसूर के 45 वर्षीय डी. कृष्ण कुमार और उनकी 75 वर्षीय मां चूड़ारत्ना की यात्रा न केवल खास है, बल्कि यह एक प्रेरणादायक कहानी भी है. ये दोनों एक पुराने बजाज चेतक स्कूटर पर 92,822 किलोमीटर की तीर्थयात्रा पर निकले थे, और इस यात्रा ने न केवल भारत बल्कि नेपाल, भूटान और म्यांमार तक का दौरा किया.

16 जनवरी 2018 को शुरू हुई उनकी यात्रा ने उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में तीर्थ स्थलों और धार्मिक स्थानों की यात्रा करने का अवसर दिया. कुमार का कहना है कि उनका उद्देश्य अपनी माँ को देश और उसके विविधता से परिचित कराना था, जो उन्होंने अब तक केवल अपनी चारदीवारी में सीमित जीवन जीकर देखा था.

mother son

खास बात यह है कि चूड़ारत्ना ने अपने जीवन में कभी किसी यात्रा पर जाने का विचार भी नहीं किया था, जब तक कि उनके बेटे ने उन्हें इस अद्वितीय यात्रा पर आमंत्रित नहीं किया.कुमार के पिता के निधन के बाद, वह अपने परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति अधिक सजग हो गए थे और उन्होंने अपनी माँ के साथ जीवन के अनमोल क्षणों को साझा करने का फैसला किया.

उनकी यह यात्रा केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों, तटीय क्षेत्रों, पहाड़ी इलाकों और सीमावर्ती क्षेत्रों तक की यात्रा की, जो उनके और उनकी माँ के लिए एक अद्वितीय अनुभव था.

यात्रा का शुरुआत और उद्देश्य

कुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी बचत से यात्रा की योजना बनाई. उन्होंने कहा, "हमने यह यात्रा स्व-वित्तपोषित आधार पर की है. हम दान स्वीकार नहीं करते और ना ही हम महंगे फल खाते हैं. मंदिर के प्रसादम और ताजे फल ही हमारे आहार का हिस्सा बनते हैं."

उन्होंने यह भी बताया कि इस यात्रा का उद्देश्य केवल धार्मिक स्थलों की यात्रा नहीं था, बल्कि वह अपनी माँ को दुनिया की खूबसूरती दिखाना चाहते थे.उनकी माँ चूड़ारत्ना ने बताया कि उनके पति, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, इस चेतक स्कूटर का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने इसे अपने पति के रूप में एक उपहार मानते हुए यात्रा के दौरान इसे अपने साथ रखा.उन्होंने कहा, "हमें लगता है कि वह भी हमारे साथ इस यात्रा में मौजूद हैं." 

यात्रा के विभिन्न पड़ाव

कुमार और उनकी मां की यात्रा ने उन्हें भारत के लगभग हर कोने में ले जाकर धार्मिक स्थलों की यात्रा करने का मौका दिया. तमिलनाडु के कन्याकुमारी से लेकर श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर और गुजरात के द्वारका से लेकर अरुणाचल प्रदेश के परशुराम कुंड तक, उन्होंने देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों का दौरा किया. इसके अलावा, उन्होंने नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में भी यात्रा की और विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बारे में जानकारी प्राप्त की.

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इस यात्रा में उनका सबसे चुनौतीपूर्ण पड़ाव अरुणाचल प्रदेश का सेला दर्रा था, जो तवांग में चीन की सीमा के पास 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. कुमार ने कहा, "यह यात्रा मेरे लिए सबसे खास रही है, क्योंकि हम उस बात को करीब से देख पाए हैं जिसके बारे में हमने हमेशा सुना और पढ़ा – कि विविधता में एकता भारत का गौरव है."

कोविड-19 महामारी और यात्रा में रुकावट

कोविड-19 महामारी के कारण उनकी यात्रा में अस्थायी रुकावट आई. मार्च 2020 में घोषित लॉकडाउन के कारण वह जलपाईगुड़ी में दो महीने तक रुके रहे, लेकिन उनकी यात्रा रुकी नहीं, क्योंकि 15 अगस्त, 2022 को उन्होंने यात्रा को फिर से शुरू किया और इस बार उन्होंने तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों का दौरा किया.

इसके बाद, कश्मीर से वापसी की यात्रा उन्हें पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे अन्य स्थानों पर ले गई.

धर्म, आध्यात्मिकता और पारिवारिक संबंधों की अनोखी कहानी

कुमार और चूड़ारत्ना के लिए इस यात्रा का सबसे बड़ा लाभ यह रहा कि उन्होंने एक-दूसरे के साथ बिताए समय को सहेजा और जीवन के कई अनमोल अनुभव प्राप्त किए. चूड़ारत्ना ने कहा, "मेरे बेटे ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. मैंने इस यात्रा के हर पल का आनंद लिया। यह मेरी ज़िंदगी के सबसे बेहतरीन अनुभवों में से एक है."

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कुमार, जो कई भाषाएँ बोलते हैं, ने बंगाली भी सीखी है और कई धार्मिक स्थलों पर पहुँचने के बाद स्थानीय भाषाओं का सम्मान भी किया. वह कहते हैं, "हमेशा अपने साथ इस यात्रा को लेकर एक आत्मीयता और आस्था महसूस होती है, जैसे मेरे पिता हमारे साथ हों."

यात्रा का समापन और भविष्य की योजनाएं

कुमार और उनकी माँ ने दिसंबर 2023 में मैसूर लौटने से पहले यात्रा के दूसरे चरण को पूरा किया. यात्रा के इस तीसरे चरण में, उन्होंने आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय क्षेत्र की यात्रा को फिर से शुरू किया. कुमार ने कहा, "हमने जो यात्रा छोड़ी थी, उसकी भरपाई अब हम कर रहे हैं और हम पूरी उम्मीद करते हैं कि इस यात्रा से हम और भी नई बातें सीख सकें."

उनकी इस यात्रा ने यह साबित कर दिया कि मां-बेटे के रिश्ते में एक गहरी समझ और विश्वास होता है, जो केवल एक यात्रा के दौरान ही नहीं, बल्कि जीवनभर के अनुभवों में बंधता है. कुमार और उनकी माँ ने अपने इस अनुभव से यह संदेश दिया कि जीवन के छोटे-छोटे क्षणों को संजोकर, हम उन यादों को एक जीवनभर की यात्रा बना सकते हैं.