दयाराम वशिष्ठ/ फरीदाबाद (हरियाणा)
जहां एक ओर देश में धर्मों के बीच विभाजन की खाई और सांप्रदायिक भेदभाव बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर फरीदाबाद के सूरजकुंड मेले में एक ऐसे शिल्पकार की कला का प्रदर्शन हो रहा है जो हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच एकता का सशक्त संदेश दे रहा है.यह शिल्पकार हैं सय्यैद निजाद, जो अपनी कड़ी मेहनत और कला के माध्यम से हिंदू देवी-देवताओं के अद्भुत वुडन इनले (लकड़ी से बनी तस्वीरें) बना कर अपने काम को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं.
सय्यैद निशाद, एक मुसलमान कारीगर, जो कर्नाटका के मैसूर से ताल्लुक रखते हैं, लकड़ी से बनी गीता के उपदेश से लेकर राधा कृष्ण, शिव परिवार और श्री कृष्ण की वुडन इनले के 50 से अधिक डिजाइनों को तैयार कर पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं.
इन डिजाइनों में हिंदू देवताओं की श्रद्धा और आस्था को शिल्प के रूप में उतारते हुए सय्यैद निजाद ने एक सशक्त संदेश दिया है कि "भगवान एक है", वही अल्ला है और वही शिव, और इस संदेश को उन्होंने अपनी कला के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है.
कठिनाईयों के बावजूद कला में पाया एक नई राह
सय्यैद निशाद की कहानी संघर्ष और संकल्प की मिसाल है.वह कहते हैं, "जब मैं 20 साल का था, तो मेरे लिए परिवार की जिम्मेदारियों ने मुझे पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया.मेरे पिता छोटे व्यापारी थे और घर का खर्च मुश्किल से चलता था.घर के सबसे बड़े बेटे के रूप में मुझे पूरा परिवार संभालने की जिम्मेदारी थी, इसलिए मैंने अपनी बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी."
सय्यैद निजाद का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन उनका संघर्ष उन्हें एक नई दिशा की ओर ले गया.उन्होंने लकड़ी का काम करने वाले हिंदू कारीगर सिद्धराज उस्ताद से प्रशिक्षण लिया, जो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.
इसके बाद सय्यैद ने अपनी मेहनत और कला के साथ अपनी पहचान बनानी शुरू की.सात साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद, उन्होंने अपना खुद का काम शुरू किया और श्री सांईबाजा हैंडलूम के नाम से अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया.
लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया, उन्हें एक और बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ा.उनके पिता का निधन हुआ और फिर परिवार का बोझ और बढ़ गया.इस दौरान कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन ने उनके कारोबार को पूरी तरह प्रभावित किया, और उनके लिए जीवन और कठिन हो गया.लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और बिल्डिंग में गेट पॉलिश का काम शुरू किया, ताकि परिवार की जरूरतें पूरी हो सकें.
लॉकडाउन के बाद सूरजकुंड मेले में नई उम्मीदें
लॉकडाउन के दौरान उनका काम बंद हो गया, लेकिन उन्होंने हर मुश्किल का डटकर सामना किया.जैसे ही सूरजकुंड मेला शुरू होने की खबर मिली, उन्होंने तुरंत इस अवसर का लाभ उठाने का निर्णय लिया और फिर से अपनी कला को सामने लाने के लिए वुडन इनले बनाने शुरू कर दिए.
सय्यैद निजाद का मानना है कि उनके काम में भगवान का आशीर्वाद है.वह बताते हैं, "जब भी मैं लकड़ी की डिजाइन तैयार करता हूं, तो मेरे मन में वही मूरत बसती है, जो एकता, भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश देती है." उनके द्वारा बनाए गए वुडन इनले न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि कला धर्म से ऊपर है और मानवता के लिए है.
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक
सय्यैद निशाद का कर्नाटका का अपना अनुभव भी एक सुंदर उदाहरण है कि किस तरह हिंदू, मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय एक साथ मिलकर काम करते हैं.कर्नाटका के मैसूर में करीब 2,000 मुस्लिम कारीगर लकड़ी का काम करते हैं, और वहां हिंदू और क्रिश्चियन कारीगर भी उनके साथ मिलकर काम करते हैं.सय्यैद बताते हैं कि उनके वर्कशॉप में हिंदू, मुस्लिम और क्रिश्चियन सभी मिलकर काम करते हैं, और यह भाईचारे का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है.
सूरजकुंड मेले में भी सय्यैद के साथ हिंदू और क्रिश्चियन कारीगर मौजूद हैं, जो मिलकर कारोबार को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं.उनके द्वारा तैयार किए गए वुडन इनले के अलावा, महिलाओं द्वारा तैयार किए गए अगरबत्तियाँ और कॉस्मेटिक उत्पाद भी इस स्टॉल पर बिक रहे हैं.
वुडन इनले की अद्भुत कला
सय्यैद निशाद के वुडन इनले की खासियत यह है कि यह पूरी तरह से लकड़ी से तैयार किए जाते हैं, बिना किसी पेंटिंग के.इनमें रोजवुड, सिल्वर, मैंगोवुड जैसी लकड़ियों का उपयोग किया जाता है, और ये लकड़ियाँ खासतौर पर कर्नाटका में ही पाई जाती हैं.
सय्यैद बताते हैं कि इन वुडन इनले को तैयार करने में लगभग 50 से 60 प्रकार की डिजाइन बनाई जाती हैं, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों के अलावा कई अन्य डिजाइन भी शामिल हैं.
सय्यैद निजाद की प्रेरणा
सय्यैद निजाद का जीवन एक प्रेरणा है, जो बताता है कि अगर किसी के पास सच्ची मेहनत, समर्पण और कड़ी मेहनत हो तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है.
उनका संदेश यह है कि कला और संस्कृति के माध्यम से समाज में एकता और भाईचारे का संदेश फैलाया जा सकता है, और यही वह शक्ति है जो हमें एकजुट रख सकती है.
सय्यैद निशाद की कला और उनके संघर्ष की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कठिनाइयाँ जरूर आती हैं, लेकिन अगर हम धैर्य, मेहनत और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमारी राह में नहीं आ सकती.